
राजस्थान हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एसआई भर्ती 2021 को रद्द कर दिया. मेहनत से परीक्षा पास करने वाले युवाओं के सपने चकनाचूर हो गए. इनमें कई ऐसे अभ्यर्थी भी शामिल हैं, जिन्होंने समाजिक ताने-बाने और आर्थिक तंगी से जूझते हुए पूरी ईमानदारी से यह मुकाम हासिल किया था. इनमें से एक कहानी बांसवाड़ा के कुशलगढ़ कस्बे की जेबा मिर्जा की है. बचपन से पढ़ाई में होशियार और हर क्लास मे टॉप करने करने वाली जेबा कड़ी मेहनत और लगन से पढ़ाई करके एसआई भर्ती में चयनित हुई थी.
गोल्ड मेडलिस्ट है जेबा
जेबा गोविंद गुरू विश्वविद्यालय में गोल्ड मेडलिस्ट है. राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र से सम्मानित हो चुकी है. इसके अलावा तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती और पटवारी भर्ती में भी चयन हुआ था. जेबा ने एसआई बनने रास्ता चुना. उसे क्या पता था की मेहनत और ईमानदारी के बाद भी उस पर बेईमानी का धब्बा लग जाएगा.

जेबा की वर्दी में नेमप्लेट लगाते उसके पिता.
पिता 12 हजार करते हैं नौकरी
जेबा का परिवार बहुत साधारण है. उनके पिता महज 12000 रुपए की संविदा पर नौकरी करके दो बेटियों को पढ़ाया. परिवार ने आर्थिक कठिनाइयों और समाज के विरोध की परवाह किए बिना बेटी को आगे बढ़ाया. जेबा 2019 से एसआई भर्ती की तैयारी कर रही थी. साल 2021 की भर्ती में उसका चयन हुआ, तो पूरा परिवार गर्व से भर गया.
नौकरी के बाद टूट गई सगाई
समाज के दबाव और आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा. बात सगाई के रिश्ते के टूटने तक की आ गई, यहां तक कहा गया कि या तो नौकरी करो या रिश्ता बचाओ. परिवार ने रिश्तों की कुर्बानी देकर बेटी का भविष्य चुना.

ट्रेनिंग के दौरान जेबा.
जेबा और उसका परिवार टूट गया
एसआई की ट्रेनिंग के दौरान जेबा ने तमाम कठिनाइयों को झेलते हुए दिन-रात मेहनत की. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. भर्ती रद्द होने के फैसले ने ना सिर्फ जेबा बल्कि पूरे परिवार को तोड़ दिया. आंखों में आंसू लिए पिता ने कहा, "हमने समाज का विरोध सहा, रिश्तों की आहुति दी, आर्थिक तंगी में सब-कुछ दांव पर लगाया, लेकिन आज हमारी मेहनत और ईमानदारी पर बेईमानी का धब्बा लगा दिया गया."
"बेटियों के भविष्य से खिलवाड़"
जेबा की मां ने आक्रोश जताते हुए कहा, "जिन्होंने पेपर लीक किया, बेईमानी की, उन्हें सजा मिले. लेकिन जिन्होंने मेहनत और संघर्ष से मुकाम पाया, उन्हें किस बात की सजा दी जा रही है? सरकार एक तरफ बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ का नारा देती है, वहीं दूसरी तरफ बेटियों के भविष्य से इस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है."

ट्रेनिंग के दौरान जेबा.
जेबा हो गई भावुक
जेबा ने भी भावुक होकर कहा, “मैंने पटवारी और तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में भी चयनित होने के बाद एसआई को ही चुना था. 15 महीने ट्रेनिंग की, उम्मीदों और सपनों को संजोया, लेकिन अब सब-कुछ खत्म हो गया. इससे अच्छा तो मेरी भ्रूण हत्या हो जाती."
यह कहानी सिर्फ जेबा की नहीं, बल्कि उन तमाम युवाओं की है जिन्होंने कठिन संघर्षों के बाद ईमानदारी से सफलता हासिल की थी. अब सवाल यह है कि क्या सरकार और कोर्ट उन बेगुनाह मेहनती अभ्यर्थियों की मेहनत और सपनों का कोई मोल चुकाएंगे? या पेपर माफिया और नकल करने वाले इसी तरह जमानत के नाम पर फिर बाहर आकर जेबा और उसके जैसे मेहनतकश लोगों का मखौल उड़ाते रहेंगे.
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