राजस्थान हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी परिवार को नौकरी देने के लिए उसकी आर्थिक स्थिति को “भिखारी जैसी” मान लेना जरूरी नहीं है. न्यायमूर्ति फरजंद अली ने टिप्पणी की कि करुणा आधारित नियुक्ति को आंकड़ों और गणनाओं तक सीमित नहीं किया जा सकता. श्रीगंगानगर निवासी हरजीत सिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की. उनके पिता दर्शन सिंह 37 वर्षों तक बैंक में कार्यरत रहे थे और 2019 में उनका निधन हो गया. हरजीत सिंह ने पिता की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति मांगी थी, लेकिन बैंक ने उनकी मांग को मानने से इनकार किया. इसके बाद हरजीत सिंह ने अदालत का दरवाजा खटखटाया.
बैंक ने अति-दरिद्र मानने से किया इनकार
बैंक ने प्रार्थी का आवेदन खारिज करते हुए कहा कि परिवार को “अति-दरिद्र” श्रेणी (कंगाल) में नहीं माना जा सकता है. इसके पीछे तर्क दिया गया कि परिवार को रिटायरमेंट लाभ के रूप में लगभग 34.66 लाख रुपए मिल चुके हैं. जबकि हरजीत की मां का कहना है कि बैंक ने पुराने कर्जों की 8.58 लाख रुपए की राशि ग्रेच्युटी में से ही काट ली.
परिवार पर भारी लोन, बैंक ने नहीं माने तर्क
दरअसल, दर्शन सिंह की मौत से पहले उनके इलाज पर भी पिछले 4 वर्षों में 12 से 15 लाख रुपए तक खर्च हुआ. इस दौरान परिवार ने वित्त कंपनियों और परिचितों से कर्ज लिया. परिवार का अपना मकान नहीं है और वे किराए पर रहते हैं. हरजीत बेरोजगार है और परिवार के पास स्थायी आय नहीं है. इन सबके बावजूद बैंक ने दोबारा भी आवेदन को नकार दिया.
कोर्ट ने की ये 4 अहम टिप्पणियां
- कोर्ट ने कहा कि वेतनभोगी कर्मचारी के परिवार को CPC वाली ‘कंगाल' श्रेणी में रखना व्यावहारिक नहीं है. अगर यही मानक रहा तो किसी भी सरकारी कर्मचारी के परिजन कभी इस योजना का लाभ नहीं ले पाएंगे.
- अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य मुश्किल समय में आर्थिक सहारा देना है, ना कि परिवार को पूरी तरह टूटने दिया जाए.
- PF और ग्रेच्युटी को आय नहीं माना जा सकता. ये परिवार की सुरक्षा के लिए मिलते हैं. इनको स्थायी कमाई का आधार बताकर नियुक्ति न देना गलत है.
- बैंक की स्कीम में लिखा है कि परिवार में कमाने वाला मौजूद होने पर भी नियुक्ति दी जा सकती है. तो फिर बेरोजगार बेटे को ‘आप निर्धन नहीं' कहकर मना करने का आधार कैसे बन सकता है?
बैंक ने बिना सोचे-समझे लिया फैसला- हाईकोर्ट
मामले की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने बैंक को फटकार भी लगाई. राजस्थान हाईकोर्ट ने बैंक के 2019 और 2020 के आदेशों को “सोच-समझ के बिना लिया गया निर्णय” बताया और इस आदेश को रद्द किया. बैंक को निर्देश दिए गए हैं कि चार सप्ताह के भीतर मामले पर फिर से विचार कर नया और तर्कपूर्ण आदेश जारी करें.
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