जैसलमेर जिले से लगभग 130 किलोमीटर दूर सरहद पर 'तनोट' नामक गांव स्थित है, जहां एक देवी का ऐसा मंदिर है जो 1965 और 1971 के युद्ध में देश के जवानों की रक्षक बनी. हम बात करते हैं 'युद्ध वाली देवी' के नाम से प्रसिद्ध 1250 वर्ष पुराने मां तनोटराय मंदिर (Tanot Rai Mata Mandir) की.
मामड़िया चारण की पुत्री देवी आवड़ को तनोट माता के रूप में पूजा जाता है. पुराने चारण साहित्य के अनुसार तनोट माता, हिंगलाज माता की अवतार हैं, जिनका प्रसिद्ध मंदिर बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में है. भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने विक्रम सवंत 828 में तनोट का मंदिर बनवाकर मूर्ति को स्थापित किया था.
तनोट माता मंदिर का इतिहास
मां के भक्तों ने मंदिर के इतिहास के बारे में एक कथा भी बताई जो मां के प्रति भक्त की आस्था व भक्त के विश्वास से जुड़ी है. बहुत समय पहले एक मामड़िया चारण नाम का एक चारण था, जिनके कोई संतान नहीं थी. वह संतान प्राप्ति के लिए लगभग सात बार हिंगलाज माता की पूरी तरह से पैदल यात्रा की. एक रात को जब उस चारण को स्वप्न में आकर माता ने पूछा कि तुम्हें बेटा चाहिए या बेटी, तो चारण ने कहा कि आप ही मेरे घर पर जन्म ले लो. हिंगलाज माता की कृपा से उस चारण के घर पर सात पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया. इनमें से एक आवड मा थी जिनको तनोट माता के नाम से जाना जाता है.
चमत्कारों की गवाह है भारतीय सेना
राजस्थान के सरहदी जिले जैसलमेर का तनोट माता मंदिर न सिर्फ हिंदू धर्मावलंबियों बल्कि हर भारतीय के दिल में खास स्थान रखता है. भारत-पाकिस्तान युद्ध से जुड़ी कई अजीबोगरीब यादें इससे जुड़ी हुई हैं. भारत-पाक सीमा पर स्थित इस मंदिर के दर्शन करने हजारों श्रद्धालु हर साल यहां पहुंचते हैं. वहीं भारतीय सेना का भी इससे गहरा संबंध है.
यह मंदिर देश की पश्चिमी सीमा के निगेहबान जैसलमेर जिले की पाकिस्तान से सटी सीमा बना हुआ है. तनोट माता का मंदिर अपने आप में अद्भुत मंदिर है. सरहद पर बना यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र के साथ साथ भारत-पाक के 1965 व 1971 के युद्ध का मूक गवाह भी रहा है. युद्धकाल में यहां जो घटनाएं हुई हैं उसे आज तक लोग माता का चमत्कार मानते आए हैं. यही वजह है कि भारतीय सेना की रक्षक के रूप में पूरा देश तनोट माता को पूजता है.
1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने तनोट माता मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्र पर जमकर हमला किया. लेकिन तनोट माता की कृपा से एक भी बम मंदिर तक नहीं पहुंच पाया. इस घटना के बाद से तनोट माता को भारत की सेना की रक्षक के रूप में पूजा जाने लगा. आज भी तनोट माता मंदिर में पाकिस्तान की ओर से दागे गए जिंदा बम रखे हुए हैं.
भारतीय सेना के लिए शरणस्थल
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी तनोट माता मंदिर भारतीय सेना के लिए एक महत्वपूर्ण शरणस्थल बना. इस युद्ध के दौरान तनोट माता मंदिर में भारतीय सेना के जवानों ने पाकिस्तानी सेना का डटकर मुकाबला किया और अंततः पाकिस्तानी सेना को पराजित किया.
मंदिर में गिरे 450 बम नहीं फटे
तनोट माता की महिमा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तानी सेना ने मंदिर पर हमला करने के बाद भी मंदिर की एक भी ईंट को नुकसान नहीं पहुंचाया. इसके अलावा, मंदिर परिसर में गिरे 450 बम भी नहीं फटे. यह तनोट माता की कृपा का ही चमत्कार है कि भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को हराने में सफलता प्राप्त की.
बीएसएफ ने ली मंदिर की जिम्मेदारी
तनोट माता मंदिर की सुरक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी बीएसएफ के जवानों ने संभाल रखी है. बीएसएफ के जवान मंदिर की सफाई से लेकर पूजा-अर्चना और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं जुटाने तक का सारा काम बखूबी निभा रहे हैं.
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