World Water Day 2024: आज वैश्विक स्तर पर विश्व जल दिवस (World Water Day) मनाया जा रहा है. हर साल को 22 मार्च को संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में जल और स्वच्छता को लेकर एक विशेष थीम के साथ विश्व जल दिवस पर दुनिया भर में लोग स्वच्छ जल के महत्व को समझते हैं और इस वर्ष 2024 की थीम "शांति के लिए जल का उपयोग" पर विमर्श किया जा रहा है. इस अवसर पर राजकीय कन्या महाविद्यालय, सूरसागर (जोधपुर) में प्राचार्य एवम् पर्यावरणविद् प्रोफेसर डॉ. अरुण व्यास ने NDTV के साथ जल संकट पर चर्चा की.
जल है हर इंसान का अधिकार
प्रोफेसर अरुण व्यास ने बताया कि 1993 से आज के दिन पूरी दुनिया में लोगों को जल की उपलब्धता, मांग और आपूर्ति को फोकस में रखते हुए जल संसाधन के संरक्षण, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से इस रिसोर्स पर हो रहे प्रभावों पर चिंतन मनन किया जा रहा है. हमें पानी पर सहयोग की भावना से आगे बढ़ना होगा, ताकि हम सद्भाव का एक सकारात्मक प्रभाव पैदा कर समृद्धिशाली बनें. पानी न केवल उपयोग और प्रतिस्पर्धा करने लायक एक संसाधन है, बल्कि यह एक मानव अधिकार है, जो जीवन के हर पहलू में अंतर्निहित है.
मात्र 3% ही शुद्ध पानी
डॉ. व्यास ने कहा कि पृथ्वी पर पानी का वितरण अत्यंत असमान है और सतह पर केवल 3% पानी ताजा है. बाकी 97% पानी समुद्र में रहता है. ताजा पानी का 69% ग्लेशियरों में मिलता है, 30% भूमिगत जल में और शेष 1% से भी कम झीलों, नदियों और दलदल में पाया जाता है.
नहीं चेते तो पानी के लिए होगा टकराव
डॉ. व्यास ने बताया कि आने वाले समय में जल को लेकर विभिन्न देशों और प्रांतों में टकराव की स्थितियां बन सकती है. पानी की असमान उपलब्धता समुदायों और देशों के बीच तनाव बढ़ा सकती है. विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि जल संकट अगले विश्व युद्ध के लिए संभावित कारक हो सकता है.
2037 में दुनिया की जनसंख्या होगी 9 अरब पार
उन्होंने बताया कि वैश्विक तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव धरती पर बढ़ रहा है और आज दुनिया की जनसंख्या 8 अरब 9 करोड़ 84 लाख 50 हजार 506 है. 2037 यह बढ़ कर 9 अरब को पार कर जाएगी. इस बढ़ती जनसंख्या के लिए शुद्ध पेयजल, औद्यौगिक और कृषि क्षेत्र में जल को समान रूप से उपलब्ध कराया जाना एक चुनौतीपूर्ण टास्क होगा.
2.2 अरब लोग प्रबंधित पेयजल के बिना
डॉ. व्यास के अनुसार स्वास्थ्य और समृद्धि, खाद्य और ऊर्जा के क्षेत्र, आर्थिक उत्पादकता और पर्यावरण संरक्षण जैसे सभी महत्वपूर्ण कारक एक अच्छी कार्यशील प्रबंधित जल चक्र पर निर्भर करते हैं. आज 2.2 अरब लोग अभी भी सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल के बिना रहते हैं. दुनिया की लगभग आधी आबादी साल के कम से कम हिस्से में पानी की गंभीर कमी का सामना कर रही है. गत 50 वर्षों में आपदाओं की सूची में पानी से संबंधित आपदाएं हावी रही हैं. प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित सभी मौतों में से 70 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं.
बढ़ती जनसंख्या चिंता का विषय
डॉ व्यास के अनुसार भूजल के स्त्रोत रीतते जा रहे हैं और भूजल की कमी के हॉटस्पॉट दुनिया भर में पाए जाते हैं, जो कि चिंता का विषय है. पेयजल आपूर्ति, औधोगिक और कृषि क्षेत्र में इसके बढ़ते इस्तेमाल से भूजल संसाधन पर दबाव बढ़ गया है. कल के लिए जल की मांग में भविष्य के रुझान का सटीक आकलन करना बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण चुनौतीपूर्ण हो गया है. पानी की समग्र वैश्विक मांग लगभग 1% की वार्षिक दर से बढ़ती रहेगी, जिसके परिणामस्वरूप 2050 तक 20 से 30% के बीच वृद्धि होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
आईपीसीसी की जारी की गई सबसे अद्यतन रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करता है कि जलवायु परिवर्तन हुआ है और मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र में पहले से बदलाव आया है, जिससे विविधता आ गई है. यह विविधता मानव प्रणालियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है. औधोगिक अपशिष्ट जल, जल प्रदूषण का मुख्य कारण है. जो मानव गतिविधियों से जटिल रूप से जुड़ा हुआ है और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है. इसके दूरगामी परिणाम स्वास्थ्य पर परिलक्षित होंगे.
पानी बचाने के लिए होना होगा सचेत
डॉ. अरुण व्यास ने कहा कि हमें आज जागना होगा और जन जागरण अभियान के द्वारा जल चेतना को बढ़ावा देना होगा. सतत् विकास लक्ष्य 6 की प्राप्ति हेतु जल उपलब्धता, इसकी क्वालिटी और जल स्त्रोतों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित कर वर्ष 2030 तक सभी के लिए स्वच्छ जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के प्रयास करने होंगे. जल सेनिटेशन और हाइजीन (वाश) की सुनिश्चितता में सभी क्षेत्रों की भागीदारी तय करनी होगी.
जल संरक्षण में विरासत में मिले पारंपरिक तरीके यथा कुएं, बावड़ियों, खड़ीन, झालरों, नाडियों, जोहड़ - पायतन, पोखर, तालाबों और झीलों के संरक्षित करने में सामुहिक और सामुदायिक जन सहभागिता पर फोकस करना होगा. जल के दुरुपयोग को रोकने के लिए जल चिंतक और जल प्रहरी बनकर जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभानी होगी.
आज जल, जंगल, जमीन और जलवायु सभी संकटग्रस्त है. ऐसे में हमें पर्यावरण संरक्षण के साथ सतत् विकास के मॉडल अनुसार पृथ्वी पर मौजूद सभी रिसोर्सेज का नीतिपूर्ण तरीके से आवश्यकता के हिसाब से दोहन करना होगा. ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए हम स्वच्छ और संसाधनों से पूर्ण धरती छोड़ कर जाएं.
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