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अजमेर: ख्वाजा गरीब नवाज का 814वां उर्स शुरू, झंडे की रस्म क्या है? जिसे गौरी परिवार ने निभाया

गौरी परिवार ने ऐतिहासिक परंपरा निभाते हुए बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ाया. झंडे की रस्म के दौरान खादिम समुदाय के लोग ढोल-नगाड़ों, पुलिस बैंड और “भर दो मेरी झोली ख्वाजा” जैसे सूफियाना कलाम गाते हुए दरगाह के मुख्य द्वार तक पहुंचे.

अजमेर: ख्वाजा गरीब नवाज का 814वां उर्स शुरू, झंडे की रस्म क्या है? जिसे गौरी परिवार ने निभाया
अजमेर: ख्वाजा गरीब नवाज का 814वां उर्स शुरू
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Ajmer Dargah Khwaja Garib Nawaz Urs: राजस्थान के अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर बुधवार को झंडा चढ़ाने की रस्म के साथ 814वें उर्स की शुरुआत हो गई है. ऐतिहासिक बुलंद दरवाजे पर झंडा फहराए जाने के दौरान पूरे दरगाह परिसर में अकीदत और रूहानियत का माहौल देखने को मिला. इस मौके पर देश-विदेश से आए हजारों जायरीन मौजूद रहे. झंडा चढ़ते ही “ख्वाजा की नगरी” के नारो से वातावरण गूंज उठा और उर्स की औपचारिक शुरुआत मानी गई. 

गौरी परिवार ने निभाई झंडे की रस्म

ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर झंडे की रस्म भीलवाड़ा के गौरी परिवार द्वारा निभाई जाती है. इस साल भी गौरी परिवार ने ऐतिहासिक परंपरा निभाते हुए बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ाया. दरगाह के खादिम हसन हाशमी ने बताया कि सदियों से दरगाह में यह रस्म अदा की जा रही है और यह मन्नत का झंडा होता है, जिसे हर साल अकीदत के साथ चढ़ाया जाता है. उन्होंने कहा कि उर्स की शुरुआत के साथ दरगाह से यही संदेश दिया जाता है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, यहां आकर अपनी मुराद मांग सकता है. 

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कब शुरू हुई थी दरवाजे पर झंडे की रस्म

गौरी परिवार के अनुसार, झंडे की रस्म की शुरुआत वर्ष 1928 में फखरुद्दीन गौरी के पीर-मुर्शिद अब्दुल सत्तार बादशाह ने की थी. इसके बाद 1944 में यह जिम्मेदारी उनके दादा लाल मोहम्मद गौरी को सौंपी गई. वर्ष 1991 से उनके पुत्र मोईनुद्दीन गौरी ने इस रस्म को निभाया, जबकि 2007 से फखरुद्दीन गौरी झंडे की रस्म अदा कर रहे हैं. बताया जाता है कि पहले जब बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ता था तो वह दूर-दराज के गांवों तक नजर आता था, लेकिन समय के साथ बढ़ती आबादी और इमारतों के कारण अब यह दृश्य सीमित हो गया है.

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Photo Credit: NDTV

झंडे को चूमने के लिए उमड़े जायरीन

झंडे की रस्म के दौरान खादिम समुदाय के लोग ढोल-नगाड़ों, पुलिस बैंड और “भर दो मेरी झोली ख्वाजा” जैसे सूफियाना कलाम गाते हुए दरगाह के मुख्य द्वार तक पहुंचे. झंडे को चूमने और उससे बरसने वाली गुलाब की पंखुड़ियों को तबर्रुक के तौर पर लेने के लिए जायरीनों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. निजाम गेट और बुलंद दरवाजे के आसपास सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पुलिस का भारी जाप्ता तैनात रहा, जो भीड़ को नियंत्रित करता नजर आया. पूरे आयोजन के दौरान श्रद्धा, अनुशासन और सूफी परंपरा की झलक साफ दिखाई दी.

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