
Health News: पारिजात वृक्ष जिसे हरसिंगार या नाइट जैस्मिन भी कहते हैं, प्रकृति का अनमोल रत्न है. हिंदू पुराणों में इसे समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक माना गया है. कहा जाता है कि यह स्वर्ग में इंद्र के बगीचे की शोभा था और इसे केवल अप्सरा उर्वशी ही छू सकती थी. भगवान श्रीकृष्ण ने इसे धरती पर लाकर अपनी पत्नी सत्यभामा की वाटिका में लगाया. रोचक बात यह है कि इसके फूल सत्यभामा की वाटिका में लगे, पर रुक्मिणी की वाटिका में गिरते थे. यह कहानी पारिजात को और भी रहस्यमयी बनाती है.
सुगंध और सुंदरता का प्रतीक
पारिजात का पेड़ 10-15 फीट ऊंचा होता है और हजारों साल तक जीवित रह सकता है. इसके सफेद फूलों और केसरिया डंठल की सुगंध रात में चारों ओर फैलती है. सुबह होते ही फूल जमीन पर बिखर जाते हैं. इन्हें तोड़ना मना है, केवल वही फूल उपयोग में लाए जाते हैं जो स्वयं गिरते हैं. इसकी खुशबू न सिर्फ मन को शांति देती है, बल्कि नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करती है. यही कारण है कि इसे कल्पवृक्ष भी कहा जाता है, जो मनोकामनाएं पूरी करने वाला माना जाता है.
औषधीय गुणों का भंडार
आयुर्वेद में पारिजात को संजीवनी माना गया है. इसके पत्तों का काढ़ा साइटिका, जोड़ों के दर्द और बुखार में बहुत लाभकारी है. 10-15 ताजे पत्तों को पानी में उबालकर बनाया गया काढ़ा सुबह-शाम पीने से दर्द में तुरंत आराम मिलता है. यह थकान मिटाने और शरीर को तरोताजा रखने में भी मदद करता है.
प्रकृति और संस्कृति का संगम
पारिजात वृक्ष न केवल पर्यावरण को सुगंधित करता है, बल्कि हमारी संस्कृति और स्वास्थ्य से भी गहरा नाता रखता है. यह वृक्ष हमें प्रकृति के प्रति सम्मान और इसके औषधीय महत्व को अपनाने की प्रेरणा देता है.
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