राजस्थान में निकायों और पंचायतों में अब अफसर राज शुरू हो गया है. 9 नवंबर को जयपुर, जोधपुर और कोटा के सभी 6 नगर निगमों का कार्यकाल खत्म हो गया. इसके साथ ही राज्य की 11 हजार 310 ग्राम पंचायतों और 53 नगरीय निकायों में भी जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है. यानी जब तक नए चुनाव नहीं होते, तब तक पूरे प्रदेश में अफसर प्रशासक के रूप में शासन संभालेंगे. यह पहला मौका है, जब इतनी बड़ी संख्या में स्थानीय निकायों में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि नहीं हैं.
पंच और सरपंचों का कार्यकाल खत्म
राजस्थान की 11,310 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है. इनमें से अधिकतर पंचायतों में सरकार ने मौजूदा सरपंचों को प्रशासक के रूप में कार्यरत रखने के आदेश जारी किए हैं. राज्य में 1,09,228 पंच, 11,320 सरपंच, 6,995 पंचायत समिति सदस्य और 1,014 जिला परिषद सदस्य जनता से चुने गए प्रतिनिधि हैं, लेकिन अब इनमें से अधिकांश का कार्यकाल खत्म हो चुका है. 352 पंचायत समितियों में से 222 समितियों का कार्यकाल नवंबर-दिसंबर में खत्म होने जा रहा है, जबकि 21 जिला परिषदों में भी कार्यकाल समाप्ति की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. इन सभी संस्थाओं में अफसरों को अस्थायी रूप से प्रशासक नियुक्त किया जा रहा है. सरकार ने अभी तक पंचायत समिति और जिला परिषद चुनाव की तारीखें घोषित नहीं की हैं.
चुनावी प्रक्रिया में हो रही देरी
शहरी निकायों की स्थिति भी लगभग समान है. जयपुर, जोधपुर और कोटा के छह नगर निगमों का कार्यकाल 9 नवंबर को पूरा हो गया, जिसके बाद तीनों शहरों में अब संभागीय आयुक्त प्रशासक के रूप में कार्यभार संभालेंगे. प्रदेश में कुल 196 नगर निकायों में से अब तक 53 निकायों में कार्यकाल पूरा होने के बाद प्रशासक नियुक्त किए जा चुके हैं. राज्य सरकार की योजना है कि फरवरी-मार्च 2026 तक सभी शहरी निकायों के चुनाव कराए जाएं. हालांकि, 90 से अधिक निकायों का कार्यकाल जनवरी-फरवरी 2026 तक बचा है, इसलिए एक समान चुनावी कार्यक्रम बनाना कठिन हो गया है. इसके अलावा पुनरीक्षण अभियान के कारण भी चुनावी प्रक्रिया में देरी संभव है.
53 निकायों में अफसरों को जिम्मेदारी
अब तक जिन निकायों में प्रशासनिक नियंत्रण लागू किया जा चुका है, उनमें प्रमुख शहर जयपुर, जोधपुर, कोटा, अलवर, भरतपुर, पाली, बीकानेर और उदयपुर शामिल हैं. राज्य सरकार ने कार्यकाल पूरा करने वाले 53 निकायों में अफसरों को प्रशासक की जिम्मेदारी सौंपी है. स्थानीय स्तर पर अब जनता के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे अपनी रोजमर्रा की समस्याओं को किससे कहें. पहले वार्ड पार्षद, सरपंच या समिति सदस्य तक सीधी पहुंच होती थी, लेकिन अब अफसरों से मिलना मुश्किल है. गांव या कॉलोनी की समस्या अब फील्ड प्रतिनिधि के बजाय सरकारी दफ्तरों तक सीमित रहेगी.
"जनता की शिकायतों को संज्ञान में लें अफसर"
शहरी विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कहा कि 'वन स्टेट, वन इलेक्शन' के तहत सभी निकायों और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराने की योजना थी, लेकिन ओबीसी आयोग की रिपोर्ट में देरी और विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान के कारण यह संभव नहीं हो सका. खर्रा ने यह भी कहा कि प्रशासकों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि जनता की शिकायतों पर तुरंत एक्शन लिया जाए, लापरवाही पर कार्रवाई होगी.
हाईकोर्ट ने समय से चुनाव कराने के दिए आदेश
राजस्थान हाईकोर्ट ने कई बार पंचायतीराज संस्थाओं और निकायों में समय पर चुनाव कराने के आदेश दिए हैं. एकलपीठ ने राज्य निर्वाचन आयोग को 5 साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी संस्थाओं के चुनाव कराने को कहा था, लेकिन खंडपीठ ने उस पर रोक लगा दी. अब एकलपीठ ने निकाय चुनाव कराने के निर्देश दिए हैं, मगर वह आदेश अभी लागू नहीं हुआ है.
खर्च सीमा बढ़ाने पर विचार
राज्य निर्वाचन आयोग पंचायत चुनावों में 10 प्रतिशत तक खर्च सीमा बढ़ाने पर विचार कर रहा है. सूत्रों के अनुसार सरपंच प्रत्याशी अब 50 हजार की जगह 55 हजार रुपए, और जिला परिषद सदस्य 1.65 लाख रुपए तक खर्च कर सकेंगे. 2019 में भी आयोग ने खर्च सीमा दोगुनी की थी.
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