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This Article is From Nov 02, 2023

पिता वाजपेयी सरकार में थे मंत्री, बेटा वसुंधरा से लड़ा, अब कांग्रेस से फिर मैदान में; कहानी मानवेंद्र सिंह जसोल की

Manvendra Singh Jasol: 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले मानवेंद्र कांग्रेस में शामिल हुए और सीधी चुनौती दे डाली वसुंधरा राजे को. वसुंधरा को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में मानवेंद्र के पिता जसवंत सिंह का बड़ा हाथ था.

पिता वाजपेयी सरकार में थे मंत्री, बेटा वसुंधरा से लड़ा, अब कांग्रेस से फिर मैदान में; कहानी मानवेंद्र सिंह जसोल की
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ मानवेंद्र सिंह जसोल.

Manvendra Singh Jasol:  राजस्थान में विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश का सियासी पारा हाई है. बड़े नेताओं के दौरे हो रहे हैं. एक-दूसरे पर बयानबाजी भी खूब हो रही है. टिकट मिलने की खुशी के साथ-साथ टिकट कटने का गम भी देखा जा रहा है. जिससे नाराज हो कर पार्टी के पुराने वफादार बागी तेवर अपना रहे हैं. कुल मिलाकर प्रदेश पूरी तरह से चुनावी रंग में रंगा है.  प्रदेश की सभी 200 विधानसभाओं सीटों पर 25 नवंबर को एक चरण में मतदान होना है. वोटों की गिनती तीन दिसंबर को होगी. 

चुनाव को लेकर जारी सियासी चकल्लस के बीच NDTV Rajasthan ने शुरू की है सियासी किस्सों की खास सीरीज. इस सीरीज में हम आपको बताने जा रहे हैं प्रदेश की राजनीति के पुराधाओं की कहानी, जो अपने आप में अनूठी है. इस सीरीज की पहली कड़ी में आपने राजस्थान के दूसरे मुख्यमंत्री सीआर वेंकटाचार की कहानी पढ़ी होगी. अब आज बात कांग्रेस नेता मानवेंद्र सिंह जसोल की. 

मानवेंद्र सिंह जसोल बचपन से जवानी तक भाजपा में रहे. इनके पिता जसवंत सिंह भाजपा के कद्दावर नेता थे. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में जसवंत सिंह विदेश मंत्री, वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री रहे. लेकिन राजनीतिक जीवन के अंतिम दौर में जसवंत सिंह की अपनी ही पार्टी से ठन गई. पिता द्वारा शुरू की गई बगावत को आज मानवेंद्र सिंह जसोल आगे बढ़ा रहे हैं. 

पिता जसवंत सिंह के साथ मानवेंद्र सिंह जसोल.

पिता जसवंत सिंह के साथ मानवेंद्र सिंह जसोल.

2014 के लोकसभा चुनाव में जसवंत सिंह को बीजेपी ने टिकट देने से इनकार कर दिया था. पार्टी के इस फैसले के खिलाफ जसवंत सिंह बागी बन गए. उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा. जसवंत सिंह की बगावत के दौरान मानवेंद्र सिंह भी हर कदम पिता के साथ रहे. 

2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में मानवेंद्र सिंह ने खुले मंच से भाजपा से अदावत की घोषणा कर दी थी. 22 सितंबर 2018 को बाड़मेर की स्वाभिमान रैली में मानवेंद्र सिंह ने कहा- एक ही भूल, कमल का फूल. इस एक लाइन के साथ यह साफ हो गया कि अब मानवेंद्र अब भाजपा से दूर हो चुके थे. 

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2018 के विधानसभा चुनाव से पहले मानवेंद्र कांग्रेस में शामिल हुए और सीधी चुनौती दे डाली वसुंधरा राजे को. वसुंधरा को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में मानवेंद्र के पिता जसवंत सिंह का बड़ा हाथ था. लेकिन जब रिश्ते बिगड़े तो मानवेंद्र सीधे वसुंधरा से टक्कर लेने मैदान में उतर गए. 

2018 के चुनाव में मानवेंद्र ने झालावाड़ जिले से झालरापाटन सीट से वसुंधरा राजे के खिलाफ चुनाव लड़ा. झालरापाटन वसुंधरा का गढ़ हैं. इसके बाद भी उनके खिालफ मानवेंद्र ने 85 हजार से अधिक वोट हासिल किए. वो चुनाव जीत तो नहीं सके लेकिन राजपूती तेवर दिखाते हुए सीएम को कड़ी चुनौती दी. 

2018 में झालरापाटन से बीजेपी की प्रत्याशी वसुंधरा राजे को 116484 वोट मिला था. उधर, कांग्रेस उम्मीदवार मानवेन्द्र सिंह को 81504 वोट हासिल हो सके थे, और वह 34980 वोटों से हार गए थे. इस बार कांग्रेस ने मानवेंद्र सिंह सिवाना सीट से मैदान में उतारा है. 

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अमेरिका, लंदन से पढ़ाई फिर पत्रकारिता भी की

19 मई 1964 को जोधपुर में जन्मे मानवेंद्र ने शुरुआती पढ़ाई के बाद उच्च शिक्षा के लिए मेयो कॉलेज गए. फिर आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका और लंदन भी गए. सियासत के समंदर में गोता लगाने से पहले वो स्टेट्समैन और इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबारों में पत्रकार रह चुके हैं.

1999 में मानवेंद्र ने पहला चुनाव लड़ा बाड़मेर-जैसलमेर से लड़ा. सोनाराम ने उन्हें हराया. लेकिन 2004 में वापसी करते हुए मानवेंद्र ने करीब पौने तीन लाख वोटों के रिकॉर्ड अंतर से सोनाराम को पटखनी दे दी. 2013 में वो शिव विधानसभा सीट से विधायक बने लेकिन अगले ही साल पिता के लिए प्रचार के आरोप में पार्टी ने उन्हें सस्पेंड कर दिया.

सवाल यह उठा कि भाजपा में रहते हुए वो अपने बागी हो चुके पिता के प्रचार में क्यों लगे. वक्त गुजरा लेकिन जख्म नहीं भर सके. 22 सितंबर 2018 की रैली में उन्होंने भाजपा से अलग होने का ऐलान मंच से कर दिया और 17 अक्तूबर को पूरे परिवार के साथ कांग्रेस की सदस्यता ले ली. तब से मानवेंद्र सिंह अभी तक कांग्रेस में है.  

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