Jeen Mata Mandir: राजस्थान के सीकर जिले के प्रसिद्ध शक्तिपीठों (Shaktipeeth)में से एक हैं प्राचीन जीण माता जी मंदिर (Jeen Mata Mandir) जो पूरे देश में विख्यात है. यह मंदिर जीण और हर्ष नाम के भाई-बहन के अटूट रिश्ते के रूप में भी जाना जाता है. मंदिर गांव की अरावली पर्वत श्रृंखला की तीन पहाड़ियों के बीच बना हुआ है. हर साल देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु जीण माता धाम पहुंचकर मां जीण के दरबार में शीश नवाते हैं. मंदिर की यह भी बड़ी मान्यता है कि मां जिण भवानी के दर्शन मात्र से कोढ़ रोग भी ठीक हो जाते है. इसके साथ ही भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने पर वह सिर पर जलते कोयले की सिगड़ी रखकर या मां जीण भवानी का झंडा लेकर पैदल चलकर जीण धाम पहुंचते हैं. शारदीय नवरात्र में मां का लक्की मेला की भी शुरूआत होती है, जहां लाखों की संख्या में भक्त आते है कई वर्षों पहले जीणमाता जी के पशु बलि का रिवाज भी था लेकिन वर्तमान में सरकार और प्रशासन की ओर से इस पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है.
घर से नाराज होकर माता आई थी अरावली
मान्यताओं के अनुसार जीणमाता का जन्म राजस्थान के चूरू जिले के एक छोटे से गांव घांघू के चौहान वंश के राजघराने में हुआ था. पारिवारिक कलह के कारण जीण नाराज होकर सीकर के पास अरावली पर्वत श्रृंखला की पहाड़ियों पर आकर बैठ गई थी.जीण को मनाने के लिए उसका भाई हर्ष भी उसके पीछे गया. लेकिन जीण ने वापस जाने से इनकार कर दिया और पहाड़ी पर ही तपस्या शुरू कर दी.जब उसकी बहन वापस नहीं लौटी तो बड़ा भाई हर्ष भी पास की पहाड़ियों पर बैठकर तपस्या में लीन हो गया. मां जीण को शक्ति का अवतार माना जाता है, जबकि उनके बड़े भाई हर्ष को भगवान शिव का अवतार कहा जाता है. मां जीण का प्राचीन मंदिर जीणमाता गांव में स्थित है, जबकि उनके बड़े भाई हर्ष का मंदिर जीणमाता जी मंदिर से थोड़ी दूरी पर अरावली की पहाड़ियों में हर्षनाथ मंदिर के नाम से बना हुआ है.
औरंगजेब ने टेके थे माता के आगे घुटने
इस कथा के अलावा एक कहानी इतिहास में और प्रसिद्ध है. जिसमें माता की महिमा से मुगल बादशाह औरंगजेब ने उनके आगे घुटने टेक दिए थे. जीण माता जी मंदिर के महंत विनय पुजारी ने बताया कि जब मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना ने शेखावाटी के मंदिरों को तोड़ना शुरू किया था तो उस समय जीण माता के भक्तों ने उनसे गुहार लगाई. जिस पर माता ने अपने चमत्कार से औरंगजेब की सेना पर मधुमक्खियां (भौंरे) छोड़ दिए. मां जीण के चमत्कार के कारण मधुमक्खियों के झुंड ने सेना पर हमला कर सैनिकों को लहूलुहान कर दिया, जिससे बचे हुए सैनिक युद्ध के मैदान से भाग गए. यह दृश्य देखकर मुगल शासक औरंगजेब को भी मां जीण भवानी के सामने नतमस्तक होना पड़ा. उसने उस समय जीण माता से क्षमा मांगी और मंदिर में जलने वाली अखंड ज्योति के लिए दिल्ली के दरबार से तेल भेजने का वादा किया. भवरों के आक्रमण करने कारण जीणमाता को भंवरों की देवी भी कहा जाने लगा था.
मुस्लिम परिवार करता है मां की सेवा
मुगल बादशाह ने जीण माता की शक्ति के कारण ही उनके दरबार में चांदी का छत्र चढ़ाया था और माता की सेवा करने के लिए एक मुस्लिम परिवार को भी यही छोड़ दिया था. जिसके वंशज आज भी जीणमाता जी मंदिर की सीढ़ियों को धोने और साफ सफाई करने का काम करते है. पुजारी परिवार ने बताया कि जीणमाता जी मंदिर में पहले दिल्ली दरबार से तेल भेजा जाता था और उसके बाद जयपुर राजघराने से तेल की व्यवस्था की जाने लगी थी. वर्तमान राज्य सरकार के देवस्थान विभाग की ओर से तेल के लिए अनुदान देने की परंपरा जारी है.
12 अक्टूबर तक चलेगा लक्खी मेला
प्राचीन जीणमाता जी मंदिर में हर साल बसंत ऋतु में चैत्र शुक्ल पक्ष और शरद ऋतु में अश्वनी शुक्ल पक्ष को नवरात्रों में लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है. वर्तमान समय में नवरात्रों में हर साल की तरह इस बार भी जीण माता जी धाम में शारदीय नवरात्रि के अवसर पर लक्खी मेले का आयोजन किया गया है. नौ दिवसीय इस लक्खी मेले के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु जीण माता के दरबार में पहुंचेंगे. इस बार यह मेला 12 अक्टूबर तक चलेगा.इस दौरान जीण माता जी मंदिर में कोलकाता के कुसुम और गुलाब के फूलों से विशेष श्रृंगार किया जा रहा है.मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावनाओं को देखते हुए जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन की ओर से भी बड़े स्तर पर तैयारी की गई है.दातारामगढ़ पुलिस उपाधीक्षक जाकिर अख्तर ने जानकारी देते हुए बताया कि एहतियात और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर मेले में आरएसी, होमगार्ड और पुलिस के करीब 500 से ज्यादा जवान अलग-अलग पॉइंट पर तैनात किए गए हैं। वही अपराधियों पर नजर रखने के लिए करीब 100 ज्यादा सीसीटीवी कैमरे भी अलग-अलग जगह लगाए गए हैं.
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