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16 साल की उम्र में मारवाड़ के शासक बनें महाराजा उम्मेदसिंह का इतिहास, आज भी क्यों याद करते हैं लोग?

Maharaja Umed Singh News: महाराजा उम्मेदसिंह 16 साल की उम्र में मारवाड़ के शासक बन गएं. चुनौतीपूर्ण समय में एक सशक्त व आधुनिक मारवाड़ का निर्माण किया. 

16 साल की उम्र में मारवाड़ के शासक बनें महाराजा उम्मेदसिंह का इतिहास, आज भी क्यों याद करते हैं लोग?
महाराजा उम्मेदसिंह (फाइल फोटो)

Maharaja Umed Singh History: देश में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में आधुनिकता तेज गति से अग्रसर हो रही है. लेकिन रियासत काल के दौरान जोधपुर के महाराजा उम्मेद सिंह की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में भी कई रूप में कारगर साबित होते देखे जा रहे हैं. मारवाड़ के महाराजा उम्मेद सिंह को आधुनिक मारवाड़ के जनक-निर्माता के तौर पर जाना जाता है. जिसके बाद 9 जून 1947 को महाराजा उम्मेदसिंह का माउंट आबू में जोधपुर कोठी में निवास के दौरान बीमारी के बाद निधन हो गया और वहां से शव जोधपुर लाया गया.

राजवंश की परम्परानुसार उनका अन्तिम संस्कार 10 जून को जसवन्तथड़ा के समाधि स्थल पर किया गया. लोकप्रिय व विकास पुरूष महाराजा के निधन के समाचार से पूरा मारवाड़ शोक में डूब गया. उस समय मारवाड़ की जनता को ऐसा लगा था कि उनके निधन से मारवाड़ व प्रदेश को अपूरणीय क्षति हुई है. आधुनिक जोधपुर के निर्माता को उनके द्वारा करवाये जनहित के कार्यों को सदैव स्मरण किया जाता रहेगा.

मारवाड़ का स्वर्ण युग

राजेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि आधुनिक जोधपुर के शिल्पकार व निर्माता महाराजा उम्मेदसिंह ने अपने शासनकाल में प्रजा हित में कई विकास कार्य करवाएं, जिसके कारण उन्हें 113 वर्ष बाद में भी आधुनिक जोधपुर के निर्माता व शिल्पकार के रूप में मारवाड़ की प्रजा द्वारा स्मरण किया जाता है. इनका शासनकाल मारवाड़ के इतिहास का स्वर्ण युग के रूप में याद किया जाता रहेगा.

महाराजा उम्मेदसिंह अत्यन्त विवेकशील और प्रशासनिक गुणों से परिपूर्ण शासक थे. उनके शासनकाल में मारवाड़ का चहुंमुखी विकास हुआ. अनेक महत्वाकांक्षी विकास योजनाए बनवाई और उन पर सार्थक कार्य भी करवाए. 

महाराजा उम्मेदसिंह का परिचय

राठौड़ ने बताया कि महाराजा उम्मेदसिंह का जन्म 8 जुलाई 1903 को जोधपुर में हुआ. वह महाराजा सरदारसिंह के द्वितीय महाराजकुमार और महाराजा सुमेरसिंह के छोटे भाई थे. मूल नक्षत्र में जन्म के कारण उनका मूलसिंह रखा गया था, जो ज्योतिषियों की राय के अनुसार सन् 1905 में 'उम्मेदसिंह' के नाम में परिवर्तित कर दिया गया. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा राजपूत नोबल्स स्कूल, चौपासनी में हुई. इसके बाद मेयो कॉलेज, अजमेर और राजकुमार कॉलेज, राजकोट में शिक्षा प्राप्त की. अक्टूबर 1918 में जब उनके बड़े भाई महाराजा सुमेरसिंह का 21 वर्ष की आयु में देहान्त होने पर उन्हें जोधपुर बुला लिया गया.

