
Rajasthan News: राजस्थान के बाड़मेर जिले में होली का त्योहार उत्साह और परंपराओं से भरपूर रहता है. गुरुवार रात भद्रा काल के समाप्त होते ही होली का दहन किया गया. इसके बाद शुक्रवार को पूरे दिन धुलंडी का जोश देखने को मिला. पूरे देश में लोग रंगों और उमंग के साथ होली मना रहे हैं. बाड़मेर में इस त्योहार की एक खास परंपरा "ढूंढने" की मान्यता हर किसी का ध्यान आकर्षित करती है.
पिछली होली के बाद जन्मे बच्चों को ढूंढते हैं
बच्चों को ढूंढने की परंपरा पिछली होली के बाद जन्मे बच्चों को इस दिन ढूंढने की परंपरा निभाई जाती है. गांव-मोहल्लों के युवा और बच्चे ढोल-चंग बजाते हुए उन घरों में पहुंचते हैं, जहां पिछले साल बच्चा पैदा हुआ हो. ये लोग नाचते-गाते हुए परिवार को शुभकामनाएं देते हैं. फाग गीत और लोक देवताओं के जयकारों के बीच बच्चों के स्वस्थ और उज्ज्वल भविष्य की कामना की जाती है.
पिता से नेग और मां से नारियल और गुड लेते हैं
नेग और दुआओं की रस्में बच्चों को घर के चौक में चाचा, मामा या बड़े भाई की गोद में बैठाकर लकड़ी की डांडियों से समूह गायन किया जाता है. बच्चे के पिता से नेग और मां से नारियल व गुड़ लेने की प्रथा है. धुलंडी के दिन बच्चों के ननिहाल और बुआ के घर से कपड़े और खिलौने सहित अन्य उपहार आते हैं.
दूल्हे की तरह सजाकर बच्चों का रचाते विवाह
विशेष सजावट और परिक्रमा महिलाएं एक साल से छोटे बच्चों को दूल्हे की तरह सजाकर विवाह रचाने का स्वांग करती हैं. बच्चे को जलती होली के इर्द-गिर्द परिक्रमा करवाया जाता है. यह परंपरा न केवल उत्सव को खास बनाती है बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को भी बढ़ावा देती है. यह परंपरा बाड़मेर की संस्कृति और परंपरा का अद्भुत उदाहरण है, जो इसे होली के त्योहार पर और भी खास बनाती है.
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