
Rajasthan News: राजस्थान में होलिका दहन कब और कितने बजे होगा? अगर आप भी शुभ मुहूर्त की टाइमिंग को लेकर कन्फ्यूज हैं तो जान लीजिए कि होलिका दहन आमतौर पर प्रदोष काल में किया जाता है, लेकिन अगर भद्रा का साया हो तो होलिका दहन का समय बदल जाता है. ज्योतिषों के अनुसार, 13 मार्च को पूरे दिन भद्रा का साया रहने वाला है, इसीलिए होलिका दहन प्रदोष काल में ना होकर देर रात किया जाएगा.
होलिका दहन पूजा विधि
होलिका दहन करने के लिए लकड़ियों का ढेर तैयार किया जाता है. इस ढेर में नारियल, भुट्टे, अक्षत, गुलाल, कंडे, पुष्प, गेंहू की बालियां और बताशे आदि डाले जाते हैं. होलिका पर रोली बांधकर उसकी परिक्रमा की जाती है. इसके बाद होलिका दहन किया जाता है. होलिका की अग्ननि में सुपारी, नारियल और पान डाले जाते हैं. जलती होलिका की परिक्रमा की जाती है और घर-परिवार की सुख-शांति की मनोकामना की जाती है. होली की पूर्व संध्या को मनाया जाने वाला यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है.
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30 साल बाद बन रहा दुर्लभ संयोग
इस साल ग्रहों की विशेष स्थिति के कारण एक दुर्लभ संयोग भी बन रहा है. गुरुवार के दिन सूर्य, बुध और शनि का कुंभ राशि में होना और शूल योग का बनना एक विशेष खगोलीय संयोग दर्शाता है, जो इससे पहले 1995 में बना था. ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार, इस दिन मध्यरात्रि में तंत्र साधना के लिए विशेष महत्व रहता है. हालांकि, इस दिन लगने वाला चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, जिसके चलते इसका सूतक भी भारत में मान्य नहीं होगा. इसके बावजूद, धार्मिक परंपराओं और श्रद्धालुओं के उत्साह के साथ राजस्थान में होली का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाएगा.
होलिका दहन क्यों किया जाता है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी, जो हिरण्यकश्यप के बेटे प्रह्लाद को जलती लकड़ियों के ढेर में लेकर बैठ गई थी. होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि आग उसे नहीं जला सकती, परंतु मासूम प्रह्लाद पर भगवान विष्णु की कृपा थी. हिरण्यकश्यप प्रह्लाद को मारना चाहता था, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई. ऐसे में हर साल होलिका दहन पर लकड़ियों का ढेर जलाया जाता है और इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है.
अगले दिन मनाते हैं रंगों का त्योहार
होलिका दहन के बाद अगले दिन सुबह धुलेंडी मनाई जाती है. इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाए जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग मन की खटास को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं. एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है. इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयां खिलाते हैं.
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