
आदिवासी समाज अपनी परंपरा, संस्कृति और लोक कलाओं के लिए जाना जाता है. बांसवाड़ा का मानगढ़ धाम आदिवासियों की धार्मिक आस्था का मुख्य केंद्र है, जहां से हजारों आदिवासियों की शहादत का इतिहास जुड़ा है. मानगढ़ धाम आदिवासियों के शहादत का प्रमुख केंद्र होने के साथ ही राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के आदिवासियों की आस्था का भी बड़ा केंद्र है. भले ही अब यह स्थान राजनीतिक दलों के लिए राजनीति का अखाड़ा बन गया है, लेकिन आज भी यह स्थान मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात के लाखों लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है.
गोविंद गुरु ने दिया एकजुटता का संदेश
मानगढ़ धाम पर भील आदिवासियों को गोविंद गुरु ने संप सभा के माध्यम से एकजुट किया था जहां भीलों ने अदम्य साहस और एकता दिखाई थी. सामाजिक सुधार के प्रणेता गोविंद गुरु ने आदिवासियों को एकजुट कर क्रांति का आगाज किया था जहां अंग्रेज लगातार आदिवासियों पर जुल्म कर रहे थे, तो वहीं गोविंद गुरू भीलों की बस्तियों में जाकर उन्हें मजबूत करते और सामाजिक सुधार का संदेश देते थे.
राजस्थान और गुजरात की सीमा पर स्थित मानगढ़ धाम जहां यह इलाका चारों ओर पहाड़ी और जंगलों से घिरा हुआ है. वहीं इसी पहाड़ी पर एक धूणी और गोविंद गुरु की प्रतिमा लगी हुई है.
संप सभा क्या है?
इतिहास के जानकारों के मुताबिक गोविंद गुरु का जन्म 20 दिसम्बर 1858 को डूंगरपुर जिले के बांसिया गांव के एक बंजारा परिवार में हुआ, जहां 1903 में गोविंद गुरु ने संप सभा बनाई. भील समुदाय की भाषा में संप का अर्थ होता है भाईचारा, एकता और प्रेम और उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना शुरू किया. इस दौरान देश में अंग्रेजी हुकूमत थी ऐसे में गोविंद गुरू ने उनके खिलाफ आंदोलन का बिगुल बजा दिया.
अंग्रेजों ने घेरकर बरसाई थी गोलियां
वहीं 17 नवम्बर 1913 को हजारों आदिवासी मानगढ़ धाम की पहाड़ी पर जुटे हुए थे, इसी दिन अंग्रेजी फ़ौज ने पहाड़ी को चारों तरफ से घेरकर मशीन गन और तोप के गोलों की बरसात कर वहां मौजूद लोगों में से 1507 लोगों को शहीद कर दिया.
आस्था पर हावी हो रही राजनीति
जहां अशोक गहलोत सरकार ने मानगढ़ धाम के विकास के लिए कुछ समय पूर्व ही 100 करोड़ रूपए स्वीकृत करने की घोषणा की, तो वहीं भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में मानगढ़ धाम को ट्राइबल डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने की घोषणा की है.
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