Ajani Mata Temple: करौली जिले में स्थित अंजनी माता के प्राचीन मंदिर में हर साल देवउठनी एकादशी के अवसर पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. यह मंदिर अपनी अनूठी परंपराओं और धार्मिक आस्था के कारण श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. त्रिकूट और अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के बीच पांच नदियों के संगम पर स्थित इस मंदिर में मेले के आयोजन की परंपरा इसके निर्माण के समय से ही चली आ रही है. हर साल देवउठनी एकादशी के दिन माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु सुबह 4 बजे से ही मंदिर पहुंचना शुरू हो जाते हैं.
जमीन से निकली है मात अंजना
वरिष्ठ इतिहासकार वेणुगोपाल ने बताया कि इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह जमीन से निकला है. इसीलिए इसका नाम पाताली हनुमान मंदिर पड़ा है. पांच नदियों के संगम पांचना बांध के पास पहाड़ी पर स्थित प्रसिद्ध माता अंजनी मंदिर राजस्थान का एकमात्र मंदिर माना जाता है. अंजनी माता यदुवंश की जादौन शाखा की कुलदेवी मानी जाती हैं. मंदिर की स्थापना यदुवंशी राजा अर्जुन देव ने 1327 से 1348 ई. के बीच कराई थी. इसके बाद 1348 में देव उठनी एकादशी पर करौली नगर की स्थापना हुई थी. अंजनी माता मंदिर पर हर साल देव उठनी एकादशी पर मेला लगता है. मंदिर में कान के रोगों से पीड़ित लोगों का विशेष उपचार किया जाता है. मान्यता है कि माता का नाम लेने से कान के रोग ठीक हो जाते हैं.
सरकंडे के बाण माता को करते हैं अर्पित
यहां आने वाले भक्तों के हाथों में सरकंडे के बाण होते हैं, जिन्हें वे माता अंजनी को अर्पित करते हैं. मान्यता है कि माता अंजनी को ईख के बाण अर्पित करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। खास तौर पर कान से जुड़ी बीमारियों से मुक्ति मिलती है. मंदिर के महंत श्यामस्वरूप शर्मा के अनुसार रियासत काल से ही इस मेले का आयोजन किया जा रहा है और इस खास दिन पर लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं.
दर्शन मात्र से पूरी होती है हर मुराद
मंदिर में दर्शन करने आई बुजुर्ग महिला सीता देवी बताती हैं कि बच्चों के कान बहने या कान में कोई समस्या होने पर उनके स्वास्थ्य के लिए यहां सरकंडे चढ़ाने की परंपरा है. स्थानीय निवासी राजेश शर्मा के अनुसार, इस दिन माता के दर्शन पाकर भक्त खुद को धन्य मानते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.