
Rajasthan Politics: राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अंता विधायक कंवरलाल मीणा की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई है. इसके बाद कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का बयान सामने आया है. दरअसल कांग्रेस के प्रयासों के कारण ही विधायक की यह सदस्यता रद्द हुई है. इसके बाद अब गोविंद सिंह डोटासरा और टीकराम जुली और अशोक गहलोत ने इस घटना पर अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं.
'लोकतांत्रिक व्यवस्था में संविधान सर्वोपरि'
गोविंद सिंह डोटासरा ने अपने सोशल मीडिया पर लिखा है कि कांग्रेस पार्टी के भारी दबाव एवं नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जुली के द्वारा हाई कोर्ट में 'कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट' की अर्जी पेश करने के बाद आखिरकार भाजपा को सजायाफ्ता विधायक कंवर लाल की सदस्यता रद्द करनी पड़ी. लोकतांत्रिक व्यवस्था में संविधान सर्वोपरि है. कांग्रेस पार्टी यह बात बार-बार RSS-BJP के नेताओं को बताती रहेगी और उन्हें मजबूर करेगी वो संविधान के मुताबिक काम करें.
विपक्ष ने सौंपे ज्ञापन
डोटासरा ने आगे लिखा कि क़ानून के मुताबिक भाजपा विधायक कवंरलाल को कोर्ट से 3 साल की सजा होते ही उनकी सदस्यता रद्द कर देनी जानी चाहिए थी. लेकिन कोर्ट के आदेश के 23 दिन बाद भी भाजपा के सजायाफ्ता विधायक की सदस्यता विधानसभा अध्यक्ष द्वारा रद्द नहीं की गई.
इस मामले में विपक्ष के ज्ञापन सौंपने और चेताने के बाद भी विधानसभा अध्यक्ष दंडित विधायक को बचाते रहे. इस दौरान उन्होंने एक अभियुक्त को बचाने के लिए न सिर्फ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया बल्कि संवैधानिक प्रावधानों और कोर्ट के आदेश की अवहेलना की.
'अंतत: जीत सत्य की हुई'
डोटासरा ने आगे लिखा कि लेकिन अंतत: जीत सत्य की हुई और कंवरलाल की सदस्यता रद्द करनी पड़ी, क्योंकि देश में क़ानून और संविधान की पालना कराने के लिए कांग्रेस की सेना मौजूद है. एक देश में दो कानून नहीं हो सकते.
विपक्ष के दबाब में लिया सरकार ने निर्णय
इस घटना पर नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने बताया कि यह केवल एक सदस्यता रद्द होने का मामला नहीं, बल्कि लोकतंत्र और संविधान की मर्यादा की बहाली है. भाजपा सरकार ने एक दोषसिद्ध विधायक की सदस्यता को कोर्ट के आदेश के 23 दिन बाद तक रोके रखा, यह न केवल संविधान की अवहेलना थी, बल्कि न्याय व्यवस्था का भी अपमान था.
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने जानबूझकर मामले को लटकाया. कांग्रेस पार्टी को राज्यपाल से लेकर विधानसभा अध्यक्ष तक ज्ञापन देने पड़े और अंततः कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल करनी पड़ी, तब जाकर यह फैसला हुआ है.
कार्रवाई में देरी, लोकतंत्र के साथ धोखा
जूली ने कहा कि भारतीय कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि जब किसी जनप्रतिनिधि को दो वर्ष या उससे अधिक की सजा होती है, तो उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है.
कंवरलाल मीणा को तीन साल की सजा मिलने के बावजूद कार्रवाई में देरी लोकतंत्र के साथ धोखा था. आज का दिन दर्शाता है कि भारत में संविधान और कानून ही सर्वोपरि है. यह न्यायप्रिय जनता की जीत है.
23 दिन पहले लेना था ये निर्णय
इसके साथ ही पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने भी इस मामले में अपने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि यह निर्णय 23 दिन पहले ही लेना था. लेकिन अब सरकार को विपक्ष के दबाब में आकर ये निर्णय लेना पड़ा है. यह निर्णय सजा का ऐलान होते ही लेना चाहिए था.
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