राजस्थान का राजसमंद जिला इतिहास के पन्नों में शौर्य और पराक्रम की कई अमर कहानियां समेटे हुए है. राज्य के दक्षिणी छोर पर बसे राजसमंद के कुम्भलगढ़ दुर्ग में ही 'वीरों के वीर' कहे जाने वाले महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था. भीलवाड़ा, पाली, अजमेर, चित्तौड़ से चौतरफा घिरा हुआ यह जिला ऐतिहासिक महत्व रखता है, क्योंकि यहीं वह भूमि है, जहां मशहूर हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर की सेनाओं के बीच लड़ा गया था. इसके अलावा यह देशभर में सबसे ज्यादा मार्बल उत्पादन भी करता है. यह शहर अपनी खूबसूरत झीलों, सुंदर महलों, राष्ट्रीय उद्यानों के लिए भी प्रसिद्ध है.
गौरवशाली है राजसमंद का इतिहास
इस शहर का नाम राणा राज सिंह मेवाड़ द्वारा साल 1622 में बनवाई गई कृत्रिम झील राजसमंद के नाम पर रखा गया. यह झील उस जमाने की कारीगरी और वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है. यही ज़मीन महाराणा प्रताप की मुगलों के खिलाफ बहादुरी दुनिया के सामने लाई थी. यहीं हल्दीघाटी का वह ऐतिहासिक मैदान है, जहां महाराणा प्रताप ने मुगलों को नाकों चने चबवा दिए थे. कहा जाता है, इसी ज़मीन से भारत की स्वतंत्रता की पहली लड़ाई तांतिया टोपे के नेतृत्व में साल 1857 में शुरू हुई थी. यह जिला अपनी खूबसूरती और गौरवशाली इतिहास के लिए लोकप्रिय रहा है.
औद्योगिक विकास और संस्कृति
राजसमंद जिला खनिज पदार्थों के लिए भी जाना जाता है. इस जिले से देशभर में सबसे ज्यादा संगमरमर का उत्पादन होता है. मेवाड़ की झलक इस जिले में मुख्य रूप से देखने को मिलती है. साथ ही राजसमंद शैली की चित्रकारी भी काफी लोकप्रिय है.
महाराणा के प्रिय घोड़े चेतक की समाधि
पर्यटकों के लिए राजसमंद जिला प्रमुख आकर्षण है. यहां कुम्भलगढ़ किले से हल्दीघाटी तक बहुत-सी ऐतिहासिक जगहें हैं. इसके अलावा यहां महाराणा प्रताप के प्रिय और वफादार घोड़े चेतक की याद में बनाई गई चेतक समाधि भी है. जब मुगल मेवाड़ पर आक्रमण के लिए आए, तब वह जहां रुके थे, वह बादशाही उद्यान के नाम से जाना जाता है. इन सबके अलावा द्वारिकाधीश मंदिर भी काफी लोकप्रिय है. वहीं दूसरी तरफ प्रकृति प्रेमियों के लिए कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य भी प्रमुख आकर्षण है.
राजसमंद, एक नज़र में