
Rajastan First Female Doctor Parvati Gehlot: आज के दौर में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. हर मुश्किल में उनका साथ देती हैं और उनके साथ खड़ी रहती हैं. लेकिन आजादी से पहले औरतों हो या लड़कियां आजादी की खुली हवा में सांस लेना भी मुश्किल था. उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक लड़ना पड़ता था. या फिर अपने सपनों को छोड़कर खुद को गुमनामी के अंधेरे में छोड़ना पड़ता था. लेकिन आजादी से पहले ऐसी कई महिलाएं थीं, जिन्होंने इस तरह की पहचान के खिलाफ आवाज उठाई और गुमनामी की जगह इतिहास के उजले पन्नों में अपनी सफलता की कहानी दर्ज कराई. ऐसी ही एक महिला राजस्थान की थीं, जिन्होंने दुनिया की हर बुराई को पीछे छोड़ते हुए प्रदेश की पहली महिला डॉक्टर बनीं और रेत के धोरों पर अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखवाया डॉ. पार्वती गहलोत.
कौन है पार्वती गहलोत
बलू सिटी जोधपुर की गोद में 21 जनवरी को 1903 में पार्वती गहलोत का जन्म हुआ. उनके पिता एक समाज सुधारक थे जिसके कारण उनके मन में भी हमेशा से समाज के प्रति कुछ करने का जस्बा हमेशा बना रहा. इसी वजह से उन्होंने इंसानों की देखभाल करने और समाज में अपना योगदान देने के लिए डॉक्टर बनने की राह को चुना. लेकिन घर की माली हालत सही नहीं थी इसलिए उनका यह सपना चाचा की मदद से पूरा हुआ . उनके चाचा एक व्यापारी थे, जिन्होंने पार्वती की सारी पढ़ाई का खर्च वाहन किया और उनके सपनों को पंख दिए.
लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, दिल्ली से एमबीबीएस की पढ़ाई की
पार्वती गहलोत प्रसिद्ध इतिहासकार और समाज सुधारक जगदीश सिंह गहलोत की भतीजी भी थी. 1928 में उन्होंने दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज से MBBS की पढ़ाई पूरी की थी. इसके बाद 1936 में वह चिकित्सा के क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए विदेश चली गईं.वह बहुत प्रतिभाशाली थीं और बाद में सरकारी सेवा में शामिल हो गईं. फिर वह जोधपुर के उम्मेद अस्पताल की अधीक्षक बनीं.
डॉक्टरों का काम है 24 घंटे काम करना
पार्वती गहलोत का कहना था कि डॉक्टर की ड्यूटी का कोई समय नहीं है. उन्होंने मरीजों का इलाज 24 घंटे और सातों दिन किया था. पार्वती इलाज के साथ मरीजों की सेवा भी करती थीं. पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते थे. मरीजों की सेवा वें डॉक्टर की जगह एक मां बनकर किया करती थीं. जोधपुर के महाराज उन्हें 100 रुपए प्रति माह का भत्ता दिया करते थे. उन्होंने स्थानीय उम्मेद अस्पताल में कईं साल तक अशीक्षिका के पद पर काम किया था. उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया. राजस्थान की इस महान विभूति का देहावसान 27 अक्टूबर 1988 को हो गया था.
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