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आसाराम को झटका, नहीं कर सकता सत्संग और प्रवचन; गुजरात हाईकोर्ट ने ठुकराई अर्जी

आसाराम ने अंतरिम जमानत के दौरान लगाई गई सख्त शर्तों में छूट मांगी थी. इस याचिका पर गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और न्यायमूर्ति वी.डी. नानावटी की खंडपीठ ने सुनवाई की.

आसाराम को झटका, नहीं कर सकता सत्संग और प्रवचन; गुजरात हाईकोर्ट ने ठुकराई अर्जी

दुष्कर्म के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए  विवादास्पद संत आसाराम बापू को गुजरात हाईकोर्ट से झटका लगा है. जमानत पर जेल से रिहा होने के बाद आसाराम ने सत्संग करने,आश्रम में प्रवचन देने और अनुयायियों से मिलने-जुलने की अनुमति मांगी थी. लेकिन हाईकोर्ट ने आसाराम को इसके लिए छूट देने से इनकार कर दिया. अदालत ने आसाराम के एक और अनुरोध पर अभी फैसला नहीं सुनाया है जिसमें उसने हर वक्त पुलिस पहरे से छूट मांगी थी.

आसाराम ने अंतरिम जमानत के दौरान लगाई गई शर्तों में छूट मांगी थी. इस याचिका पर गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और न्यायमूर्ति वी.डी. नानावटी की खंडपीठ ने सुनवाई की. बेंच ने स्पष्ट किया कि आसाराम को सत्संग आयोजित करने या उसमें भाग लेने की कोई छूट नहीं दी जाएगी. कोर्ट ने कहा कि अंतरिम जमानत केवल चिकित्सीय आधार पर दी गई है, न कि धार्मिक गतिविधियों के लिए.

हमेशा पुलिस के पहरे से छूट का आग्रह

आसाराम के वकीलों की ओर से एक अन्य महत्वपूर्ण शर्त पर राहत मांगी गई थी. इसमें हर समय पुलिस पहरे में रहने से छूट मांगी गई थी. वर्तमान में आसाराम पर 24×7 पुलिस निगरानी की शर्त लगी हुई है. अदालत ने इस मुद्दे पर सरकार से एक सप्ताह के अंदर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. सरकार को इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट करना होगा कि क्या आसाराम से सुरक्षा के लिहाज से इतना सख्त पहरा जरूरी है या इसे कम किया जा सकता है. इस पर अगली सुनवाई एक सप्ताह बाद होगी जिसके बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा.

ज़मानत के दौरान कड़ी शर्तें

गौरतलब है कि आसाराम को 2013 में एक नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. इसके बाद वह जोधपुर सेंट्रल जेल में सजा काट रहा था. फिलहाल स्वास्थ्य कारणों के आधार पर आसाराम को अंतरिम जमानत दी गई है और वह जोधपुर से बाहर गुजरात में रह रहा है. उनकी जमानत पर कई कड़ी शर्तें लगाई गई हैं, जिनमें कोई धार्मिक सभा आयोजित न करना और सोशल मीडिया पर सक्रिय न रहना भी शामिल है.

आसाराम के समर्थकों ने कोर्ट के इस फैसले पर निराशा जताई है, जबकि पीड़िता पक्ष के वकीलों ने इसे न्याय की जीत बताया. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए जमानत की शर्तों में कोई ढील नहीं दी जा सकती.

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