
Worship of Maa Chandraghanta on third day of Navratri: आज चैत्र नवरात्र की द्वितीया और तृतीया तिथि एक ही दिन है. 31 मार्च को द्वितीया तिथि सुबह 9 बजकर 11 मिनट तक रही. इसके बाद तृतीया प्रारंभ हुई, जो 1 अप्रैल की सुबह 5 बजकर 42 मिनट पर समाप्त होगी. नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है. 'या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:' ये उस देवी का महामंत्र है, जिन्हें मां चंद्रघंटा कहते हैं. अत्यंत शांत, सौम्य और ममता से परिपूर्ण मां भक्तों को सुख-समृद्धि और शांति प्रदान करती हैं. मां चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति को सुख और समृद्धि का आशीष मिलता है. मान्यतानुसार मां चंद्रघंटा की पूजा में लाल और पीले फूलों का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है.
मां दुर्गा ने लिया था चंद्रघंटा का अवतार
देवी भागवत पुराण के अनुसार, मां दुर्गा ने चंद्रघंटा का अवतार तब लिया, जब संसार में दैत्यों का अत्याचार बढ़ने लगा. उस समय महिषासुर का भयंकर युद्ध भी देवताओं से चल रहा था. महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन हासिल करना चाहता था और स्वर्ग लोक का राजा बनना चाहता था. देवता जब महिषासुर से युद्ध करने में असमर्थ रहे, तब परेशान होकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रार्थना की,
देवताओं की बात सुन त्रिदेव महिषासुर पर क्रोधित हुए. फलस्वरूप उनके मुख से ऊर्जा निकली, जिससे एक शक्ति का जन्म हुआ और यही चंद्रघंटा मां कहलाईं. भगवान शंकर ने शक्तिस्वरूपा को अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने तेज, तलवार और सिंह दिया.
इस वजह से तीसरे दिन होती है मां की पूजा
जगत के कल्याणार्थ शक्ति संपन्न मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध करके देवताओं की रक्षा की. तभी से मां दुर्गा के इस रूप को तृतीय स्वरूप में पूजा जाता है. चूंकि त्रिदेव की महिमा से मां का अविर्भाव हुआ, इसलिए नवरात्र में तृतीय दिवस पर इनका पूजन होता है. मां चंद्रघंटा की पूजा में खीर का भोग अर्पित किया जाना उत्तम माना जाता है. इसके अतिरिक्त, लौंग, इलायची, पंचमेवा और दूध से बनी मिठाइयां भी भोग स्वरूप अर्पित की जा सकती है.
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