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This Article is From Dec 08, 2023

कानूनी पेंच में उलझे केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल, हाईकोर्ट ने FIR निरस्त करने से किया इनकार

केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. राजस्थान हाईकोर्ट से केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन लाल मेघवाल को आंशिक राहत तो मिली मगर हाईकोर्ट ने उनकी FIR निरस्त नहीं की है.

कानूनी पेंच में उलझे केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल, हाईकोर्ट ने FIR निरस्त करने से किया इनकार
arjun meghwal (फाइल फोटो)

Rajasthan News: राजस्थान हाई कोर्ट ने केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की ओर से दायर याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए प्रोटेस्ट पिटीशन पर दिए गए जांच के आदेश को अपास्त करते हुए मामला पुन: एसीबी कोर्ट बीकानेर को सुनवाई के लिए भेज दिया है. वहीं एसीबी (एंटी करप्शन विंग) में दर्ज FIR को निरस्त करने से इनकार कर दिया है.

जस्टिस प्रवीर भटनागर की एकलपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता केंद्रीय मंत्री अर्जुन लाल मेघवाल की ओर से दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश पारित किया है. दरअसल वर्ष 2007 में अर्जुनराम मेघवाल की पोस्टिंग चूरू में बतौर कलेक्टर थी. तब राज्य सरकार से उन्हें निर्देश मिले कि चूरू में 18 सैनिकों और उनके परिजनों को प्लॉट आवंटन का मामला अटका हुआ है. इसका जल्द निपटारा किया जाए.

सरकार की भावना थी कि सेना में जो सेवा करके आते हैं, उन्हें रहने के लिए जमीन देनी है. योजना के अनुसार सैनिक बस्ती में 60 प्रतिशत सैनिकों के लिए और 40 प्रतिशत अन्य लोगों के लिए प्लॉट आरक्षित रखे गए थे.

कलेक्टर अर्जुनराम मेघवाल की अध्यक्षता में बनी थी कमेटी 

सरकार ने निर्देश दिए कि सैनिकों और उनके परिजनों को जल्द से जल्द प्लॉट का आवंटन कर पट्टे जारी किए जाएं. कलेक्टर अर्जुनराम मेघवाल की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई. जिसमें एडीएम सहित अन्य अधिकारी और सेना के रिटायर्ड अफसरों को शामिल किया गया. कमेटी ने सरकार के निर्देश मिलते ही काम शुरू कर दिया. पात्र सैनिकों और उनके परिवारों को अलॉटमेंट शुरू कर दिए गए. आवंटन का काम लगभग पूरा हो चुका था.

मेजर हाकिम ने गड़बड़ी की शिकायत एसीबी की

मगर अर्जुनराम मेघवाल की अध्यक्षता वाली कमेटी पर सैनिक बस्ती में प्लॉट अलॉटमेंट को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे. अर्जुनराम मेघवाल के सांसद बनने के बाद वर्ष 2010 में मेजर हाकिम अली खान ने सैनिक बस्ती के संबंधित प्लॉट के अलॉटमेंट में भ्रष्टाचार की शिकायत भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) में की. शिकायत में हाकिम अली ने प्लॉट अलॉटमेंट में मिली भगत कर कम रेवेन्यू वसूलने के आरोप लगाए.

शिकायत के आधार पर एसीबी ने जांच शुरू

तत्कालीन एसीबी अफसरों ने जांच के दौरान सांसद बन चुके अर्जुनराम मेघवाल के बयान दर्ज किए, करीब एक साल तक जांच चली. वर्ष 2011 में एसीबी ने इस मामले में FIR लगाकर फाइल कोर्ट में पेश कर दी. एसीबी ने कहा कि इस मामले में कोई आरोप नहीं बनता, कमेटी का काम अलॉटमेंट करने का था रेवेन्यू वसूलने का नहीं. इसलिए सीधे तौर पर कमेटी अध्यक्ष (अर्जुनराम मेघवाल) और अन्य मेंबर के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता.

दो बार मेघवाल को मिल चुकी क्लीन चिट 

एसीबी की फाइनल रिपोर्ट के बाद शिकायतकर्ता ने एसीबी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो कोर्ट ने 25 अक्टूबर 2013 को पुन: जांच के आदेश दिए. जिस पर एसीबी ने दोबारा जांच के बाद पुनः अंतिम रिपोर्ट पेश कर दी लेकिन दूसरी बार भी मेघवाल को क्लीन चिट दी गई. जिसके खिलाफ प्रोटेस्टे पिटीशन पेश हुई, तो एसीबी कोर्ट ने 08 जुलाई 2014 को पुन: जांच के आदेश दिए थे.

हाईकोर्ट ने एसीबी कोर्ट के आदेश पर लगाया स्टे

जिसके खिलाफ मंत्री मेघवाल ने राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर में विविध आपराधिक याचिका पेश कर दी. जिसमें प्रारम्भिक सुनवाई के बाद 06 अगस्त 2014 को हाईकोर्ट ने एसीबी कोर्ट के आदेश पर स्टे दिया था. एसीबी कोर्ट के आदेश के खिलाफ पेश याचिका पर जस्टिस भटनागर की कोर्ट में विस्तृत सुनवाई हुई.

एएजी एमए सिद्दकी ने की पैरवी

राज्य सरकार की ओर से एएजी एमए सिद्दकी ने पैरवी की. कोर्ट ने मामले पर सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता मंत्री मेघवाल की ओर से एफआईआर निरस्त करने की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया गया. वहीं एसीबी कोर्ट की ओर से 08 जुलाई 2014 को पारित आदेश को अपास्त कर दिया गया और मामले को पुन: सुनवाई के लिए एसीबी कोर्ट बीकानेर को भेजते हुए कानून सम्मत सुनवाई कर आदेश पारित करने के निर्देश दिए.

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