
Rajasthan Reservation Politics: आदिवासी आरक्षण मंच आरक्षण में उप वर्गीकरण पर 24 नवंबर को बड़ी रैली का आयोजन करने वाला है. भाजपा ने इस मांग का समर्थन किया है, भारत आदिवासी पार्टी (BAP) ने इससे दूरी बनाई है. दोनों के बीच ओबीसी अधिकार मंच ने भी अनुसूचित क्षेत्र की पिछड़ी जातियों के लिए ओबीसी आरक्षण में अलग से कोटे की मांग की है.
अभी क्या है आरक्षण की व्यवस्था?
प्रदेश में अभी दो तरह की व्यवस्था है. सामान्य क्षेत्रों में ओबीसी के लिए 21%, अनुसूचित जाति के लिए 16%, जनजाति के लिए 12%, EWS के लिए 10% और एमबीसी के लिए 5% आरक्षण है. अनुसूचित क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के लिए 45%, अनुसूचित जाति के लिए 5% आरक्षण की व्यवस्था है. ओबीसी आरक्षण यहां लागू नहीं है. शेष 50% पद भी अनुसूचित क्षेत्र के निवासियों के लिए ही आरक्षित हैं.
क्या है आदिवासी आरक्षण मंच की मांग?
राजस्थान में 12 जनजातियों को नोटिफाइड शिड्यूल ट्राइब की कैटेगरी में रखा गया है. इनमें भील और मीणा सबसे बड़ी जनजाति है. 2011 की जनसंख्या के मुताबिक, राजस्थान में भीलों की संख्या 41 लाख से अधिक थी. यह जनजातीय आबादी का 44% है. भील ज्यादातर दक्षिणी राजस्थान के इलाके में रहते हैं. मीणा जनजाति की आबादी 43 लाख से अधिक थी. यह जनजातीय आबादी का कुल 47% है. मीणा ज्यादातर पूर्वी राजस्थान के इलाके में रहते हैं. आदिवासी आरक्षण मंच लंबे समय से अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में उप-वर्गीकरण की मांग कर रहा है.
"प्रदेश में एसटी आरक्षण का लाभ सिर्फ 1 जाति को मिला"
मंच के केंद्रीय कमेटी के सलाहकार प्रो. मणिलाल गरासिया कहते हैं, "यह मांग काफी पुरानी है. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद मंच ने मांग और तेज कर दी. प्रदेश में एसटी आरक्षण का लाभ सिर्फ 1 जाति को मिला है. राजकीय सेवाओं में वंचित वर्गों की पिछड़ी जातियों को उचित भागीदारी नहीं मिल पाई है, इसलिए हम चाहते हैं कि जनसंख्या में मुताबिक अनुपात में आरक्षण दिया जाए. राज्य में अनुसूचित जनजाति के लिए 12% आरक्षण में 6% दक्षिणी राजस्थान के आदिवासियों को दिया जाए."
CM से मिला था प्रतिनिधिमंडल, विधायकों ने लिखी चिट्ठी
इसी मांग के लिए सितंबर में आदिवासी आरक्षण मंच के सदस्यों ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मुलाकात की थी. उप-वर्गीकरण के समर्थन में भाजपा विधायक दीप्ति किरण माहेश्वरी और निर्दलीय विधायक जीवाराम चौधरी ने भी पत्र लिखा है. भाजपा नेता महेंद्रजीत मालवीया भी मंच के मांग के समर्थन में उतरे हैं.
