
Status of Gadisar Sarovar: पानी की कमी जैसलमेर के लिए कोई नई बात नही है, इसी वजह से अकाल और जैसलमेर को एकदूसरे का पर्याय भी कहा जाता है. कहा जाता है कि एक समय में जैसलमेर में एक घड़े पानी के लिए दस घड़े घी देने में भी लोग हिचकिचाते नहीं थे. हिंदुस्तान के पश्चिमी सरहदी मरुस्थल में पानी की सार्थक सोच का प्रतीक गड़ीसर सरोवर आज संरक्षण के अभाव में है. जैसलमेर जहां चारों तरफ रेत ही रेत है. एक वक्त था जब इस रेत के समुन्द्र में गडीसर एक मात्र पानी का स्त्रोत था. यह कहानी गड़ीसर सरोवर की है जिसे हम उसी के भाव से समझते हैं.

'मै गड़ीसर सरोवर हूं'
'मैं' वही गड़ीसर सरोवर जिसने लगभग 750 साल तक जैसलमेर की प्यास बुझाई. मेरा जन्म 13 वीं शताब्दी में हुआ. जैसलमेर के तत्कालीन महारावल गड़सी सिंह ने मुझे जीवंत रूप दिया था. जैसलमेर के शासकों व प्रजा द्वारा समय के साथ मेरा विकास भी किया गया. 1910 में मुकुट के रूप में टीलों की पोल का निर्माण किया गया. जिसने मेरी स्वर्णिम आभा को चार चांद लगा दी. मेरा पानी पूजा अर्चना व पीने के लिए उपयोगी था. मुझे गंगा सा पवित्र माना जाता था, लेकिन अब मेरे जल भराव क्षेत्र में लोग अतिक्रमण कर रहे है.
मुझमें समाई पीले पत्थर से बनी नकाशीदार छत्रिया व बंगलिया जिसे देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है. मैं वही गडीसर हूं, जिसने जहां के पर्यटन को बढ़ाने में एक अहम योगदान दिया, लेकिन आज मै निराश हूं, क्योकि अब मेरी कदर नही की जाती. मुझे याद है एक वक्त ऐसा भी था जब जैसलमेर के वाशिंदे चरण पादुकाओं को बाहर उतार कर फिर मेरे घाट पर प्रवेश करते थे. आज अपनी बदहाली पर मैं आंसू बहा रहा हूं.

बदहाल हालत में सरोवर
पर्यटन नगरी जैसलमेर अपनी ऐतिहासिक पीले पत्थरों की इमारतों के लिए दुनिया में प्रसिद्ध है, लेकिन यहां के पर्यटन स्थलों के संरक्षण को लेकर कोई गंभीर नहीं है. जैसलमेर की प्रसिद्ध गड़ीसर सरोवर पर कई कलात्मक छतरियां मरम्मत का इंतजार ही कर रही हैं. जगह-जगह से पत्थर टूट कर गिर रहे हैं. कई जगहों के पत्थर भी निकल गए हैं और हालत बेहद खराब हो गए हैं. पानी के बीच बनी छतरियों के पत्थर एक-एक करके पानी में गिर गए हैं, जिससे इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई हैं. जिम्मेदार अधिकारी इसकी मरम्मत का काम नहीं करवा रहे हैं. जिससे ये इमारतें कभी भी पानी में समा सकती हैं.

कभी लोग मंदिर की तरह करते थे घाटों का सम्मान
जैसलमेर की प्यासी प्रजा की प्यास बुझाने के लिए तत्कालीन महारावल गड़सी सिंह ने गड़ीसर सरोवर का निर्माण करवाया. 1980 इस सरोवर का पानी उपयोगी साबित हुआ है. लगभग 750 साल तक जैसलमेर के सभी मंदिरों में गड़ीसर का पवित्र जल उपयोग में लिया जाता था. एक वक्त ऐसा भी था जब गड़ीसर के घाट पर जूते-चप्पल के उपयोग की सख्त मनाही थी.
आम लोगों का गड़ीसर से मोहभंग हो गया
1980 के बाद धीरे-धीरे पानी घरों में सुलभ उपलब्ध होने के बाद आम लोगों का गड़ीसर से मोहभंग हो गया. इस तरह धीरे धीरे गड़ीसर की पवित्रता भी खत्म ही हो गई है. हालात ये हैं कि आज गड़ीसर सरोवर का पानी अब ना पीने और ना ही मंदिरों में उपयोग करने योग्य रहा है.
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