
Rajasthan News: जगमगाते दीपों के पर्व दीपावली पर देशभर में अनेक परम्पराओं का निर्वहन किया जाता है. लेकिन डीडवाना में एक ऐसी परंपरा भी है, जिसे समूचा नगर साथ मिलकर मनाता है. दीपावली से एक दिन पहले यानी छोटी दीपावली के दिन डीडवाना में मांडना परंपरा मनाई जाती है, जो ना केवल राजस्थान में बल्कि इंदौर और कोलकाता में रहने वाले डीडवाना प्रवासियों द्वारा भी निभाई जाती है. दीपावली की पूर्व संध्या पर महिलाएं और युवतियां अपने अपने घर के व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर आती है और आकर्षक रंगोलियों से प्रतिष्ठानों को सजाती है. ऐसा माना जाता है कि इससे व्यापार मे समृद्धि आती है.
मांडना यानी रंगोली बनाती इन महिलाओं और युवतियों को देखकर आप यही समझ रहे होंगे कि ये अपने घर को दीपावली के मौके पर सजा रही है. लेकिन हम आपको बता दें कि ये नज़ारा है डीडवाना के बाजारों का, जहां दीपावली की पूर्व संध्या पर यह सभी महिलाएं अपने अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों यानी दुकानों पर रंगोली उकेर रही हैं, जिसे आम बोलचाल की भाषा मे मांडना कहा जाता है. ये हिस्सा है, उस परंपरा का, जो कि डीडवाना मे पिछले सैकड़ो सालों से जारी है. खास बात ये है कि दीवाली के एक दिन पहले महिलाओं का बाजार में आकर रंगोली बनाने की यह परंपरा पूरे भारत मे सिर्फ डीडवाना में ही मनाई जाती है. इसके अलावा इंदौर और कोलकाता जैसे शहरों में रहने वाले यहां के प्रवासियो के इलाको में भी यह परंपरा निभाई जाती है.
माना जाता है कि महिलाएं जब व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर रंगोली बनाती है, तो इससे महालक्ष्मी प्रसन्न होती है और इससे व्यापार में समृद्धि आती है. इसीलिए महिलाएं सज संवरकर बाजार आती है और फिर पूरी लगन से मांडना बनाती हैं. जब मांडना बन जाते हैं तो घर की बड़ी महिलाएं इन्हें शगुन भी देती हैं. महिलाओं के मुताबिक, इस परंपरा का पता उन्हें अपनी सास से मालूम चलता है और जब भी दिवाली करीब होती है तो बेसब्री से इस दिन का इंतेजार करती है. खास बात यह है कि महिलाएं पूरे देसी अंदाज में ही यह मांडने बनाती हैं. इसके लिए किसी केमिकल या रंग का उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि पीली मिट्टी एवं गोबर का इस्तेमाल किया जाता है. महिलाएं पहले पीली मिट्टी और गोबर से आंगन को लिपती हैं फिर उस पर चूना व गेरू से कलात्मक मांडने बनाती हैं.
इस परंपरा का असल मकसद यही है कि पुराने दौर मे महिलाओ को पुरूषों के बराबर समझने के लिए इस परंपरा की शुरुआत की गई. इसीलिए इस दिन महिलाएं इस परंपरा से जुड़कर खुद को गौरवान्वित महसूस करती है. महिलाएं जब मांडना बनाने बाजारों में आती है, तो उनमें एक दूसरे की बेहतर मांडना बनाने की प्रतिस्पर्धा भी देखने को मिलती है. इन रंगोलियों का इतना जबरदस्त क्रेज रहता है कि पूरा शहर इन रंगोलियों के देखने बाजारों मे उमड़ पड़ता है.