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जैसलमेर में गणपति बप्पा का काक नदी ने जलाभिषेक, चुंधी गणेश मंदिर का 1500 साल पुराना है इतिहास

चुंधी गणेश मंदिर में बने इस मंदिर के गर्भगृह से होकर पानी का बहाव चलता है. मगर आज दिन तक भी मूर्ति के आकार में कोई परिवर्तन नहीं आया है.

जैसलमेर में गणपति बप्पा का काक नदी ने जलाभिषेक, चुंधी गणेश मंदिर का 1500 साल पुराना है इतिहास
गणपति बप्पा का काक नदी ने जलाभिषेक

Rajasthan News: थार के रेगिस्तान में बसे जैसलमेर में झमझम बारिश के बाद चारों ओर पानी ही पानी नजर आ रहा है. शहर से करीब 18 किलोमीटर दूर चूंधी गाँव के पास से बहने वाली बरसाती नदी काक (काकनेय) अपने उफान पर है. इसी नदी में करीब 1500 साल पुराना गणेश मंदिर है. कहते हैं कि इस गणेश मंदिर में मौजूद प्रतिमा न तो किसी ने बनाई थी, ना ही किसी ने स्थापित की थी. यह गणपति बप्पा की प्रतिमा स्वतः नदी में प्रकट हुई थी.

गर्भगृह से होकर बहता है पानी

बारिश के दिनों में यह नदी अपने उफान पर होती है तो नदी में बने इस मंदिर के गर्भगृह से होकर पानी का बहाव चलता है. बारिश के चलते बहने वाली इस नदी के पानी से भगवान गणेश का जलाभिषेक होता है. मान्यता है कि गणेश चतुर्थी से पहले हमेशा इंद्रदेव बारिश करते हैं, जिससे बप्पा का अभिषेक हो जाता है. भगवान गणेश के मंदिर में पानी पहुंचने पर आस पास के लोग नदी वाले गणेश जी के दर्शन करने पहुंच गए.

भगवान गणेश का बरसाती नदी से अभिषेक होता देख भक्त काफी उत्साहित नजर आ रहे है. मंदिर की प्रतिमा पानी में डूब गई. लोगों ने नदी में पानी के तेज बहाव का आनंद उठाया. बरसाती नदी के बीच बना यह मंदिर देश भर के मंदिरों में अपनी विशेष पहचान रखता है. खास बात यह है कि नदी मंदिर के बीच से होकर मूर्ति को डूबाते हुए निकलती है. मगर आज दिन तक भी मूर्ति के आकार में कोई परिवर्तन नहीं आया है.

1500 साल पुराना है गणेश मंदिर

मान्यता है कि चुंधी गणेश मंदिर में कोई व्यक्ति अगर सच्ची श्रद्धा व आस्था के साथ यहां बहने वाली नदी के पत्थरों से घर बनाकर भगवान के समक्ष अपने आशियाने की मनोकामना प्रकट करते हैं तो घर बनाने की इच्छा पूर्ण होती है. दूर-दूर से भक्त यहां भगवान के दर्शनों के लिये आते हैं. इस मंदिर का इतिहास जैसलमेर की स्थापना से भी पुराना है. मंदिर करीब 1500 वर्ष से भी अधिक पुराना है. उस काल में चंवद ऋषि ने यहां 500 वर्ष तक तप किया था. इसलिए इस स्थान का नाम चूंधी पड़ा. इतना ही नहीं विभिन्न समय में ऋषि-मुनियों ने तपस्या कर इस स्थान के तप को बढ़ाया.

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