महाराजा सुमेरसिंह के कोई पुत्र नहीं होने के कारण सोलह वर्ष की उम्र में 14 अक्टूबर, 1918 में उम्मेदसिंह मारवाड़ के महाराजा के रूप में राजसिंहासन पर विराजमान हुए. अल्प वयस्कता के कारण सर प्रतापसिंह की अध्यक्षता में 4 दिसम्बर 1918 को रीजेंसी कौंसिल की स्थापना की गई, जिसकी देख-रेख में मारवाड़ का शासन चलाया जाने लगा. महाराजा उम्मेदसिंह ने 9 जून 1947 तक 30 वर्ष में जोधपुर रियासत का कायाकल्प सा कर दिया.    महाराजा के प्रारम्भिक वन पर सर प्रताप जैसे सुयोग्य अभिभावक का पर्याप्त प्रभाव पड़ा.

ब्रिटिश सरकार ने कई बार किया सम्मानित

राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने आगे बताया कि महाराजा उम्मेदसिंह ने एक प्रजावत्सल भारतीय नरेश की योग्यता और क्षमता का तो सफल निर्वहन किया ही था. लेकिन उनके व्यक्तित्व में कुछ ऐसे विशिष्ट गुण भी थे जिनके कारण भारत की ब्रिटिश सरकार द्वारा अनेक बार उत्कृष्ट पदक और सम्मान प्रदान किये गए. 24 अक्टूबर, 1921 को उन्हें सेना से ऑनरेरी कैप्टिन का पद दिया और 17 मार्च, 1922 में वे के.सी.वी.ओ. की उपधि से विभूषित किए गए. 2 जून 1923 को वे ऑनरेरी मेजर बनाए गए और 3 जून 1925 को उन्हें के.सी.एस.आई. का सम्मान प्रदान किया गया.

उन्हें 1931 में 'एयर कमोडोर' का सम्मान मिला. 18 अगस्त 1933 को वे ऑनरेरी लेफ्टिनेंट कर्नल बनाये गये व 23 जून, 1936 को उन्हें ए.डी.सी. एवं सेना में ऑनरेरी कर्नल के पद से भी अलंकृत किया गया. उन्हें 1945-46 में 'एयर वाइस मार्शल' जैसा सम्मान प्रदान किया गया.15 अक्टूबर, 1946 को उन्हें 'ऑनरेरी लेफ्टिनेंट जनरल' की उपाधि प्रदान की गयी.

उम्मेद भवन पैलेस का निर्माण

मारवाड़ में भयंकर अकाल के दौरान अकाल पीड़ित प्रजा को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए उम्मेद भवन पैलेस निर्माण की योजना बनाई गई और 18 नवम्बर, 1929 को महाराजा उम्मेदसिंह ने भूमि पूजन और शिलान्यास किया. इंग्लैण्ड के वास्तुकार लांसचेस्टर एण्ड लॉज व इनके प्रतिनिधि व वास्तुविद् एवं शिल्कार .ए. गोल्डस्ट्रा व भवन निर्माण का ठेका आर.बी. शिवरतन मोहता को दिया गया. छीतर पहाड़ी पर निर्मित होने के कारण इसका नाम छीतर पैलेस के नाम से जाने जाना गया.

इसका निर्माण 26 एकड़ क्षेत्रफल में हुआ और 15 एकड़ पर गार्डन लगाया गया. पैलेस में 365 कमरों का निर्माण हुआ. इसके निर्माण से हजारों लोगों को रोजगार मिला. 25 मई 1944 को महाराजा उम्मेदसिंह के चौथे पुत्र महाराजकुमार देवीसिंह ने महल प्रवेश का मुहूर्त किया. इसके निर्माण पर 1 करोड़ 9 लाख 11 हजार 228 रुपये व्यय हुए.

सबसे बड़े महिला अस्पताल का करवाया निर्माण

महिलाओं व बच्चों को चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सिवांची दरवाजा के बाहर 170 शैयाओं के उम्मेद अस्पताल का निर्माण करवाया गया जो मारवाड़ का सबसे बड़ा महिला चिकित्सालय है. इसका निर्माण 1934 में शुरु हुआ और 31 अक्टूबर 1938 में इसका उद्घाटन महाराजा उम्मेदसिंह  की पुत्री बाईलाल राजेन्द्र कुमारी ने किया था. इस के साथ ही विंडम अस्पताल जिसे वर्तमान महात्मा गांधी अस्पताल कहते है.

