
Khippoli vegetable: वर्तमान की भागदौड़ भरी जिंदगी में फास्ट फूड कल्चर तेजी से बढ़ा है. इसके चलते हम हमारे पारंपरिक व्यंजनों से दूर होते जा रहे हैं. राजस्थान (Rajasthan) के मरुस्थलीय भागों में एक वनस्पति पाई जाती है. शेखावाटी क्षेत्र में हर कोई खिपोली की सब्जी का दीवाना हैं. स्वाद के साथ पेट के रोगों को खिपोली की सब्जी राहत पहुंचाती है. रेतीले धोरो में पाई जाने वाली यह खिपोली किसानों के लिए भी बेहद उपयोगी है. साथ ही गणगौर के गीतों में भी इसका बखान किया जाता है.
पाचन क्रिया को भी रखती है ठीक
खिपोली की बेहद स्वादिष्ट होने के साथ ही पाचन क्रिया भी ठीक करती है. इसका दाद, खाज, खुजली सहित विभिन्न त्वचा रोगों और दर्द में उपयोग किया जाता है. दाद में लगातार दर्द होने पर खींप का रस दिन में 5-7 बार लगाने पर काफी राहत मिलती है. साथ ही पशुओं की विभिन्न बीमारियों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.
लगातार हो रही है विलुप्त, संरक्षण की जरूरत
दरअसल, खींप एक तरह की बहुउपयोगी रेगिस्तानी झाड़ी है. इस पर उगने वाली फलियां ही खिपोली होती है. लेकिन बदलती तकनीकी और पर्यावरण परिवर्तन में यह लगातार विलुप्त होती जा रही है. सदाबहार मरुस्थलीय झाड़ी कम होने का दूरगामी असर पड़ सकता है. इसके संरक्षण को लेकर लगातार चिंता जताई जाती है. सामाजिक कार्यकर्ता मोनिका सैनी ने बताया कि खींप का उपयोग छप्पर बनाने के साथ ही चारा, ईंधन व आदि ढकने के काम में आता है. इनकी रस्सी बनाकर छप्पर गूथने के काम में लिया जाता है.
खींप और खीपोली के औषधीय गुण
वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. किशन सियाग ने बताया कि खिपोली की सब्जी में प्रचुर मात्राओं में फाइबर मिलता है, जो कि आंत की कैंसर, कब्ज और बवासीर जैसे रोगाों का समाधान भी कर सकती है. इसमें मौजूद फोलेट और लोह जैसे तत्व शरीर में रक्त की कमी को पूरा करते है. साथ ही न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का समाधान होता है.
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