
Rajasthan News: राजस्थान के नए जिले बालोतरा में इन दिनों जमीनों की कीमतें रॉकेट की स्पीड से भाग रही हैं. एक तो नया जिला बनने का फायदा, ऊपर से रिफाइनरी निर्माण के चलते प्रॉपर्टी मार्केट में जबरदस्त उछाल आया है. लेकिन इसी उछाल के बीच, बालोतरा जिला कलेक्ट्रेट के ठीक सामने एक बेहद बेशकीमती भूखंड को लेकर दो सरकारी विभाग आमने-सामने आ गए हैं, और ये मामला अब जिले के सबसे बड़े विवादों में से एक बन गया है. एक तरफ है नगर परिषद, जो करोड़ों की इस जमीन को ई-नीलामी करके अपना खाली खजाना भरने की तैयारी में है. वहीं, दूसरी तरफ है पशुपालन विभाग, जो इस जमीन पर 70 साल पुराना अपना हक जता रहा है.
जमीन किसकी? 70 साल पुराना दावा
विवाद का केंद्र है कलेक्ट्रेट के सामने स्थित करीब 1964 वर्ग मीटर का एक भूखंड. पशुपालन विभाग का दावा बेहद पुराना है. पशुपालन विभाग के उप निदेशक डॉ. मदनगिरी ने जिला कलेक्टर को बाकायदा पत्र लिखकर नगर परिषद द्वारा होने वाली नीलामी को तुरंत रुकवाने की मांग की है. डॉ. मदनगिरी ने बताया कि करीब 70 साल पहले इस भूखंड पर भेड़ व ऊन विभाग का कार्यालय हुआ करता था, जहां भेड़ और बकरियों के इलाज और उनके प्रोटेक्शन का काम होता था. बाद में यह विभाग पशुपालन विभाग में विलय हो गया.
'हमारे पास कस्बे में कोई और जमीन नहीं'
विभाग के अधिकारी का कहना है- 'वहां पशुओं के टीकाकरण केंद्र का संचालन हो रहा था. एक कर्मचारी के रिटायर होने के बाद नई नियुक्ति नहीं हुई और कार्यालय बंद हो गया. लेकिन ये जमीन हमारी है. नगर परिषद को स्वामित्व पट्टा देने की मांग की गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. अब नीलामी अनुचित है. हमारे पास बालोतरा कस्बे में कोई और जमीन नहीं है, ऐसे में विभाग को भारी परेशानी होगी.' यानी पशुपालन विभाग सिर्फ कागजात नहीं, बल्कि अपने पुराने कब्जे और 70 साल की विरासत को आधार बनाकर इस जमीन को बचाने की कोशिश कर रहा है.
नगर परिषद क्यों कर रही है नीलामी?
दूसरी तरफ है बालोतरा नगर परिषद, जो फिलहाल आर्थिक तंगी से जूझ रही है. जिले में बदहाल सड़कें हैं, और विकास के कई कार्य ठप पड़े हैं. खासकर, दीपावली से पहले सड़कों आदि के मरम्मत के लिए नगर परिषद को बड़े फंड की सख्त जरूरत है. यही वजह है कि नगर परिषद ने इस करोड़ों के भूखंड पर दांव खेला है. नगर परिषद आयुक्त रामकिशोर मेहता ने पशुपालन विभाग की आपत्ति को सिरे से खारिज कर दिया है. रामकिशोर मेहता ने साफ कहा- 'यह भूखंड पूरी तरह से नगर पालिका की संपत्ति है. पशुपालन विभाग के पास इस भूखंड को लेकर कोई आधिकारिक रिकॉर्ड मौजूद नहीं है. सिर्फ कब्जे के आधार पर कोई भूखंड उनका नहीं हो सकता. नगर परिषद इसकी ई-नीलामी कर रही है और इस पैसे को शहर के विकास कार्यों पर खर्च किया जाएगा.'
अब कलेक्टर के पाले में पहुंची गेंद
साफ है, नगरपरिषद को इस जमीन में विकास कार्यों का एक बड़ा जरिया दिखाई दे रहा है. लेकिन मामला अब सीधा जिला कलेक्टर के पास पहुंच गया है. दोनों विभाग कलेक्ट्रेट के सामने की जमीन पर ही अपना-अपना हक जता रहे हैं, जिसने प्रशासनिक गलियारों में भी चर्चा छेड़ दी है. दिलचस्प बात यह है कि राजस्थान के जिला प्रभारी मंत्री जोराराम कुमावत भी संयोग से पशुपालन विभाग के ही मंत्री हैं. ऐसे में देखना होगा कि इस विभागीय खींचतान में कलेक्टर क्या फैसला लेते हैं, और क्या मंत्री जी अपने ही विभाग की तरफ झुकते हैं या शहर के विकास को प्राथमिकता देते हैं? जब तक ये विवाद सुलझता नहीं है, तब तक नगर परिषद की ई-नीलामी पर तलवार लटकी रहेगी और बालोतरा के लोग इस करोड़ों के प्लॉट के भाग्य का इंतजार करते रहेंगे.
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