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अलविदा 2024 : राजस्थान की सियासत की वो तीन घटनाएं जिससे बिखरे पुराने 'महारथी', नए मुसाफिरों के हाथ आई सत्ता 

Rajasthan Politics In 2024: प्रदेश और देश की सत्ता में शक्ति के केंद्र बदल गए, तो यह निश्चित ही था कि वसुंधरा और अशोक गहलोत की जोड़ी पर भी इसका असर दिखेगा, लेकिन ऐसा दिखेगा किसी ने सोचा न था.

अलविदा 2024 : राजस्थान की सियासत की वो तीन घटनाएं जिससे बिखरे पुराने 'महारथी', नए मुसाफिरों के हाथ आई सत्ता 
2024 का साल मरुप्रदेश की राजनीति में हुए ऐतिहासिक बदलाव का प्रतीक बन गया

Rajasthan Politics: राजस्थान की सियासत के बारे में कहा जाता है कि यह, यहां की आबोहवा की तरह गर्म तो होती है, लेकिन शाम के समय यह लू पुरवाई में तब्दील हो जाती है. रेगिस्तान की रेत दिन के समय असहनीय तपिश पैदा करती है, तो रात के आखिरी पहर में यह ठंडी हो जाती है. आज जब साल का आखिरी दिन है, तब पीछे मुड़ कर देखते हैं तो मरुप्रदेश की राजनीति में नए अध्याय का आग़ाज़ जैसा लगता है. आइये बात करते हैं इस साल हुईं उन तीन घटनाओं के बारे में जिन्होंने इस रेगिस्तानी सूबे की सियासत में ऐतिहासिक बदलाओं की नींव रखी है. 

साल 2024 की शुरुआत राजस्थान की सियासत में सबसे बड़े बदलाव से हुई, जब अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के आग़ोश से निकल कर प्रदेश की सत्ता 'नए मुसाफिरों' के हमराह चल निकली. साल शुरू होने के महज़ 15 दिन पहले जब मुख्यमंत्री रहते हुए तीसरी बार सत्ता से बेदखल हुए तो बारी वसुंधरा राजे की आनी थी.

करीब 25 साल तक देश के सबसे बड़े सूबे की सत्ता के शीर्ष पर रही गहलोत-वसुंधरा जोड़ी का बारी-बारी सत्ता में आने का जैसा नियम था

करीब 25 साल तक देश के सबसे बड़े सूबे की सत्ता के शीर्ष पर रही गहलोत-वसुंधरा जोड़ी का बारी-बारी सत्ता में आने का जैसा नियम था. 

यह बिलकुल एक परंपरा जैसा लगता है, करीब 25 साल तक देश के सबसे बड़े सूबे की सत्ता के शीर्ष पर रही गहलोत-वसुंधरा जोड़ी का बारी-बारी सत्ता में आने का जैसा नियम था.  

सियासत के नए मुसाफिर

लेकिन तब से अब तक सियासत के चेहरे मोहरे भी बदल गए. प्रदेश और देश की सत्ता में शक्ति के केंद्र बदल गए, तो यह निश्चित ही था कि इस जोड़ी पर भी इसका असर दिखेगा, लेकिन ऐसा दिखेगा किसी ने सोचा न था. भजनलाल लाल शर्मा, पहली बार के विधायक को सूबे का मुख्यमंत्री बना दिया. 'नई भाजपा' में यह कोई 'चौंकाने' वाली बात नहीं थी, लेकिन राजस्थान की राजनीति में पिछले दो दशकों में अगर कोई सबसे बड़ी घटना हुई थी तो यही थी.

एक पर्ची खोली और सब कुछ बदल गया

एक 'पर्ची' खोली और सब कुछ बदल गया

करीब 25 साल तक किसी लंबे सीधे रास्ते पर चल रही राजस्थान की सियासत ने ऐसा नया मोड़ लिया कि हर कोई चौंक गया और इत्तिफाक देखिये इस मोड़ का इशारा भी वसुंधरा राजे ने किया, उन्होंने एक 'पर्ची' खोली और सब कुछ बदल गया. 

