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बारिश होने के साथ ही अब केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में अपने लिए 'घर' बनाने लगे विदेशी सफ़ेद सारस

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि भरतपुर के लोगों के लिए खुशी की बात है कि मानसून में प्रजनन करने वाले ओपन विल स्टॉर्क पहुंच चुके हैं और इन्होंने नेस्टिंग शुरू कर दी है. यह उद्यान में करीब 6 माह तक रुकते हैं और जनवरी माह में चले जाते है. इनकी संख्या करीब 100 के आसपास है. 

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बारिश होने के साथ ही अब केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में अपने लिए 'घर' बनाने लगे विदेशी सफ़ेद सारस

एक ओर मानसून की बारिश ने लोगों को भीषण गर्मी से राहत दिलाई है तो दूसरी ओर केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पानी की कमी दूर हुई है.  इसी के साथ विल ओपन स्टॉर्क के साथ अन्य पक्षी केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पहुंच गए है. ये मानसून सक्रिय होने के साथ नेस्टिंग वाले स्थानों पर पहुंच जाते हैं. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पक्षियों का स्वर्ग कहा जाता है और इसमें करीब 300 से अधिक देशी विदेशी प्रजाति के पक्षी पाए जाते हैं.

करीब 6 माह तक उद्यान रुकते हैं सारस 

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि भरतपुर के लोगों के लिए खुशी की बात है कि मानसून में प्रजनन करने वाले ओपन विल स्टॉर्क पहुंच चुके हैं और इन्होंने नेस्टिंग शुरू कर दी है. यह उद्यान में करीब 6 माह तक रुकते हैं और जनवरी माह में चले जाते है. इनकी संख्या करीब 100 के आसपास है. 

उद्यान में कई ब्लॉक्स में भरा पानी 

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में गर्मी के दिनों में पानी की कमी थी और पानी की पूर्ति के लिए चंबल के पानी से यह समस्या दूर की जा रही थी. लेकिन भरतपुर में मानसून मेहरबान हुआ और झमाझम बारिश से यह समस्या मिटा दी है. उद्यान के सभी ब्लॉकों में पानी भर गया है. अब केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में काफी मात्रा में पानी है और नए मेहमानों के लिए अच्छा भोजन मिल सकेगा.

सफ़ेद सारस ने शुरु किया घोंसला बनाना 

यह पक्षी भारत में काफी संख्या में पाया जाता है. यह पक्षी भोजन की तलाश में स्थानीय प्रवास भी करते हैं. इस पक्षी के प्रजनन का समय जून से दिसंबर तक होता है. इस दौरान मादा पक्षी को आकर्षित करने के लिए घोंसले के लिए जरूरी सामान एकत्रित करता है साथ ही मादा पक्षी इस सामान से पेड़ पर घोंसला बनाती है. इन पक्षियों के घोंसले पानी के बीच में उगे पेड़ अथवा जलाशयों के आसपास खड़े पेड़ों में होते हैं. यह पक्षी फिलहाल दक्षिण भारत से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पहुंचे हैं.

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