
Udaipur Bulldozer Action Case: सुप्रीम कोर्ट में उदयपुर में पिछले महीने हुई चर्चित चाकूबाजी (Knife Crime) की घटना में हुई बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई. वहां एक स्कूली छात्र ने अपनी ही क्लास के दूसरे छात्र पर चाकू चला दिया था. इस घटना के बाद बड़ा हंगामा हुआ और उदयपुर प्रशासन ने घटना के अगले दिन उस घर को बुलडोजर चला कर ध्वस्त कर दिया जहां आरोपी छात्र का परिवार किराए पर रहता था. 18 अगस्त को हुए इस हमले में घायल छात्र की चार दिन बाद मौत हो गई थी.
मकान पर बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ मकान मालिक राशिद खान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका में उसने आरोप लगाया कि स्थानीय अधिकारियों ने उनका घर अवैध रूप से तोड़ा है. इस मामले की सुनवाई जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की याचिका की सुनवाई के तहत हुई. राशिद खान ने अपनी याचिका में साथ ही कई मांगें की थीं.
इनमें राज्य सरकार से 30 लाख रुपये का मुआवजा मांगा गया था. यह राशि उन अधिकारियों से वसूलने की मांग की गई थी जिन्होंने कार्रवाई की. साथ ही घर गिराने के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की भी मांग की गई थी.
राजस्थान सरकार ने शनिवार को उदयपुर हिंसा मामले में बड़ी कार्रवाई करते हुए चाकूबाजी करने वाले 10वीं कक्षा के छात्र के मकान पर बुलडोजर चलवा दिया. ये कार्रवाई उदयपुर विकास प्राधिकरण की उस जांच के बाद की गई है, जिसमें आरोपी छात्र का मकान अवैध तरीके से वन भूमि पर बनाए जाने का खुलासा… pic.twitter.com/HYwnTE7Ta4
— NDTV Rajasthan (@NDTV_Rajasthan) August 17, 2024
बुलडोजर ऐक्शन के बारे में दिशानिर्देश का प्रस्ताव
याचिका में अपराध के मामलों में अभियुक्तों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई के बारे में एक राष्ट्रीय दिशानिर्देश जारी करने की भी मांग की गई.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई की अनुमति तो दी मगर इस मामले में कोई अंतरिम आदेश जारी करने से इनकार कर दिया. हालांकि अदालत ने बुलडोजर कार्रवाई पर सवाल उठाया और पूछा कि क्या किसी व्यक्ति का घर सिर्फ इसी वजह से गिराया जा सकता है कि वह किसी अभियुक्त या दोषी का घर है. अदालत ने यह प्रस्ताव किया कि वह बुलडोजर ऐक्शन की घटनाओं के बारे में एक दिशानिर्देश बनाया जाना चाहिए. मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी.
अदालत में राजस्थान सरकार की ओर से अतिरिक्त एडवोकेट जनरल शिव मंगल शर्मा ने दलील पेश की जिसमें कहा गया है कि यह कार्रवाई वैध थी और उसका उसके किराएदार के बेटे के मामले से कोई संबंध नहीं था. सरकार ने कहा कि उसने वन भूमि पर कब्जा कर मकान बनाया था और उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही उसे ध्वस्त किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के पक्ष को भी दर्ज किया.
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