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कुत्ते क्यों हो रहे इंसानों पर हमलावर- कारण और उपाय

Dr Sunil Chawla
  • विचार,
  • Updated:
    जुलाई 24, 2025 16:11 pm IST
    • Published On जुलाई 24, 2025 14:35 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 24, 2025 16:11 pm IST
कुत्ते क्यों हो रहे इंसानों पर हमलावर- कारण और उपाय

Rajasthan Dog Bite Cases: राजस्थान में इन दिनों कुत्तों के इंसानों पर हमलों की काफी घटनाएं सामने आ रही हैं. अभी कुत्तों के आक्रामक होने की एक वजह ये है कि ये कुत्तों की ब्रीडिंग का मौसम है. मानसून और बारिश के मेल डॉग ज़्यादा आक्रामक हो जाते हैं. इस दौरान मादा डॉग उत्तेजित होती हैं और अक्सर हम देखते हैं कि मेल डॉग्स का एक झुंड उनके पीछे भागता रहता है. मेटिंग नहीं कर पाने की वजह से वो बड़े आक्रामक हो जाते हैं क्योंकि उनके अंदर हॉरमोन में काफी बदलाव हो जाते हैं. इस कारण अगर वो किसी भी वस्तु को या किसी इंसान या जानवर को खतरे के तौर पर देखते हैं तो वो उसके ऊपर हमला कर देते हैं.

कुत्तों के इंसानों पर हमला करने के मामले वैसे तो पूरे वर्ष आते रहते हैं लेकिन वर्ष में दो चरणों में ये मामले बढ़ जाते हैं. पहली बार तो ब्रीडिंग सीज़न में ऐसे मामलों में उछाल आता है. इसके ढाई-तीन महीने बाद एक दूसरा पीक आता है जब फिर कुत्तों के काटने की घटनाएँ बढ़ जाती हैं. दूसरी बार ऐसे मामले अक्टूबर-नवंबर के मौसम में बढ़ते हैं जब व्हेल्पिंग सीज़न होता है, जिसमें मादा डॉग बच्चों को जन्म देती है. 

कुत्तों के इंसानों पर हमला करने के मामले वैसे तो पूरे वर्ष आते रहते हैं लेकिन वर्ष में दो चरणों में ये मामले बढ़ जाते हैं. पहली बार तो ब्रीडिंग सीज़न में ऐसे मामलों में उछाल आता है. इसके ढाई-तीन महीने बाद एक दूसरा पीक आता है.

अभी ब्रीडिंग सीज़न में मेल डॉग ज़्यादा हमले करते हैं और व्हेल्पिंग सीज़न में मादा डॉग के हमले बढ़ जाते हैं. दरअसल जब मादा डॉग बच्चों को जन्म देती है तो उनमें भी अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर एक स्वाभाविक भावना होती है. कई बार गायों के साथ भी दिखता है कि अगर कोई व्यक्ति उसके बछड़े के पास जाता है तो गाय उसको मारने के लिए दौड़ती है. इसी तरह से अक्सर ऐसा होता है कि छोटे बच्चे पिल्लों के साल खेलने की कोशिश करते हैं और तब मादा डॉग अपने बच्चों पर ख़तरा समझकर बच्चों पर हमले कर देती है.

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बड़े शहरों में कम आते हैं मामले

मगर कुत्तों के हमले बढ़ने की मुख्य वजह ये है कि हम प्रदेश में कुत्तों की संख्या पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं. भारतीय जीव जंतु कल्याण परिषद यानि ऐनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया के नियम-क़ानूनों का पूरी तरह से पालन नहीं होने की वजह से कुत्तों की संख्या बढ़ती जा रही है. जैसे राजधानी जयपुर में ज्यादातर फीमेल और मेल डॉग्स के कान कटे हुए दिखते हैं जिसका मतलब ये है कि उनकी नसबंदी हो चुकी है.

इसलिए जयपुर और बड़े शहरों में इतने ज्यादा मामले नहीं आ रहे हैं. लेकिन दूसरे ज़िलों या छोटे कस्बों में ये मामले बढ़ रहे हैं क्योंकि वहां कुत्तों की समुचित नसबंदी नहीं हो रही. हमने स्टडी से पाया है कि नसबंदी करने से जयपुर मे रेबीज़ के मामले सालाना 10-15 से घटकर शून्य पर पहुंच गए.

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नसबंदी सबसे कारगर उपाय

नसबंदी एकमात्र कारगर उपाय है क्योंकि कुत्तों को आप दूसरी जगह ले जाकर नहीं रख सकते. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन में इसपर रोक है. उन्हें गायों की तरह उठाकर गोशाला में नहीं भेजा जा सकता. लेकिन कुत्तों का अपना इलाका होता है और वो वहीं रह सकते हैं. अगर उन्हें उठाकर दूसरे इलाके में छोड़ दिया गया तो वहां के कुत्तों से उनकी लड़ाइयां होंगी और वो उन्हें मार डालेंगे.

मानवीय तरीका यही है कि इन कुत्तों का उसी इलाके में टीकाकरण किया जाए जिससे उनके काटने से रेबीज़ नहीं होगा. साथ ही उनकी नसबंदी कर दी जाए तो उनकी संख्या भी कम हो जाएगी. तो सरकार को इस प्रोग्राम को कारगर तरीके से लागू करना चाहिए.

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कुत्ता काट ले तो क्या करें?

आम लोगों के लिए कुछ बातें कारगर हो सकती हैं. अगर आपको लगता है कि कुत्ते आपका पीछा कर रहे हैं या आक्रामक होकर आपकी ओर आ रहे हैं, तो आपको बुत की तरह स्थिर खड़े हो जाना चाहिए. उन्हें नज़रअंदाज़ करना चाहिए और घूरना नहीं चाहिए. 

लेकिन अगर कभी कोई कुत्ता काट लेता है तो सबसे पहले पानी चलाकर हल्के हाथ से घाव को साफ करें. साथ ही कोशिश करें कि कम चर्बी या कम चिकनाई वाले साबुन या डिटर्जेंट पाउडर से उस घाव को धीरे-धीरे साफ करें. इससे 90 प्रतिशत संभावना होती है कि रेबीज़ का वायरस धुल जाएगा. इसके बाद नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्र पर उपचार करवाएं और वैक्सीन लें. रेबीज़ की सबसे खास बात ये है कि बचाव ही उसका उपचार है. अगर किसी को रेबीज़ हो गया तो दुनिया में आज तक एक भी मरीज़ ज़िंदा नहीं बच पाया है.

परिचयः डॉक्टर सुनील चावला जयपुर स्थित वरिष्ठ पशु चिकित्सक हैं. उन्होंने मुख्य रूप से हाथियों से जुड़ी बीमारियों और कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने के क्षेत्र में काम किया है. डॉ. चावला ने लगभग 20 देशों में विभिन्न परियोजनाओं पर काम किया है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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