
Rajasthan News: खनिजों की खोज, इनके वैज्ञानिक आधार पर दोहन एवं उपयोग और पर्यावरण संरक्षण से लेकर सतत विकास में भूवैज्ञानिकों की अहम भूमिका रही है. प्रोफेशनल स्किल्स से जियोलोजिस्टों ने अपनी पहचान बनाई है. इसी कारण आज दुनिया भर में भूवैज्ञानिक दिवस मनाया जा रहा है. भूगर्भ शास्त्री, पर्यावरणविद् और राजकीय कन्या महाविद्यालय सूरसागर में प्राचार्य प्रोफेसर (डॉ) अरुण व्यास ने बताया कि अप्रैल माह के पहले रविवार को दुनिया भर में भूवैज्ञानिक दिवस मनाया जाता है. पृथ्वी पर मौजूद विभिन्न चट्टानों के अध्ययन, पृथ्वी ग्रह के छः अरब साठ करोड़ वर्ष के इतिहास, भूकंप और सूनामी एवं ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित अध्ययन, वातावरण और जीवन के विकास तथा विभिन्न खनिज संपदा की खोज व दोहन में भूवैज्ञानिकों की अहम भूमिका रही है. भूजल और खनिज संसाधनों के सतत विकास एवं पर्यावरण संरक्षण के साथ इनके संतुलित दोहन में भूवैज्ञानिक अपनी प्रोफेशनल स्किल्स का प्रर्दशन कर दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई हैं.
इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स की आधारभूत संरचना व इसकी वाईएबलिटी, साइट सलेक्शन, बिल्डिंग मैटेरियल की उपलब्धता में भी भूवैज्ञानिक अपनी कार्य दक्षता दिखाते है. प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन से लेकर भू संसाधनों के आकलन और इनके संरक्षण में भूवैज्ञानिक महत्वपूर्ण रोल अदा कर रहे है. माइंस, मिनरल्स और बिल्डिंग मैटेरियल के क्षेत्रों में भूवैज्ञानिक इकोनोमिक जियोलॉजी में अपनी कार्यशैली का लोहा मनवा चुके है.

खनिजों का म्यूजियम है राजस्थान
प्रोफेसर व्यास ने बताया कि राजस्थान में अस्सी के करीब विभिन्न प्रकार के खनिज निक्षेप मिलते है और लगभग साठ प्रकार के खनिजों का खनन किया जा रहा है और खनिजों से अरबों रुपयों का राजस्व प्राप्त होता है. राजस्थान में ढ़ाई हजार बरस पहले से खनन और स्मेलटिंग का इतिहास है. प्रदेश में सीसा, जस्ता, तांबा, जिप्सम, सोप स्टोन, कैल्साइट, रॉक फॉस्फेट, फैल्सपार , गार्नेट के अलावा लिग्नाइट, प्राकृतिक तेल और गैस के प्रमुख भंडार है और इन खनिजों के उत्पादन में राजस्थान की देश में भागीदारी अहम् है. बिल्डिंग स्टोन सेंडस्टोन, ग्रेनाइट और मार्बल में भी राजस्थान की विशेष पहचान है और लाइमस्टोन की भी प्रचुरता है. जोधपुर जिले में सेंडस्टोन की खानों से निकलने वाले छितर के पत्थर की डिमांड वैश्विक स्तर पर है.
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स्कूलों में पढ़ाया जाए भू-विज्ञान
भूवैज्ञानिक दिवस के अवसर पर प्रोफेसर डॉ अरुण व्यास ने स्कूली शिक्षा में भूविज्ञान विषय को आरंभ कर इसके प्रसार का आह्वान किया, ताकि स्कूल स्तर पर ही विद्यार्थी को भू संसाधनों की जानकारी और इनके दोहन और संरक्षण तथा पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर समझ व सोच जागृत हो सकें. उन्होंने बताया कि माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर, राजस्थान में भू-विज्ञान विषय विज्ञान संकाय में ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में पढ़ने के लिए स्वीकृत किया हुआ है. अतः अधिक से अधिक उच्च माध्यमिक विद्यालयों में इस विषय को शिक्षण के लिए प्रारंभ किया जाना चाहिए, ताकि विद्यार्थी स्कूल शिक्षा उपरांत भू-विज्ञान विषय में आगे कालेज में स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर दक्षता हासिल कर भू-वैज्ञानिक क्षेत्र में कैरियर निर्माण कर सकें.