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रणथंभौर में यूं ही हमले नहीं कर रही बाघिन

Dr. Dharmendra Khandal
  • विचार,
  • Updated:
    मई 14, 2025 16:08 pm IST
    • Published On मई 14, 2025 15:54 pm IST
    • Last Updated On मई 14, 2025 16:08 pm IST
रणथंभौर में यूं ही हमले नहीं कर रही बाघिन

Tiger Attack: रणथंभौर नेशनल पार्क (Ranthambhore National Park) में पिछले कुछ समय से बाघों के इंसानों पर हमलों की घटनाएं सामने आ रही हैं. इसे समझने की ज़रूरत है कि ऐसा क्यों हो रहा है. दरअसल बाघों और इंसान के बीच दूरी बहुत ज़रूरी होती है. जब ये दूरी ख़त्म होती है, तब वो आफ़त बन जाती है. दरअसल बाघ एक हिंसक जानवर है. उसे प्रकृति ने वैसा ही बनाया है. हिंसा से ही उसका पेट भरता है. लेकिन बाघ इंसानों को शिकार नहीं बनाता है जबकि वो भी उसका भोजन बन सकता है.

बाघ पिछले लगभग 65 से 70 हज़ार वर्षों से इंसानों को शिकार नहीं बना रहा, जबसे इंसानों ने आग पर नियंत्रण करना शुरू किया. और आग के माध्यम से उन्होंने सभी प्राणियों को भी नियंत्रित करना सीख लिया. इंसानों से बाघ दूर रहते रहे हैं. लेकिन जब ये दूरी घटती है तो उनका डर ख़त्म हो जाता है और तब समस्या खड़ी हो जाती है. 

रणथंभौर में बाघों के हमलों को लेकर अभी जो चुनौती दिखाई दे रही है उसके पीछे भी यही वजह है. हमने वहां बाघों के साथ दूरी को कम कर दिया है. वहां बाघों के लिए भोजन लाया जा रहा है, उनका इलाज किया जा रहा है, उनकी सेवा की जा रही है, उनके लिए वाटरहोल बनाया जा रहा है, उन्हें पानी दिया जा रहा है. इन तमाम बातों से इंसानों और बाघों के बीच की दूरी कम होती जा रही है.

रणथंभौर में बाघिन ने 16 अप्रैल 2025 को सात साल के कार्तिक सुमन को दबोच लिया था

रणथंभौर में बाघिन ने 16 अप्रैल 2025 को सात साल के कार्तिक सुमन को दबोच लिया था
Photo Credit: NDTV

इंसानों से बाघ दूर रहते हैं. लेकिन जब ये दूरी घटती है तो उनका डर ख़त्म हो जाता है और तब समस्या खड़ी हो जाती है.

अभी कनकटी नाम की जिस युवा बाघिन ने तीन हमले किए हैं उसकी मां के पांव में कैंसर है. मां बाघिन का नाम ऐरो हेड टी-84 है. उसका पिछले डेढ़ साल से इलाज किया जा रहा है. उसे खाना दिया जा रहा है. वन कर्मचारी उसके लिए भैंस का बछड़ा ले जाते हैं और उसे उसके सामने बांध देते हैं.

बाघिन बछड़े को भोजन बनाती है और उसके बच्चे भी ये देखते हैं और उनका भी पेट भरता है. इनके अलावा हमलावर बाघिन की मां का कई बार जंगल में ही इलाज किया गया. उस दौरान भी उसके बच्चे चारों तरफ खड़े होकर देखते हैं. बाघिन को बेहोश कर उसे दवा दी जाती है और उसके बच्चे ये सब देखते हैं.

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इंसानों से डर हुआ ख़त्म

इससे उन बच्चों के मन से इंसानों को लेकर भय ख़त्म हो गया है. इस सारी प्रक्रिया से बाघों और मानवों के बीच की दूरी खत्म होती जा रही है. 

दरअसल वन विभाग पर इतना प्रेशर है कि वो बाघ को कोई भी चोट या बीमारी होने पर उनका तत्काल इलाज शुरू कर देते हैं. इसलिए पिछले डेढ़ साल से वो उस बाघिन का इलाज कर रहे हैं जिसका नुकसान ये हो रहा है कि बाघों को इंसानों को आस-पास देखने की आदत हो गई है.

इस बाघिन के बच्चों को अब आसानी से भोजन चाहिए क्योंकि उन्होंने शिकार करना सीखा ही नहीं. उन्हें पहले मां खिलाती थी, और अब वन विभाग की एक गाड़ी आती है जिससे भैंस का एक भैंस का बछड़ा आता है जिसे वो मजे से खाते हैं. ये ऐसा ही है जैसे अगर किसी युवा को उसका पिता उसे जो भी चाहिए वो दे देता है तो उसे मेहनत करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी. तो बाघों का नेचर ही बदल गया है.

यही वजह है कि इस बाघिन ने तीन बार इंसानों पर हमला कर दिया है. एक बार उसने बाबू माली नाम के एक गार्ड पर हमला किया. उसके बाद त्रिनेत्र मंदिर का दर्शन कर लौट रहे एक बच्चे को उसकी दादी के हाथ से छीनकर ले गया. 

12 मई 2025 को बाघिन ने रेंजर देवेंद्र चौधरी को मार डाला

12 मई 2025 को बाघिन ने रेंजर देवेंद्र चौधरी को मार डाला
Photo Credit: NDTV

क्या है समाधान

रणथंभौर में बाघों ने अब तक 22 लोगों की जान ली है. इनमें हमने तीन बाघों को खतरनाक बताया था.  पिछले दिनों टी-121 नाम के बाघ ने भी एक आदमी को मारा था, लेकिन तब  हमने उसके बारे में चर्चा नहीं की थी. उसके बाद भी टी-123 ने भी एक बाघ को मारा था. लेकिन तब भी हमने चर्चा नहीं की थी. वो इक्का-दुक्का हादसे थे. इसलिए उनके बारे में हमने कभी बात नहीं की. 

लेकिन ये बाघिन और उसके दो भाई-बहन अलग हैं क्योंकि उन्हें इंसानों ने पाला है. इस बारे में कुछ अन्य वन्य जीव विशेषज्ञों ने काफी पहले चेतावनी दी थी कि बाघों से इस तरह की नज़दीकी रखने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. उनकी चेतावनी अब सही साबित हुई जब बाघिन ने पहले एक बच्चे और उसके बाद एक फॉरेस्ट रेंजर को मार डाला.

अब ये बाघिन आगे इंसानों पर और हमले ना करें इसके लिए ज़रूरी है कि सबसे पहले उसे किसी चिड़ियाघर या ऐसी ही किसी बंद जगह पर भेज देना चाहिए क्योंकि वो काफ़ी आक्रामक हो चुकी है. इसके बाद इसके दो भाई बहनों को पहले किसी बड़े नेशनल पार्क में या फिर ज़ू में भेजने का प्रयास करना चाहिए. 

परिचयः डॉ. धर्मेंद्र खांडल, एक कंज़र्वेशन बायोलॉजिस्ट हैं और पिछले 30 वर्ष से वन्यजीव संरक्षण की दिशा में कार्यरत हैं. इन्होंने रणथंभौर टाइगर रिजर्व में वन्य जीव एवं समुदाय आधारित संरक्षण की दिशा में कार्य किया है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

(अपूर्व कृष्ण के साथ बातचीत पर आधारित लेख)

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