हनुमान बेनीवाल का कमज़ोर होना 

दूसरी घटना हनुमान बेनीवाल के परिवार का 16 साल बाद विधानसभा से ग़ायब हो जाना है. नवंबर में हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल को हार का सामना करना पड़ा था. हनुमान बेनीवाल, राजस्थान की सियासत का ऐसा नाम है जो हमेशा चर्चा में रहता है. उनके बयान मीडिया की हेडलाइन बनते हैं, और ठेठ देसी अंदाज उन्हें प्रदेश की राजनीति में अलग पहचान दिलाता है. बेनीवाल प्रदेश के उन राजनेताओं में शामिल हैं जिन्होंने कांग्रेस और भाजपा की बायनरी वाली राजस्थान की सियासत में एक अलग राह अख्तियार की है.  

हनुमान बेनीवाल की हार के साथ ही उनकी 47 साल पुरानी विरासत को झटका लगा. यह भी पिछले 16 सालों में पहली बार हुआ कि हनुमान बेनीवाल का परिवार राजस्थान विधानसभा से खत्म हो गया. खींवसर और बेनीवाल कई सालों से एक-दूसरे के पूरक बने रहे, लेकिन 2024 का उपचुनाव उनके इस सियासी रथ को ब्रेक लगा गया.

हनुमान बेनीवाल की हार के साथ ही उनकी 47 साल पुरानी विरासत को झटका लगा.

हनुमान बेनीवाल की हार के साथ ही उनकी 47 साल पुरानी विरासत को झटका लगा.

 हनुमान बेनीवाल राजनीतिक घराने से आते हैं और उनकी यह विरासत 47 साल पुरानी है. बेनीवाल के पिता रामदेव बेनीवाल दो बार विधायक रहे हैं. 1977 में रामदेव बेनीवाल ने मुंडावा सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता और बाद में 1985 में वो लोकदल से विधायक रहे. 2008 में परिसीमन के बाद इस सीट को खींवसर विधानसभा सीट बना दिया गया और बेनीवाल भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर जीत कर पहली बार विधानसभा पहुंचे थे. 

तेज़ी से ताकतवर हुई भारत आदिवासी पार्टी 

तीसरी घटना ने राजस्थान की सियासत में सबसे ज्यादा चौंकाया, जब भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) ने वागड़ क्षेत्र में अपनी छवि एक मजबूत क्षेत्रीय ताकत के रूप में स्थापित की. आदिवासी क्षेत्र में यह पार्टी सत्ता के नए समीकरण का संकेत बनकर उभरी. इस साल की शुरुआत में जब विधानसभा चुनाव हुए तो पार्टी के नेता राजकुमार रोत समेत तीन विधायक विधानसभा पहुंचे थे.

इसके बाद लोकसभा चुनाव में रोत सांसद बन गए. सीट खाली हुई तो उपचुनाव में भारत आदिवासी पार्टी को रोत की सीट तो मिली ही, उन्होंने एक और सीट जीत ली.  

राजस्थान की राजनीति में BAP का उदय नए समीकरणों का जन्म देगा

राजस्थान की राजनीति में BAP का उदय नए समीकरणों का जन्म देगा

महज़ छह साल के वक्त में भारत आदिवासी पार्टी राजस्थान का तीसरा सबसे बड़ा दल बन गई. इसका विस्तार अब प्रदेश के अन्य हिस्सों तक होने के आसार नज़र आते हैं. राजस्थान की राजनीति में BAP का उदय नए समीकरणों का जन्म देगा और यह आने वाले वर्षों में भाजपा और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है. इस बदलाव ने राज्य की राजनीति में नए ट्रेंड्स की शुरुआत की है. 2024 का साल मरुप्रदेश की राजनीति में हुए ऐतिहासिक बदलाव का प्रतीक बन गया है. 

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