Ashok Gehlot In Bihar: संकटमोचक के रूप में बिहार पहुंचे राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने महागठबंधन के सभी नेताओं से बात करके महागठबंधन एकजुट है और चुनाव मजबूती से लड़ेगा इसका भरोसा दिलाया और मीडिया को सम्बोधित भी किया. ये गहलोत ही थे जिनके बिहार जाने के चंद घंटों बाद महागठबंधन ने एक संयुक्त प्रेस कॉफ्रेंस की और एकजुटता का संदेश दिया. अशोक गहलोत एक अनुभवी और कुशल राजनेता हैं, इसमें कोई दो राय नहीं. 2017 में अहमद पटेल के राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग का संकट खड़ा हुआ था, तब देर रात सुप्रीम कोर्ट जाने के फैसले में भी गहलोत की अहम भूमिका थी.
2022 के गुजरात चुनाव में गहलोत ने ''सॉफ्ट हिंदुत्व'' को कांग्रेस के संवाद का हिस्सा बनाया. उन्हें अंदाजा था कि इस रणनीति से एक खास वोट बैंक को साधा जा सकता है. पत्रकारों से बातचीत में वे अक्सर कहते थे, ''हम हिंदू नहीं हैं क्या? क्या सिर्फ वे ही हिंदू हैं?''. इसके अलावा, हरियाणा चुनाव 2024 में, कुमारी शैलजा और भूपेंद्र हुड्डा के बीच टकराव को देखते हुए उन्हें चुनाव पर्यवेक्षक बनाया गया. महाराष्ट्र में भी वे और सचिन पायलट दोनों पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए थे.
सादगी के पीछे कूटनीतिक दिमाग
अशोक गहलोत का सरल और मृदुभाषी स्वभाव उनके भीतर छिपे गहरे कूटनीतिक राजनेता को ढक देता है. पार्टी ने बिहार में महागठबंधन की पेचीदगियाँ सुलझाने की जिम्मेदारी उन्हीं को दी है. उनकी भाषा कभी किसी को अखरती नहीं, लेकिन वे राजनीतिक संघर्ष सुलझाने में माहिर हैं. राजस्थान में जब-जब उनके नेतृत्व को चुनौती मिली, उन्होंने हर बार बाज़ी पलटी.
‘भंवरी देवी केस' और निर्णायक फैसले
कांग्रेस में लंबे समय से मांग थी कि कोई जाट मुख्यमंत्री बने. उस समय सबसे प्रमुख नाम महिपाल मदेरणा का था, लेकिन भंवरी देवी केस में उनका राजनीतिक करियर खत्म हो गया. मुख्यमंत्री रहते हुए गहलोत ने इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी थी और वहीं से मदेरणा की राजनीति का अंत शुरू हो गया.
सचिन पायलट को दी शह-मात
सचिन पायलट और गहलोत के बीच प्रतिस्पर्धा जगज़ाहिर है. गहलोत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं छोड़ी, और संगठनात्मक स्तर पर भी अपनी पकड़ बनाए रखी. उन्होंने हर चाल बड़ी रणनीति के साथ चली और पायलट को उनकी जगह नहीं लेने दी. सितंबर 2022 में जब कांग्रेस हाईकमान नेतृत्व परिवर्तन चाहता था, तब गहलोत समर्थक विधायकों ने इस्तीफे की धमकी दी.
गहलोत का यह कदम हाईकमान के निर्देशों के खिलाफ माना गया.
सूत्रों के मुताबिक, सोनिया गांधी इससे नाराज़ थीं, खासकर इसलिए क्योंकि वे गहलोत को करीबी सहयोगी मानती थीं. फिर भी यह साफ है कि अशोक गहलोत जैसे रणनीतिक खिलाड़ी को कांग्रेस अनदेखा नहीं कर सकती. अब पार्टी उनके अनुभव और कौशल का इस्तेमाल बिहार में करने जा रही है.
'ठंडे दिमाग' से खेलने वाले नेता
राजनीति के इस शतरंज में गहलोत हर चाल सोच-समझकर चलते हैं. वे अपने प्रतिद्वंद्वियों को मात देने के साथ-साथ पार्टी के लिए भी अपने राजनीतिक कौशल का इस्तेमाल करना जानते हैं. गहलोत पुराने दौर के नेता हैं. लालू यादव और अन्य वरिष्ठ नेताओं से उनके संबंध पुराने हैं. वे अपनी मुस्कराहट और मृदुभाषी स्वभाव से सहज ही भरोसा जीत लेते हैं. इसीलिए, बिहार में महागठबंधन के ‘मुख्य ट्रबलशूटर' के रूप में पार्टी ने उन्हीं पर भरोसा जताया है.
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