Rajasthan News: राजस्थान की अरावली पर्वतमाला दुनिया की सबसे पुरानी पहाड़ी श्रृंखलाओं में से एक है. यह दिल्ली से शुरू होकर गुजरात तक फैली हुई है और इसका बड़ा हिस्सा राजस्थान के 15 जिलों से गुजरता है. उत्तर भारत के पर्यावरण को संभालने में इसकी बड़ी भूमिका है. लेकिन लगातार हो रहे खनन और अतिक्रमण से यह अपनी असली शक्ल खो रही है. इससे आसपास का मौसम और जीव-जंतु भी प्रभावित हो रहे हैं.
खनन की पड़ताल में चौंकाने वाले खुलासे
एक खोजी टीम ने अरावली में खनन से हो रहे नुकसान की जांच की. अलवर जिले का सरिस्का अभयारण्य सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में से एक है. यह जगह सिर्फ पर्यावरण के लिए ही नहीं बल्कि धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व की भी है. मान्यताओं के अनुसार यहां सप्तऋषियों ने तपस्या की थी. भर्तृहरि की तपोभूमि और पांडवों के वनवास का स्थान भी यही है. उपग्रह से देखने पर यहां की पहाड़ियां ॐ की तरह दिखती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में एक फैसले में अरावली के एक किलोमीटर दायरे में खनन पर रोक लगा दी थी.
2024 में सरकार ने बताया कि इस दायरे में 110 खदानें थीं जिनमें से 68 सक्रिय थीं. अब सरकार का कहना है कि यहां खनन बंद हो चुका है. लेकिन जांच टीम सरिस्का टहला और अलवर के आसपास पहुंची तो हकीकत कुछ और निकली. कई खदानें बंद दिखीं लेकिन मशीनें रखी हुई थीं. स्थानीय लोग बताते हैं कि चोरी-छिपे खनन अभी भी चल रहा है. एक खदान के पीछे अरावली की पहाड़ियां साफ दिख रही थीं. जैसे ही टीम पहुंची कुछ लोग चिल्लाकर रोकने लगे और थोड़ी दूर तक पीछा भी किया.
नए नियमों से बढ़ी चिंता
पर्यावरण मंत्रालय के एक नए प्रस्ताव ने पर्यावरण प्रेमियों को परेशान कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए ड्राफ्ट के अनुसार अब सिर्फ 100 मीटर ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली का संरक्षित हिस्सा माना जाएगा. यह 2010 के फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के नियमों को बदल रहा है जहां 3 डिग्री ढलान 115 मीटर ऊंचाई और 100 मीटर बफर जोन को शामिल किया गया था. अक्टूबर 2024 में एफएसआई ने नए सुझाव दिए जिसमें 30 मीटर ऊंचाई और 4.57 डिग्री ढलान को मानक बनाकर संरक्षण की बात की गई.
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की आंतरिक रिपोर्ट बताती है कि राजस्थान के 15 जिलों में अरावली की 12081 पहाड़ियां 20 मीटर से ऊंची हैं. इनमें से सिर्फ 1048 यानी 8.7 प्रतिशत ही 100 मीटर से ऊंची हैं. मतलब नए नियम से 90 प्रतिशत पहाड़ियां संरक्षित क्षेत्र से बाहर हो जाएंगी. आंकड़ों के अनुसार 1594 पहाड़ियां 80 मीटर ऊंची 2656 60 मीटर और 5009 40 मीटर ऊंची हैं. जबकि करीब 107494 पहाड़ियां 20 मीटर तक की ऊंचाई वाली हैं.
पर्यावरणविदों की चेतावनी
पर्यावरण विशेषज्ञ एल के शर्मा कहते हैं कि मंत्रालय की नई परिभाषा पर दोबारा सोचना चाहिए. पहली समस्या यह है कि ऊंचाई को समुद्र तल से नहीं बल्कि जमीन से मापा जा रहा है जो गलत है. दूसरा 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों पर खनन की छूट मिलने से अवैध गतिविधियां बढ़ेंगी और अरावली पूरी तरह बर्बाद हो जाएगी. नए नियमों से न सिर्फ पहाड़ियां नष्ट होंगी बल्कि यहां की पूरी पारिस्थितिकी प्रभावित होगी. पर्यावरण प्रेमी कहते हैं कि सरकार को इस ड्राफ्ट की समीक्षा करनी चाहिए.
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