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Diwali Special: राजाओं के जमाने से बन रहे बूंदी में मिट्टी के अनार, कई राज्यों से आ रही डिमांड

बूंदी में राजाओं के जमाने से मिट्टी का अनार का पटाखा बनाया जाता है. यह अनार 15 से लेकर 400 रुपए तक के दाम में मिलता है, लेकिन अभी मिट्टी और मजदूरी बढ़ाने से इसके भी दाम बढ़ रहे है.

Diwali Special: राजाओं के जमाने से बन रहे बूंदी में मिट्टी के अनार, कई राज्यों से आ रही डिमांड
बूंदी में बनाए जाते हैं मिट्टी के अनार नामक पटाखे.

Diwali Special News: दीपावली के त्योहार की तैयारी पूरे देश में बड़े धूमधाम से की जा रही है. त्योहार की रंगत बाजार में दिखने लग गई है. बाजार सजने लगे हैं, घर संवरने लग गए हैं. दीवाली के मौके पर पटाखे चलाने का पुराना रिवाज है. इस लिए बाजारों में पटाखों की आवक शुरू हो गई है. लेकिन हम आपको राजस्थान के एक ऐसे पटाखे के बारे में बताने जा रहे हैं, जो वर्षों से प्रचलित है. हम बात कर रहे हैं बूंदी के मिट्टी के अनार की जो बूंदी सहित पूरे हाड़ौती में प्रसिद्ध है. साथ ही देश के अन्य राज्यों में भी इस मिट्टी के अनार का बड़ा क्रेज है. 

ऑर्डर देकर बनवाते हैं लोग 

वहीं लोग बड़े-बड़े ऑर्डर देकर इन मिट्टी के अनार को दीपावली के अवसर पर बनवाते हैं. बूंदी के मिट्टी वाले अनार का क्रेज इस वजह से ज्यादा होता है, क्योंकि यह अनार लंबे समय तक चलता है और करीब 30 से 40 फिट तक आसमान में रोशनी देता है. साथ ही इससे कोई शोर या तेज आवाज भी नहीं होती है. 

मिट्टी ने अनार पटाखों को तैयार करती हुई महिलायें

मिट्टी ने अनार पटाखों को तैयार करती हुई महिलाएं.

राजाओं के जमाने से बना रहे अनार 

मिट्टी के अनार बनाने वाले शोरगर जमील अहमद ने बताया कि राजा महाराजाओं के जमाने से मिट्टी के अनार बनाने की परंपरा चली आ रही है. प्राचीन समय में अधिक कारीगर हुआ करते थे और बड़ी संख्या में मिट्टी के अनारों को बनाया जाता था. लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा लुप्त होती गई और आज केवल दो ही परिवार इस परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं. हर वर्ष दीपावली से पहले बूंदी में मिट्टी के अनार बनाने की कला को शुरू कर दिया जाता है और बहुत बड़ी मात्रा में मिट्टी के अनार बनाए जाते हैं. 

मिट्टी ने अनार पटाखों को तैयार करती हुई महिला

मिट्टी ने अनार पटाखों को तैयार करती हुई महिला.

तोपों में बारूद भरकर मानते थे दीपावली 

कारीगर कामरान शोरगर ने बताया कि बूंदी में मिट्टी के अनार बनाने का उद्योग वर्षों पुराना है. राजाओं के जमाने से ही यहां पर इस कार्य को शुरू किया गया. पहले जब दीपावली हुआ करती थी तो राजा तोपों में बारुद भरकर दीपावली मनाया करते थे. इसके बाद राजाओं के जमाने से ही गरीब परिवारों को रोजगार देने के लिए मिट्टी के बर्तनों में बारूद भरकर पटाखे बनाने का काम शुरू किया गया. जिससे लोगों को रोजगार मिल सके, तब से ही यह परंपरा शुरू हो गई.

मिट्टी ने अनार पटाखों को तैयार करने के लिए रखा हुआ सामान

मिट्टी ने अनार पटाखों को तैयार करने के लिए रखा हुआ सामान

अनार का कई राज्यों क्रेज 

शोरगर जमील अहमद बताते हैं कि केवल बारिश के तीन माह में यह कारोबार बंद रहता है. बाकी पूरे साल यह कारोबार चलता है. दीपावली के अलावा शादी समारोह में भी इस आतिशबाजी की विशेष डिमांड रही है. दीपावली के अवसर पर बूंदी से अनार खरीदने के लिए पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात राज्यों से लोग आते हैं. साथ ही राजस्थान के उदयपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, जयपुर, अजमेर, सवाई माधोपुर, टोंक, बारां, कोटा और झालावाड़ जिलों से कई लोग आते हैं. 

मिट्टी ने अनार को तैयार करते हुए कारीगर

मिट्टी ने अनार को तैयार करते हुए कारीगर

अनार से नहीं होता है शोर-शराबा 

कोटा से आए व्यापारी राजेंद्र ने बताया कि वह पिछले 25 से 30 साल से बूंदी के अनार को लेकर जाते हैं. हमारे रिश्तेदार अन्य राज्यों में रहते हैं, वो इसकी बहुत डिमांड करते है. इसकी खास बात यह है कि ना तो कोई आवाज और ना कोई शोर-शराबा साथ ही शानदार रोशनी होने के कारण इसको पसंद किया जाता है. साथ ही बूंदी के प्रसिद्ध अनार को ज्वालामुखी, औलंपिक घूम, नीला आकाश, धन गरज, मेहताब, झरना और तारे हम हमारे के नाम से भी जाना जाता है. 

15 से लेकर 400 रुपए तक के दाम

जानकारी के अनुसार बूंदी के मिट्टी का अनार 15 से लेकर 400 रुपए तक के दाम में मिलता है. लेकिन अभी मिट्टी और मजदूरी बढ़ाने से इसके दाम बढ़ रहे है. पहले यह सभी अनार 3 रुपए से लेकर 100 तक में मिल जाते थे. हालांकि बूंदी के इन अनार पर कोई ब्रांड भी नहीं है और जितनी इनकी डिमांड है, वह मार्केट में उपलब्ध नहीं हो पाते हैं.

महंगाई बढ़ने से बढ़ाए दाम 

शोरगर जमील का कहना है कि पहले जहां पर मिट्टी का खाली खोल कुछ पैसों में आ जाया करता था, लेकिन अभी ये एक और दो रुपए के हो गए. जबकि वर्तमान में छोटा वाला 4 रुपए और बड़ा वाला अनार 20 से 25 रुपए में मिल रहा है. हालांकि इन्हें लाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा हमें ही करना पड़ता है और लाने ले जाने में 5 प्रतिशत माल टूट भी जाता है.

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