Bharatpur News: ग्रामीण क्षेत्रों में टैलेंट की कोई कमी नहीं है.बच्चों से लेकर बुजुर्ग अपनी अपनी कला में निपुण है. हालांकि उन्हें समय के अनुसार सही मंच ना मिल पाने के चलते उनकी कला वहीं तक सीमित रह जाती है.यह बात डीग जिले के बरौली चौथ गांव निवासी 93 साल के गोविंदा पर फिट बैठती है. महज 15 साल की उम्र में भैंस चराते-चराते अपने दादा से अलगोजा वाद्य यंत्र बजाना सीख लिया.
भैंस चराते अपने दादा से सीखा अलगोजा बजाना
आसपास के धार्मिक और मेला कार्यक्रमों में उन्होंने अपनी प्रस्तुति देना भी शुरू कर दिया और स्थानीय क्षेत्र में अलगोजा वाद्य यंत्र बजाने में लोहा भी मनवा लिया.
उनके दादा ने उन्हें अलगोजा वाद्य यंत्र भी खरीद कर दिया था.
मुंबई के कलाकारों ने मान ली थी हार
गोविंदा कहते हैं, जब मेरी उम्र 60 साल थी तो गिरिराज जी परिक्रमा मार्ग में एक धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमें मुंबई के बांसुरी वादकों का एक दल प्रस्तुति देने के लिए पहुंचा था. जब उन्हें मेरे बारे में किसी ने बताया और वह मेरे पास घर आए और बोले की आपकी बड़ी तारीफ सुनी है लेकिन उन्होंने मेरे से कंपटीशन करने की बात कही. उनके कंपटीशन की बात सुन कर एक बार तो में डर गया कि यह लोग मुंबई के कलाकार हैं और इन लोगों के सामने में क्या चीज हूं. गांव के लोगों ने हिम्मत बढ़ाई तो फिर मैं तैयार हुआ.
मुंबई आने का मिला था न्योता
इस कंपटीशन में मुझे ही पहले अपना वाद्य यंत्र बजाने के लिए कहा गया. मैंने भगवान श्री कृष्ण और गिरिराज महाराज का नाम लेकर अलगोजा बजाने की शुरुआत की. केवल 3 मिनट में ही मुंबई के बांसुरी वादकों ने मेरे पैर पकड़ लिए और कहा कि आपसे अच्छा हम नहीं बजा सकते.
उन्होंने कहा कि हमने काफी कलाकार देखे हैं लेकिन आपने जिस तरह से यह वाद्य यंत्र बजाया है हम लोग तो इसके आगे दूर-दूर तक नहीं है और उन्होंने हार मान ली. उन्होंने मुझे अपने साथ मुंबई चलने का भी आग्रह किया लेकिन उम्र 60 वर्ष होने और सांस की बीमारी के चलते उनके साथ जाने से मना कर दिया.
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