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This Article is From Nov 07, 2023

Explainer: राजस्थान में सत्ता के लिए संजीवनी क्यों है आदिवासी वोट बैंक, समझे पूरा सियासी समीकरण

Tribal in Rajasthan Election: राजस्थान की कुल 200 विधानसभा सीटों में से 28 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व है. राजस्थान के 8 जिलों में रहने वाली अनुसूचित जनजाति की संख्या 45.51 लाख है. पिछले तीन विधानसभा चुनाव की बात करें तो आंकड़े साफ इशारा करते हैं कि जिस दल ने आदिवासी सीटों पर कब्जा जमाया, राजस्थान में उसी पार्टी की सरकार बनी है.

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Explainer: राजस्थान में सत्ता के लिए संजीवनी क्यों है आदिवासी वोट बैंक, समझे पूरा सियासी समीकरण
राजस्थान में सत्ता के लिए संजीवनी क्यों है आदिवासी वोट बैंक, समझे पूरा सियासी समीकरण

Tribal in Rajasthan Election: राजस्थान में विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश की सियासी बिछात बिछ चुकी है. कांग्रेस, भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दलों ने अपने-अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतार दिया है. बड़े नेताओं की रैली, जनसभाएं जारी है. सत्तासीन कांग्रेस ने आज से अपनी गारंटी यात्रा की शुरुआत की है. तो दूसरी ओर भाजपा से अमित शाह की चुनावी सभाएं हो रही हैं. प्रदेश की सियासी सरगर्मी के बीच अलग-अलग वोट बैंक को साधने की कोशिश भी जारी है. इसके लिए सोशल इंजीनियरिंग के साथ-साथ जातिगत आंकड़ों के आधार पर टिकट बांटे गए हैं.

प्रदेश के पिछली चुनावी इतिहास को देखें तो राज्य की राजनीति में आदिवासी वोट बैंक की भूमिका बड़ी अहम नजर आती है. आंकड़े कहते हैं राजस्थान में आदिवासी जिसका मान रखते हैं, प्रदेश में सरकार उसी की बनती है. ऐसे में राजस्थान में सत्ता के लिए आदिवासी वोट बैंक संजीवनी है. आइए राजस्थान में आदिवासी वोट बैंक को संजीवनी समझे जाने का पूरा सियासी समीकरण बताते हैं. 

200 सीटों में से 28 आदिवासियों के लिए रिजर्व
राजस्थान की कुल 200 विधानसभा सीटों में से 28 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व है. राजस्थान के 8 जिलों में रहने वाली अनुसूचित जनजाति की संख्या 45.51 लाख है. पिछले तीन विधानसभा चुनाव की बात करें तो आंकड़े साफ इशारा करते हैं कि जिस दल ने आदिवासी सीटों पर कब्जा जमाया, राजस्थान में उसी पार्टी की सरकार बनी है. पिछले 3 विधानसभा चुनावों में 32 एसटी रिजर्व सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है, जबकि बीजेपी 29 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी थी.

मेवाड़ वागड़ अंचल आदिवासियों का गढ़
राजस्थान के मेवाड़ वागड़ अंचल में आदिवासी वोटरों की संख्या काफी ज्यादा है. इसमें कुल 28 सीटें आती हैं. राजनीतिक तौर पर इस अंचल का गठन उदयपुर की 8, राजसमंद की 4, चित्तौड़गढ़ की 5, प्रतापगढ़ की 2, बांसवाड़ा की 5 और डुंगरपुर की 4 सीटों से होता है. इसमें उदयपुर में 5, डुंगरपुर में 4, प्रतापगढ़ में 2, बांसवाड़ा में 5 सीटे अनुसूचित जनजाति (ST) और चित्तौड़गढ़ की एक सीट अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है.

ग्रॉफिक्स से समझिए राजस्थान में आदिवासी वोटरों का महत्व.

ग्रॉफिक्स से समझिए राजस्थान में आदिवासी वोटरों का महत्व.

पीएम मोदी ने बांसवाड़ा में रैली कर आदिवासियों को रिझाया
राजस्थान में आदिवासी वोटरों का महत्व देखते हुए दोनों बड़े दलों भाजपा और कांग्रेस का आदिवासियों पर विशेष फोकस होता है. इसी के चलते राजस्थान में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजने से पहले ही दोनों ही बड़े दलों बीजेपी और कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बांसवाड़ा जिले के ऐतिहासिक मानगढ़ धाम पर रैली कर इस वर्ग के लोगों को साधने की कोशिश की है.

बांसवाड़ा में आदिवासियों के गुरु गोविंद सिंह को पुष्प अर्पित करते पीएम मोदी.

बांसवाड़ा में आदिवासियों के गुरु गोविंद सिंह को पुष्प अर्पित करते पीएम मोदी.

