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डूंगरी बांध महापंचायत ने सरकार को दिया 1 दिसंबर का अल्टीमेटम, 10 दिसंबर को हजारों किसान करेंगे उग्र आंदोलन 

राजस्थान के करौली जिले में डूंगरी बांध परियोजना के खिलाफ किसानों की महापंचायत हुई. जिसमें हजारों किसानों ने जमीन-गांव डूबने पर चिंता जताई. साथ ही अब 1 दिसंबर तक सीएम से बात न हुई तो 10 दिसंबर से उग्र आंदोलन होगा. 

डूंगरी बांध महापंचायत ने सरकार को दिया 1 दिसंबर का अल्टीमेटम, 10 दिसंबर को हजारों किसान करेंगे उग्र आंदोलन 
करौली में डूंगरी बांध के विरोध में महापंचायत हो रही है.

Rajasthan News: राजस्थान के करौली जिले में डूंगरी बांध परियोजना के खिलाफ किसानों का गुस्सा फूट पड़ा. शुक्रवार को ग्राम पंचायत जोड़ली के पावर हाउस परिसर में हुई महापंचायत राजनीतिक झगड़ों और जोरदार नारों से गूंज उठी. हजारों किसान और स्थानीय लोग यहां जमा हुए थे. वे बांध बनने से अपनी जमीन और गांव डूबने की चिंता में थे. महापंचायत में बड़े नेता शामिल हुए लेकिन उनके बीच आरोप-प्रत्यारोप ने माहौल को और गर्म कर दिया. अंत में फैसला हुआ कि अगर 1 दिसंबर तक मुख्यमंत्री से सकारात्मक बात नहीं हुई तो 10 दिसंबर से तेज आंदोलन शुरू होगा. 

महापंचायत का आयोजन और प्रमुख चेहरे

डूंगरी बांध विरोध संघर्ष समिति करौली-सवाई माधोपुर ने इस महापंचायत का आयोजन किया. अशोक सिंह बना ने अध्यक्षता की जबकि रामसहाय फौजी ने संचालन संभाला. मंच पर पूर्व मंत्री रमेश चंद मीणा, विधायक हंसराज मीणा, पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत जैसे दिग्गज नेता मौजूद थे.

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युवा नेता नरेश मीणा भी वहां थे. उन्होंने आंदोलन को 'करो या मरो' की तर्ज पर आगे बढ़ाने का ऐलान किया. किसानों ने बांध के खिलाफ एकजुट होकर नारे लगाए और अपनी पीड़ा साझा की. लेकिन नेताओं के आपसी विवाद ने सबका ध्यान खींच लिया.

बांध के प्रभाव की डरावनी सच्चाई

पूर्व मंत्री रमेश चंद मीणा ने बांध की हकीकत बताई. उन्होंने कहा कि डूब क्षेत्र में 88 गांव आएंगे. करीब 21743 हेक्टेयर यानी लगभग 87 हजार बीघा जमीन प्रभावित होगी. पहले चरण में 68 गांव और दूसरे में 88 गांव विस्थापित होंगे. परियोजना पर कुल 10045 करोड़ रुपये खर्च होंगे. 1600 मीटर लंबा बांध बनेगा और 45 प्रतिशत पानी 11 जिलों को जाएगा. लेकिन सपोटरा, भूरी पहाड़ी जैसे इलाके अभी भी पानी की कमी से जूझते रहेंगे.

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मीणा ने सरकार पर हमला बोला कि वह नदियों को बचाने की बजाय जंगलों और गांवों को तबाह कर रही है. उन्होंने संघर्ष समिति पर भी टिप्पणी की कि वे बिना पूरी जानकारी के विरोध कर रहे हैं. राजेंद्र गुढ़ा ने केंद्र सरकार को किसान विरोधी बताया. उन्होंने तीन कृषि कानूनों का उदाहरण दिया कि जैसे वे वापस लिए गए वैसे ही जनता की एकता से बांध परियोजना रद्द कराई जा सकती है. गुढ़ा ने कहा कि जनता के घर उजाड़ने वाले फैसलों के खिलाफ सबको मिलकर लड़ना होगा.

आरोप-प्रत्यारोप से थम न पाया हंगामा

कार्यक्रम शुरू होते ही पूर्व मंत्री रमेश चंद मीणा, विधायक हंसराज मीणा और पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा के बीच तीखी बहस छिड़ गई. रमेश मीणा ने विधायक हंसराज पर जनता की समस्याओं से दूर रहने का आरोप लगाया. जवाब में हंसराज मीणा भड़क गए और दोनों पूर्व मंत्रियों पर पिछले 15 सालों से जनता को बांटने तथा क्षेत्र के विकास को नजरअंदाज करने का इल्जाम जड़ दिया.

राजेंद्र गुढ़ा ने भी सत्ताधारी दल के विधायकों और सांसदों को निशाने पर लिया. उन्होंने कहा कि इन्हें मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के सामने बांध का मुद्दा मजबूती से उठाना चाहिए. इस झगड़े से मंच पर कुछ देर हंगामा मच गया. राकेश टिकैत ने इस अव्यवस्था पर गुस्सा जताया और कहा कि ऐसे में आंदोलन कैसे मजबूत होगा. किसानों का आक्रोश देखते ही बनता था. वे चिल्ला रहे थे कि बांध उनके घर और खेत उजाड़ देगा.

उग्र आंदोलन की तैयारी और चेतावनी

देर शाम कोर कमेटी की बैठक में बड़ा फैसला लिया गया. अगर 1 दिसंबर तक मुख्यमंत्री से बांध रद्द करने पर कोई अच्छी बात नहीं हुई तो 10 दिसंबर से उग्र आंदोलन शुरू होगा. किसान अब और इंतजार नहीं करेंगे. वे सड़कों पर उतरने को तैयार हैं. यह महापंचायत दिखाती है कि डूंगरी बांध का मुद्दा अब सिर्फ स्थानीय नहीं बल्कि राजनीतिक और किसान आंदोलन का बड़ा हिस्सा बन गया है.

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