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जैसलमेर में जिस खेत से फूटा फव्वारा, क्या वहीं से बहती थी सरस्वती नदी? क्या कहते हैं जानकार?

Saraswati River: जानकारों का कहना है कि यह बात सही है कि एक समय में सरस्वती नदी राजस्थान के इस क्षेत्र से बहा करती थी.

Discussions about the Saraswati River in Rajasthan: हाल ही में राजस्थान के जैसलमेर जिले में एक खेत से ट्यूबवेल की खुदाई के दौरान अचानक बहुत ज्यादा पानी निकलने लगा. मोहनगढ़ नहरी क्षेत्र के शास्त्रीनगर ग्राम पंचायत के तारागढ़ गांव की इस घटना की बड़ी चर्चा हो रही है. किसान विक्रम सिंह भाटी के खेत में पानी का फव्वारा इतनी तेजी से निकला कि देखते-देखते आस-पास के सारे खेतों में पानी भर गया और लोग डरने लगे. इससे वहां की जमीन धंस गई और भारी मशीन से लदा एक ट्रक 850 फीट गहरे गड्ढे में समा गया. तीन दिन बाद वहां पानी रुक गया है, लेकिन प्रशासन ने उस क्षेत्र को लेकर सतर्क रहने के लिए कहा है. चेतावनी दी गई है कि वहां से फिर से पानी और गैस का रिसाव हो सकता है. उस ट्यूबवेल के 500 मीटर के क्षेत्र में सामान्य लोगों के जाने पर रोक है. 

लेकिन वहां अचानक से जमीन से इतना ज्यादा पानी कैसे निकला इसे लेकर कई तरह के कयास लग रहे हैं. इनमें एक चर्चा ये भी है कि क्या यह प्राचीन सरस्वती नदी का पानी था जिसका उल्लेख वैदिक ग्रंथों में मिलता है और जो अब विलुप्त हो चुकी है. जानकारों का कहना है कि यह बात सही है कि एक समय में सरस्वती नदी (Saraswati River) राजस्थान के इस क्षेत्र से बहा करती थी.

जानिए क्या है जानकारों की राय

जानकारों का कहना है कि सरस्वती नदी आज भौतिक रूप से विलुप्त मानी जाती है, लेकिन इसके अवशेष और भूगर्भीय प्रमाण भारत के विभिन्न भागों में पाए गए हैं. राजस्थान के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक शहर बीकानेर का भी सरस्वती नदी से जुड़ाव रहा है. जानकार बताते हैं कि भूगर्भीय अध्ययनों और ऐतिहासिक संदर्भों से पता चलता है कि प्राचीन समय में सरस्वती नदी का प्रवाह थार के मरुस्थल से होकर गुजरता था और बीकानेर इसी थार क्षेत्र का हिस्सा है.

डॉ. जानकी नारायण श्रीमाली

डॉ. जानकी नारायण श्रीमाली

वेदों के प्रख्यात विद्वान और सरस्वती नदी के शोधकर्ता डॉ. जानकी नारायण श्रीमाली के मुताबिक, सरस्वती नदी का उद्गम तो गढ़वाल से होता था, लेकिन इसकी एक धारा बीकानेर से होकर बहती थी. डॉ. श्रीमाली ने कहा,"सरस्वती नदी का वर्णन वेदों में भी मिलता है. वहीं वैज्ञानिक अनुसंधानों और उपग्रह चित्रों के माध्यम से भी सरस्वती नदी के पुराने मार्ग का पता लगाया गया है, जिसमें बीकानेर क्षेत्र को भी शामिल किया गया है. भूगर्भीय जांचों में बीकानेर के आसपास के क्षेत्र में नदी की उपस्थिति के प्रमाण मिले हैं, जैसे कि सूखी नदी की धाराएँ, तलछट और जल स्तर के अवशेष. ये सभी सरस्वती नदी के बीकानेर से होकर बहने की कहानी कहते हैं. 

सरस्वती नदी के शोधकर्ता डॉ. जानकी नारायण श्रीमाली के मुताबिक, सरस्वती नदी का उद्गम तो गढ़वाल से होता था, लेकिन इसकी एक धारा बीकानेर से होकर बहती थी.
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बीकानेर में मौजूद है सरस्वती नदी के प्रमाण

विख्यात भू-गर्भ शास्त्री और सरस्वती नदी के शोधकर्ता डॉ. शिशिर शर्मा भी बताते हैं कि सरस्वती नदी के बीकानेर से होकर बहने के प्रमाण चारों तरफ़ मिल जाएंगे. डॉ. शर्मा कहते हैं,"बीकानेर के शहरी इलाक़ों में बने कुओं का पानी आज भी मीठा है, जबकि बाहरी क्षेत्र में बने कुओं का पानी खारा है. वहीं यहाँ जो बजरी निकलती है उसका रंग लाल और पीला है. इसके अलावा जिन इलाक़ों से सरस्वती नदी बहती थी, वहां की मिट्टी रेगिस्तानी मिट्टी से अलग क़िस्म की है. उसमें पत्थर पाए जाते हैं. ये तमाम बातें इस बात का प्रमाण है कि सरस्वती नदी का बहाव ईसा पूर्व आज से 9000 साल पहले यहाँ से था."

डॉ. शिशिर शर्मा

डॉ. शिशिर शर्मा

वहीं प्रसिद्ध साहित्यकार और सरस्वती नदी के जानकार राजाराम स्वर्णकार कहते हैं,"बीकानेर के क्षेत्र में सरस्वती नदी के प्रवाह के कारण यहां प्राचीन काल में कृषि और जल आपूर्ति का समृद्ध साधन रहा होगा. इसके साथ ही यह क्षेत्र व्यापारिक मार्गों का केंद्र भी बना, जिससे बीकानेर की सभ्यता और सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान हुआ."

विख्यात भू-गर्भ शास्त्री और सरस्वती नदी के शोधकर्ता डॉ. शिशिर शर्मा बताते हैं कि सरस्वती नदी के बीकानेर से होकर बहने के प्रमाण चारों तरफ़ मिल जाएंगे.

शोधकर्ता डॉ. चक्रवर्ती नारायण श्रीमाली ने सरस्वती नदी का उद्गम और विकास नाम से उनका शोध ग्रंथ भी है. वो कहते हैं,"जलवायु परिवर्तन और भूगर्भीय गतिविधियों के कारण सरस्वती नदी धीरे-धीरे सूख गई. इसका प्रवाह रेगिस्तान में विलुप्त हो गया, और इसके परिणामस्वरूप बीकानेर क्षेत्र में जल संकट उत्पन्न हुआ. हालांकि, सरस्वती नदी की यादें और इसके महत्व का वर्णन आज भी भारतीय इतिहास, पौराणिक कथाओं और साहित्य में जीवित है."

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