Kota-Bundi Lok-Sabha Seat: राजस्थान के कोटा-बूंदी लोकसभा सीट में मीणा वोट जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. कोटा-बूंदी लोकसभा क्षेत्र का गठन कोटा और बूंदी जिले के कुछ हिस्सों को मिलाकर किया गया है. सीट पर हुए कुल 16 लोकसभा चुनाव हुए. कांग्रेस की 4 बार जीत हुई. बीजेपी 6 बार जीती.
साल 1952 में हुए पहले आम चुनाव में रामराज्य परिषद से चंद्रसेन ने जीत का परचम लहराया, तो साल 1957 में कांग्रेस से ओंकारलाल ने बाजी मारी. वहीं, साल 1962, 1967 और 1971 के चुनाव में इस सीट पर जनसंघ का कब्जा रहा है. साल 1977 की जनता लहर में इस सीट पर जनसंघ पृष्ठभूमि के बीएलडी उम्मीदवार कृष्णकुमार गोयल जीते.
साल 1980 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर गोयल इस सीट से फिर जीत गए. साल 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के शांति धारीवाल जीते, तो साल 1989 में बीजेपी के दाऊदयाल जोशी ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली. इसके बाद दाऊदयाल जोशी साल 1996 तक लगातार तीन बार यहां के सांसद बने.
2014 में बीजेपी के ओम बिरला जीते
साल 2004 में कौशल ने दोबारा जीत दर्ज की, लेकिन साल 2009 के चुनाव में कोटा राजघराने के इज्यराजसिंह ने कांग्रेस के टिकट पर पार्टी को जीत दिलाई. साल 2014 में बीजेपी के ओम बिरला ने सिंह को हराकर एक बार फिर इस सीट पर बीजेपी को काबिज कर दिया. अब इज्यराजसिंह बीजेपी में शामिल हो चुके हैं और कभी एक- दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले नेता वर्तमान में एक दल में शामिल हैं.
साल 2014 लोकसभा चुनावों के दौरान जिले की सभी 6 विधानसभा सीटों पर भाजपा के विधायक थे, जिसका फायदा भाजपा प्रत्याशी ओम बिरला को मिला था. 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त कोटा उत्तर, पीपल्दाऔर सांगोद में कांग्रेस के विधायक थे, जबकि 5 विधानसभा में भाजपा विधायक हैं. इस बार हुए चुनाव में 4 सीटें बीजेपी और 4 कांग्रेस के पास हैं.
उद्योग का बड़ा केंद्र था यह लोकसभा क्षेत्र
कोटा और बूंदी जिले की विधानसभा सीटों को मिलाकर बना यह लोकसभा क्षेत्र एक जमाने में उद्योग का बड़ा केंद्र था, लेकिन हाल के समय में कोचिंग यहां एक बड़ा उद्योग बनकर उभरा है. हाड़ौती का यह क्षेत्र कृषि के लिहाज से उपजाऊ है और धनिया की सबसे बड़ी रामगंजमंडी यहीं पर स्थित है.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की जनसंख्या 27,16,852 है, जिसका 49.27 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण और 50.73 प्रतिशत हिस्सा शहरी है. वहीं कुल आबादी का 20.4 फीसदी अनुसूचित जनजाति और 12.76 फीसदी अनुसूचित जाति हैं.
गुर्जर-मीणा मतदाता हैं निर्णायक
कोटा-बूंदी लोकसभा सीट पर मीणा जाति के मतदाताओं का वोट निर्णायक माना जाता है, वहीं गुर्जर भी कुछ इलाकों में प्रभावी हैं. इनके अलावा ब्राह्मण, अनुसूचित जाति और वैश्य मतदाताओं का भी अहम रोल रहता है. 2014 के आंकड़ों के मुताबिक इस सीट पर 17,44,539 मतदाता थे, जिसमें 9,13,386 पुरुष और 8,31,153 महिलाएं थीं. इस बार 19.31 लाख मतदाता प्रत्याशियों के भाग्य के फैसला करेंगे.
ओम बिरला का चुनाव लड़ना तय
कोटा-बूंदी लोकसभा सीट से लोकसभा स्पीकर ओम बिरला का बीजेपी से चुनाव लड़ना लगभग तय माना जा रहा हैं, लोकसभा स्पीकर रहते ओम बिरला पूरे 5 साल संसदीय क्षेत्र में सक्रिय भूमिका में हैं, वह लगातार कोटा और बूंदी में विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होते हैं. यहां बिरला कार्यकर्ताओं और समर्थकों की लंबी फौज है और बिरला चुनाव मैनेजमेंट में माहिर माने जाते हैं. इसलिए बिरला के सामने कांग्रेस को फिलहाल मजबूत कैंडिडेट उतारना भी चुनौती बन रहा है.
बड़े चेहरे को मैदान में उतर सकती है कांग्रेस
कोटा-बूंदी सीट से कांग्रेस कोटा उत्तर से विधायक और पूर्व मंत्री शांति धारीवाल के नाम की भी चर्चा है. माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी बड़े चेहरे को मैदान में उतर सकती है. पीपल्दा विधानसभा सीट से पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर आए मीणा समाज के युवा चेतन पटेल कांग्रेस प्रत्याशी बन सकती है इसके अलावा भरत सिंह पूर्व मंत्री और भाजपा छोड़ कांग्रेस में वापस शामिल हुई ममता शर्मा के नाम की भी चर्चा है.