
Rajasthan News: राजस्थान हाई कोर्ट (Rajasthan HC) ने शुक्रवार को आईएएस अधिकारी भवानी सिंह देथा (IAS Bhawani Singh Detha) के खिलाफ अवमानना नोटिस (Contempt Notice) का निपटारा कर दिया, क्योंकि उन्होंने अदालत के आदेश का पालन न करने के लिए बिना शर्त माफी मांगी थी. सुनवाई के दौरान जस्टिस उमाशंकर व्यास ने जनता की सेवा करने के लिए न्यायपालिका और प्रशासनिक अधिकारियों दोनों की जिम्मेदारी को रेखांकित किया.
'खुद को आम आदमी की जगह रखकर देखें'
जस्टिस ने कहा, 'मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से आता हूं, इसलिए मैं एक आम आदमी के संघर्ष को समझता हूं. जब अदालत के आदेशों का पालन नहीं किया जाता है, तो लोग वकीलों को नियुक्त करने और अवमानना याचिका दायर करने के लिए मजबूर होते हैं. खुद को उनकी जगह रखकर देखें और उनकी कठिनाइयों को समझें. जनहित में, समय पर अदालत के आदेशों का पालन करना महत्वपूर्ण है.'
आईएएस ने बिना शर्त जस्टिस से मांगी माफी
जवाब में, भवानी सिंह देथा ने खेद व्यक्त करते हुए कहा, 'मैं बिना शर्त अदालत से माफी मांगता हूं और आश्वासन देता हूं कि भविष्य में सभी अदालती आदेशों का तुरंत पालन किया जाएगा.' बताते चलें कि हाई कोर्ट ने न्यायिक निर्देश का पालन न करने के लिए आईएएस अधिकारी भवानी सिंह देथा, शुचि त्यागी और आर.सी. मीना कॉलेज के जॉइंट डायरेक्टर को तलब किया था.
'अधिकारी बताएं, उन्हें दंडित क्यों न किया जाए'
कोर्ट ने कहा, 'हालांकि आदेश का पालन 18 दिनों के भीतर किया गया, लेकिन यह केवल सख्त न्यायिक हस्तक्षेप के कारण ही संभव हो सका. पब्लिक सर्वेंट होने के नाते वरिष्ठ अधिकारियों की जिम्मेदारी अधिक होती है. उनकी निष्क्रियता और अदालती आदेशों की बार-बार अवहेलना दुर्भाग्यपूर्ण है. चूंकि अब अनुपालन किया जा चुका है, इसलिए जेल जाना उचित नहीं माना जाता है. हालांकि, लंबे समय तक अनुपालन न करने पर दंड पर अभी भी विचार किया जा सकता है. अधिकारियों को यह बताना होगा कि उन्हें दंडित क्यों नहीं किया जाना चाहिए?'
कोर्ट ने क्यों जारी किया था अवमानना नोटिस?
शुक्रवार को देथा और मीना अदालत में पेश हुए थे, जबकि शुचि त्यागी ने अनुपस्थिति के लिए आवेदन प्रस्तुत किया. उनके माफी मांगने के बाद, कोर्ट ने तीनों अधिकारियों के खिलाफ अवमानना नोटिस वापस ले लिया. यह मामला सांभर झील के सरकारी कॉलेज में लेक्चरर डॉ. डी.सी. डूडी द्वारा दायर याचिका से उपजा है. इससे पहले वे हरियाणा में कार्यरत थे, लेकिन 1998 में उन्हें राजस्थान में लेक्चरर पद के लिए चुना गया था. हालांकि, राज्य शिक्षा विभाग ने करियर एडवांसमेंट स्कीम के तहत उनकी पिछली सेवा अवधि को शामिल नहीं किया, जिससे उनके वेतनमान लाभ में 1.5 साल की देरी हुई.
SC ने खारिज कर दी थी सरकार की अपील
डॉ. डूडी ने मामले को कोर्ट में ले गए और 5 मई 2022 को सिंगल बेंच ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया. राज्य सरकार ने खंडपीठ में अपील की, जिसने आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जिसने 27 सितंबर, 2023 को सरकार की अपील को खारिज कर दिया. इन फैसलों के बावजूद, विभाग ने अनुपालन में देरी जारी रखी, जिससे अवमानना कार्यवाही हुई. शुक्रवार की सुनवाई और अधिकारियों की औपचारिक माफ़ी के साथ, मामला अब कानूनी रूप से सुलझ गया है. हालांकि, यह मामला सरकारी अधिकारियों को अदालती आदेशों का समय पर अनुपालन करने के महत्व के बारे में एक मजबूत अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है.
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