इसका निर्माण महाराजा उम्मेदसिंह ने मारवाड़ स्टेट काऊंसिल के वाइस प्रेसिडेण्ट सी.जे. विंडम के नाम पर 2 सौ शैयाओं का विंडम अस्पताल का निर्माण करवाया. इसका शिलान्यास 19 नवम्बर 1929 को और उद्घाटन 9 सितम्बर 1932 को महाराजा उम्मेदसिंह ने किया. इसके निर्माण पर 15 लाख 80 हजार 598 रुपयों की लागत आई.

राजशाही शासन में खेलो को बढ़ावा देने का काम

जोधपुर में खेल सुविधाओं के लिए 14 अक्टूबर 1939 को स्टेडियम का निर्माण कर उद्घाटन किया वर्तमान में इसका नाम उम्मेद राजकीय स्टेडियम है. इसके साथ ही शहरवासियों के भ्रमण के लिए 1934 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेलिंगटन के नाम पर 'वेलिंगटन गार्डन' का निर्माण करवाया. बाद में इसका नाम महाराजा उम्मेदसिंह के नाम पर 'उम्मेद उद्यान' रखा गया. इसके निर्माण पर 6 लाख 9 हजार 870 रुपयों की लागत आयी.

सिल्वर जुबली कोर्ट

मारवाड़ में न्याय व्यवस्था की मजबूती के तहत जोधपुर में सिल्वर जुबली कोर्ट निर्माण की 14 अप्रैल 1934 को योजना बनवायी और 1935 में इसका निर्माण हुआ. यह भवन प्रारम्भ में जोधपुर राज्य का चीफ कोर्ट था जो वर्तमान में राजस्थान उच्च न्यायालय के पुराने भवन के रूप में पहचाना जाता है. हाईकोर्ट के नए भवन में शिफ्ट होने के बाद वर्तमान में यह जिला न्यायालय की कोर्ट लगती है.

जलीय संकट से बचाने के लिए किए प्रयास

जोधपुर में पानी की कमी को देखते हुए पाली के हेमावास बांध से जोधपुर तक तख्तसागर बांध तक 60 मील लम्बी जंवाई नहर का निर्माण करवाया गया, जिस पर 18 लाख रुपये व्यय किये गए. चौपासनी के पास फिल्टर हाऊस भी बनवाया गया. इससे काफी समय तक पेयजल समस्या का निवारण हुआ.

अकाल में अंदाताओ को राहत देने के लिए किए प्रयास

1939 में मारवाड़ में घोर अकाल के समय राजधर्म निभाते हुए महाराजा उम्मेदसिंह ने सस्ते अनाज की दुकानें व गरीबों के लिए रामरसोड़े खुलवाये. किसानों को तकाबी दी गई और गांवों में राहत कार्य खुलवाए. घी की कमी के कारण वनस्पति घी का आयात किया. खालसा के गांवों के काश्तकारों के बन्दोबस्त के पहले के लगान और कुछ लागे-खरड़ा, घासमारी माफ की गई. 320 छोटे जागीरदारों की 5 वर्ष पहले की बकाया रेख और चाकरी माफ की गई. एक लाख रुपये तक के तकाबी ऋण माफ कर दिए.

पाठशालाओं का निर्माण

शिक्षा के क्षेत्र में समुचित ध्यान दिया गया. राज्य में सरकारी और गैर सरकारी विद्यालयों की स्थापना की गई. संस्कृत पाठशालाएं खुलवाई, प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के लिए छात्रवृति, शिक्षा को रोजगार से जोड़ने की योजनाऐं चलायी, 1926 में शिक्षा निदेशक का पद सृजित किया व 1930 में पुरुष व महिला शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान व जागीरी क्षेत्रों में स्कूलों की स्थापना करवाई.

मारवाड़ रियासत में की उड्डयन विभाग की स्थापना

महाराजा उम्मेदसिंह के कार्यकाल में उड्डयन विभाग की स्थापना प्रमुख कार्य रहा 1925-26 में जोधपुर हवाई अड्डा व उत्तरलाई हवाई अड्डे का निर्माण शुरु किया. 1933 तक मारवाड़ में 15 स्टेशन बनाये गए. 16 नवम्बर 1931 को जोधपुर फ्लाइंग क्लब की स्थापना हुई. महाराजा उम्मेदसिंह खुद अच्छे विमान चालक थे. उस समय जोधपुर हवाई अड्डे पर अन्तर्राष्ट्रीय विमान सुविधाऐं विकसित की गई.

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