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अजमेर दरगाह के मंदिर होने के दावे की याचिका पर कोर्ट का सुनवाई से इनकार

Ajmer News: एक हिंदू संगठन ने अजमेर में ख्वाया मोईनुद्दीन चिश्ती की मशहूर दरगाह के मंदिर होने का दावा करते हुए अदालत में एक याचिका दायर की जिसे मुस्लिम पक्ष ने साजिश करार दिया है.

अजमेर दरगाह के मंदिर होने के दावे की याचिका पर कोर्ट का सुनवाई से इनकार

Ajmer Dargah : अजमेर की एक अदालत ने ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के हिंदू मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. अजमेर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने हिंदू सेना (Hindu Sena)नामक संगठन की याचिका को अपने क्षेत्राधिकार से बाहर बताते हुए इसे सक्षम कोर्ट में दायर करने के निर्देश दिए. न्यायाधीश प्रीतम सिंह ने वादी और अधिवक्ता से कहा कि वो डिस्ट्रिक्ट जज कोर्ट में वाद प्रस्तुत करें. हिंदू सेना की ओर से अजमेर की मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में याचिका दायर की गई थी. इसमें दरगाह को सर्वे करवाने के बाद फिर से हिंदू मंदिर घोषित करने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया है कि दरगाह में भगवान संकट मोचन महादेव को विराजमान किए जाने और वहां हिंदू रीति रिवाज से पूजा पाठ करने की अनुमति दी जाए. साथ ही उस स्थान पर दरगाह को गैरकानूनी बताते हुए दरगाह कमेटी के अनाधिकृत कब्जे को हटाने की भी मांग की गई थी. अजमेर दरगाह ने इस मांग पर सख्त आपत्ति जताई है और इसे एक साजिश करार दिया है.

हिंदू पक्ष का दावा 

हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता (सरिता विहार निवासी) ने सुप्रीम कोर्ट के वकील शशि रंजन कुमार सिंह के जरिए माननीय न्यायालय के समक्ष एक वाद पेश किया. इसमें विष्णु गुप्ता को मंदिर का संरक्षक मित्र बताया गया और दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को प्रतिवादी बनाया गया. याचिका में दरगाह के संपूर्ण परिसर का वैज्ञानिक सर्वे कराने की मांग की गई. हिंदू पक्ष के अधिवक्ता ने कहा है कि शाहजहां के समय की पुस्तकें व अकबरनामा आदि में अजमेर में कोई भी मस्जिद और दरगाह बनाने का प्रमाण नहीं है. ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह खाली भूमि पर बनाई गई है.  

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याचिका में दावा किया गया था कि दरगाह की जमीन पर पूर्व में भगवान शिव का मंदिर था. वहां पूजा पाठ और जलाभिषेक किया जाता रहा है. दरगाह परिसर में एक जैन मंदिर होने का भी दावा किया गया. याचिका में अजमेर के रहने वाले हरविलास शारदा द्वारा 1911 में लिखी गई एक पुस्तक का हवाला दिया गया. इसके आधार पर दरगाह की जगह मंदिर होने के प्रमाण का उल्लेख किया गया जिनमें दावा किया गया है कि दरगाह परिसर में मौजूद 75 फीट के बुलंद दरवाजे के निर्माण में मंदिर के मलवे के अंश हैं. साथ ही वहां एक तहखाना या गर्भ गृह होने की भी बात की गई और कहा गया है कि वहां शिवलिंग था, जहां ब्राह्मण परिवार पूजा अर्चना करते थे.  

मुस्लिम पक्ष ने बताया झूठा दावा 

मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष की याचिका पर सख्त आपत्ति जताई है. वाद दायर होने की सूचना के बाद दरगाह दीवान सैयद जैनलु आबेदिन के उत्तराधिकारी, नसरुद्दीन चिश्ती और दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सरवर चिश्ती ने एक बयान जारी किया है. इसमें कहा गया है कि अगर उनके धार्मिक स्थलों पर किसी तरह की झूठी और  बेबुनियादी साजिश रची गई तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

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