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This Article is From Sep 19, 2024

राजस्थान के इस जगह पर पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करने का है महत्व, भगवान राम ने भी किया था पिंडदान

Rajasthan: जिस घर परिवार के सदस्यों में ऊपरी हवा, भूत-प्रेत और पितृ आदि शारीरिक बाधा उत्पन्न करते हैं, उस व्यक्ति को पूजा पाठ कर इस कुंड में स्नान कराया जाता है.सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जो पीड़ित व्यक्ति कपड़े पहन कर आता है, वह कुंड में स्नान के बाद कपड़े यही छोड़कर चला जाता है.

राजस्थान के इस जगह पर पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करने का है महत्व, भगवान राम ने भी किया था पिंडदान
अजमेर जिले के तीर्थ गुरु पुष्कर में श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है.

Rajasthan News: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि पितृ पक्ष में अगर पूर्वजों का श्राद्ध करना हिंदू धर्म में पुरानी प्रथा है. इसके साथ ही प्रमुख तीर्थ स्थानों पर पूर्वजों का श्राद्ध करने का भी विधान है, जो पितृ पक्ष के दौरान किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि यदि कोई तीर्थ स्थानों पर श्राद्ध कर्म के लिए नहीं जा पाता है तो उसके पूर्वज को मुक्ति नहीं मिलती है.

इस साल 19 सितंबर से पितृ पक्ष आरंभ हुआ है, जिसमें 16 दिवसीय श्राद्ध पक्ष में लोग अपने पितृों और पूर्वजो के तर्पण, पिंडदान और अनुष्ठान करवाएंगे. देश में कई तीर्थ स्थलों पर पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध किये जाते हैं, लेकिन अजमेर जिले के तीर्थ गुरु पुष्कर में श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना जाता है.  पुरानी मान्यता है कि भगवान श्री राम ने अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान पुष्कर में ही किया था. ये पिंडदान तीर्थ नगरी पुष्कर के पास एक स्थान 'गया कुंड' में किए जाते हैं. 

भोजन करवाते समय माता सीता को दिखे थे राजा दशरथ

तीर्थ पुरोहित ईश्वर लाल पाराशर बताते हैं कि श्री राम भगवान जब अपने 14 साल का वनवास काट रहे थे. इस दौरान आकाशवाणी से श्री राम भगवान को राजा दशरथ की मृत्यु के शोक समाचार मिले थे, उसके बाद श्री राम भगवान अत्रि मुनि आश्रम पहुंचे और उनकी आज्ञा से पुष्कर के पास गया में बालू मिट्टी का पिंड बनाकर श्राद्ध किया था. इसके बाद जंगल से अलग-अलग फल चुनकर ब्राह्मणों को भोजन भी कराया. ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय माता सीता को राजा दशरथ के साक्षात दर्शन भी हुए थे. यही वजह है कि आज भी हजारों की संख्या में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिए तीर्थ नगरी पुष्कर के पास गया तीर्थ मे आते हैं.

पिंडदान करते हुए एक परिवार

पिंडदान करते हुए एक परिवार

ऐसे होती है पिंडदान की प्रक्रिया

तीर्थ गुरु राकेश पराशर ने बताया कि पिंडदान के समय आटा, तिल, दूध ,दही, पुष्प, शहद आदि का मिश्रण कर पिंडदान तैयार किया जाता है. सभी सामग्रियों को पानी से गूंथ कर गोले बनाए जाते हैं, उसके बाद हवन यज्ञ किया जाता है. श्रद्धालुओं को इन्ही पिंडों की पूजा तर्पण करवाकर कुंड के जल में तर्पण क्रियाएं संपन्न की जाती है. साथ ही बनाए गए गोले कौओं को खाने के लिए रख दिए जाते हैं. कौए जब गोला खा लेते हैं, तब श्राद्ध पूरा माना जाता है. 

कुंड के किनारे पड़े लोगों के कपड़े

कुंड के किनारे पड़े लोगों के कपड़े

गया कुंड में स्नान करने से भाग जाते है भूत-प्रेत

तीर्थ गुरु ईश्वरलाल पाराशर यह भी बताते हैं कि इस गया कुंड में जिस घर परिवार के सदस्यों में ऊपरी हवा, भूत-प्रेत और पितृ आदि शारीरिक बाधा उत्पन्न करते हैं, उस व्यक्ति को पूजा पाठ कर इस कुंड में स्नान कराया जाता है. इसके बाद वह व्यक्ति तुरंत स्वस्थ हो जाता है और उसके शरीर में आई बाधाएं भी दूर हो जाती है. ऐसी बीमारी से पीड़ित हजारों की संख्या में प्रतिदिन श्रद्धालु और यात्री इस कुंड में स्नान के लिए आते रहते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जो पीड़ित व्यक्ति कपड़े पहन कर आता है, वह कुंड में स्नान के बाद कपड़े यही छोड़कर चला जाता है. यही कारण है कि कुंड के आसपास बहुत पुराने कपड़े नजर आते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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