एम नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की सभाओं के पीछे बीजेपी और कांग्रेस की रणनीति कमजोर क्षेत्रों में सेंध लगाने और जीती हुई सीटों को और मजबूत करने की है.  इसी के तहत पीएम मानगढ़ धाम में आदिवासियों के आराध्य गोविंद गुरु को याद किया. यहां उन्होंने उदयपुर की 8, बांसवाड़ा की 5, डूंगरपुर की 4, सिरोही की 3 और प्रतापगढ़ की 2 सीटों पर फोकस किया.

पांरपरिक वोटिंग पैटर्न को देखें तो एसटी सीटों पर कांग्रेस को थोड़ी बहुत बढ़त थी. लेकिन बीजेपी और बीटीपी इसमें सेंध लगा चुकी हैं. पिछले चुनाव में गुजरात से आए एक राजनीतिक आदिवासी संगठन भारतीय ट्राइबल पार्टी ने इस क्षेत्र में उम्मीदवार को उतारकर मुकाबला और कड़ा कर दिया.

बांसवाड़ा में आदिवासियों के बीच जनसभा में तीर-कमान चलाते कांग्रेस नेता राहुल गांधी.

बांसवाड़ा में आदिवासियों के बीच जनसभा में तीर-कमान चलाते कांग्रेस नेता राहुल गांधी.

आदिवासी पार्टी ने मुकाबले को बनाया रोचक

2018 के चुनाव में ट्राइबल पार्टी को दो सीटों पर जीत मिली. हालांकि राजस्थान कांग्रेस की खींचतान के दौर में इन दोनो विधायकों में भी फूट पड़ गई और एक नए दल का गठन किया गया. आदिवासियों के इस संगठन को भारतीय आदिवासी पार्टी यानी ‘बाप” का नाम दिया गया. इस बार भी भारतीय आदिवासी पार्टी चुनावी मैदान में है. 

राजस्थान की अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीटें

प्रदेश में बस्सी, राजगढ़-लक्ष्मणगढ़,  जमवारामगढ़, टोडाभीम, सपोटरा, लालसोट, बामनवास, पिंडवाड़ा-आबू, गोगुंदा, झाड़ोल,  डूंगरपुर, आसपुर, सागवाड़ा, चौरासी, घाटोल, गढ़ी, बांसवाड़ा, बागीदौरा, खेरवाड़ा, उदयपुर ग्रामीण, सलूम्बर, धरियावद, कुशलगढ़, प्रतापगढ़, किशनगंज आदि विधानसभा क्षेत्र जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। 

राजस्थान चुनाव में आदिवासी 

प्रदेश में 25 सीटें आदिवासी बहुल

  • उदयपुर की 8 सीट
  • बांसवाड़ा की 5 सीट
  • डूंगरपुर की 4 सीट
  • सिरोही की 3 सीट
  • प्रतापगढ़ की 2 सीट
  • दौसा की 1 सीट
  • बारां की एक सीट
  • पाली की एक सीट
  • आदिवासी जो जीतकर मंत्री भी बने 

  • जल संसाधन मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीया 
  • जनजाति विकास राज्य मंत्री अर्जुनसिंह बामनिया
  • पूर्व मंत्री धनसिंह रावत
  • पूर्व मंत्री जीतमल खांट
  • पूर्व मंत्री दलीचंद मईडा
  • पूर्व मंत्री फतेह सिंह
  • पूर्व मंत्री कनकमल कटारा
  • पूर्व मंत्री दयाराम परमार
  • पूर्व संसदीय सचिव नानालाल निनामा
  • पूर्व संसदीय सचिव भिमा भाई
  • पूर्व मंत्री पूंजालाल गरासिया
  • पंचायत राज मंत्री रमेश मीणा
  • स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीना
  • पूर्व मंत्री गोलमा देवी मीणा
  • पूर्व मंत्री नंदलाल मीणा
  • इस बार किसकी तरफ जाएगा आदिवासी वोटर

    भारत की 2011 की जनगणना में राजस्थान की जनसंख्या 68,548,437 थी, इसमें से 9,238,534 व्यक्ति अनुसूचित
    जनजाति (एसटी) में से एक हैं, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 13.48 प्रतिशत है. सियासी जानकारों का कहना है कि प्रदेश की आदिवासी वोटरों का झुकाव जिस पार्टी की ओर होता है, वो सत्ता में आता है. अब देखना होगा कि इस बार राजस्थान के आदिवासी वोटर किस पार्टी को अपना वोट देते हैं. फिलहाल कांग्रेस, भाजपा, आरएलपी, बसपा, आदिवासी पार्टी सहित सभी दल आदिवासियों को रिझाने की कोशिश में लगे हैं. 
     

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