भाजपा का समर्थन,बीएपी ने बनाई दूरी
आरक्षण मंच के मांग को समर्थन देकर भाजपा अपनी जमीन मजबूत करना चाहती है. आरक्षण मंच के सदस्य भीलों के प्रतिनिधित्व की बात करते हैं. मंच के सदस्य अलग-अलग भर्ती परीक्षाओं के परिणाम के हवाले से बताते हैं कि एसटी आरक्षण के बावजूद भील समेत दक्षिणी राजस्थान की जनजाति के उम्मीदवार उस संख्या में नहीं चुने गए, जितनी पूर्वी राजस्थान के जनजातीय समुदाय के उम्मीदवार चुने गए. भाजपा को लग रहा है कि इस मुहिम के समर्थन से वह दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी समाज में अपनी पैठ बना सकती है. क्योंकि, बीएपी ने इस मांग से दूरी बनाई है, इसलिए भाजपा इसे मौके के रूप में देख रही है. भारत आदिवासी पार्टी (BAP) ने इस मांग से दूरी बनाई है. जानकर मानते हैं कि पार्टी खुद को पूरे देश में आदिवासियों की आवाज के रूप में स्थापित करना चाहती है. पार्टी को लगता है कि इस प्रकार की मांग से बृहद आदिवासी पहचान की राजनीति कमजोर होगी, इसलिए वे इससे दूरी बना रहे हैं.
BAP ने कहा-उप वर्गीकरण से समाप्त होगा आरक्षण
हालांकि, BAP के नेता इस मांग के समर्थन में ना होने के दूसरे तर्क गिनाते हैं. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहनलाल रोत कहते हैं, "उप वर्गीकरण आरक्षण समाप्त करने की साजिश है. हम चाहते हैं कि अनुसूचित क्षेत्र के लिए आरक्षण की व्यवस्था में स्केल बढ़ाया जाए. प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षाओं को भी इसमें जोड़ा जाए. हमारा क्षेत्र लंबे समय से पिछड़ा हुआ है. हम क्षेत्र के आधार पर आरक्षण चाहते हैं. अगर उप-वर्गीकरण लागू हुआ तो फिर क्रीमी लेयर भी लागू होगा, धीरे- धीरे आरक्षण समाप्त होगा. हम यह चाहते हैं कि पांचवीं अनुसूची की मूल भावना के अनुरूप आरक्षण लागू हो."
BAP को घेरने के लिए भाजपा को मिला मजबूत हथियार
बीते कुछ सालों में BAP ने आदिवासी अस्मिता, पांचवीं अनुसूची की व्यवस्था जैसे मुद्दों को लेकर जनता के बीच मजबूत पकड़ बनाई है. चुनाव में भी इसका असर देखने को मिला है. भील युवाओं का बड़ा धड़ा BAP के पक्ष में गया है. भाजपा को उम्मीद है कि इस मुद्दे को उठाकर अंजाम तक पहुंचाने से पार्टी दक्षिणी राजस्थान के आदिवासियों में फिर से पैठ जमा पाएगी.
TSP क्षेत्र की अति पिछड़ी जातियों को भी कोटा देने की मांग
ओबीसी अधिकार मंच अनुसूचित क्षेत्र की पिछड़ी जातियों के लिए अलग कोटे की मांग कर रहा है. मंच के नरेश पटेल कहते हैं, "अनुसूचित क्षेत्र की पिछड़ी जातियां काफी पिछड़ी हुई हैं. वे ऐतिहासिक रूप से पिछड़े होने के साथ-साथ क्षेत्रीय उपेक्षा के शिकार भी हुए, इसलिए इस क्षेत्र के ओबीसी अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कमजोर स्थिति में है, इसलिए राज्य के ओबीसी आरक्षण में आदिवासी उप-योजना (TSP) क्षेत्र के ओबीसी जातियों के लिए अलग से कोटा होना चाहिए." साथ ही वे जातीय जनगणना और संख्या के मुताबिक हिस्सेदारी की बात भी करते हैं.
13 नवंबर को दक्षिणी राजस्थान की दो सीटों पर वोटिंग हुई है. 23 को परिणाम आयेंगे और 24 से आरक्षण पर राजनीति तेज होगी. भाजपा इसे खोई हुई जमीन पाने का एक रास्ता मान रही है तो बीएपी को उम्मीद है कि इससे पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा.
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