जिले में मानसून की बेरुखी चिंता का विषय बनती जा रही है. इस साल अब तक हुई बरसात औसत तक भी नहीं पहुंच पाई है. बरसात की कमी से तालाब, कुएं और बावड़ियां सूखी पड़ी है. खेतों में बुआई हो चुकी है, लेकिन बरसात नहीं होने के कारण फसल व हरियाली का नामोनिशान तक नहीं है. इसके चलते प्रदेश में सूखे के हालात पैदा हो गए हैं, वहीं फसलों के मुरझाने से किसान हलकान हैं.
गौरतलब है राजस्थान के ज्यादातर जिलों में खेती बरसात आधारित है. ऐसे में कई बार कम बरसात होने पर किसानों की फसल चौपट हो जाती है, तो कई बार सूखा और अकाल का सामना करना पड़ता है. कमोबेश ऐसी ही स्थिति इस बार भी पैदा हो रही है, जिससे किसानों को सूखे का सामना करना पड़ रहा है.
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बरसात की कमी से नागौर और डीडवाना जिले में बाजरा, मूंग और मोठ सहित ज्यादातर फसलें खराब हो चुकी है. सूखे की वजह से इस बार पैदावार मात्र 10 से 20 फीसदी होने की आशंका जताई जा रही है. कृषि अर्थशास्त्री डॉ. विकास पावड़िया ने कहा कि प्रदेश में इस बार मानसून की बरसात बेहद कम हुई है.अगस्त महीना तो पूरा ही सूखा बीत गया, जिससे प्रदेश के ज्यादातर जिलों में इस बार भी सूखे की स्थिति हो गई है.
दरअसल, इस बार मानसून की बरसात से पहले आए बिप्रजोय तूफान की बरसात से किसानों ने फसलों की अगेती यानी समय से पहले बुवाई कर ली, लेकिन इस बार मानसून की बरसात कम हुई, जिसने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया.आजादी के बाद ऐसा पहली बार हुआ जब राजस्थान में अगस्त का महीना बिन बरसात के बिल्कुल सूखा चला गया, जिससे किसानों की 80 से 90 फीसदी फसले बर्बाद हो गई हैं. इससे प्रदेश 80 लाख किसान इस सूखे से प्रभावित हो रहे है.
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