
Rajasthan News: राजस्थान हाईकोर्ट ने आदिवासी बेटियों के हक में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. कोर्ट ने आदिवासी समुदाय की बेटियों को पिता की संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार देने का आदेश दिया है. यह फैसला जस्टिस अनुप टंडन की एकलपीठ ने मंत्रीदेवी की याचिका पर सुनाया. इस फैसले से आदिवासी महिलाओं को समाज में बराबरी का नया रास्ता मिला है.
मंत्रीदेवी की जीत, पुराना आदेश रद्द
मंत्रीदेवी ने अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा मांगा था, लेकिन बोर्ड ऑफ रेवेन्यू ने 9 जून 2025 को उनके अनुसूचित जनजाति (एसटी) होने के आधार पर दावा खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट ने इस आदेश को रद्द करते हुए कहा कि मंत्रीदेवी को उनके भाइयों के समान संपत्ति में हिस्सा मिलेगा.
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 2(2) के तहत दिया गया. तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता जिसमें यह कहा गया था कि यदि सरकार द्वारा अधिसूचना जारी नहीं हुई हो तो एसटी समुदाय की महिलाओं को संपत्ति का उत्तराधिकार नहीं दिया जा सकता.
समानता और संविधान का सम्मान
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केवल महिला होने के कारण किसी को संपत्ति के अधिकार से वंचित करना संविधान के खिलाफ है. यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव से सुरक्षा) और 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन है. कोर्ट ने जोर देकर कहा कि बेटियों को बराबर हक देना समाज से भेदभाव और असमानता को खत्म करने का मजबूत कदम है.
आदिवासी महिलाओं के लिए नई उम्मीद
यह फैसला राजस्थान की आदिवासी बेटियों के लिए मील का पत्थर साबित होगा. इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी, बल्कि समाज में उनकी बराबरी की पहचान भी बनेगी. कोर्ट का यह निर्णय आदिवासी महिलाओं को उनके हक के लिए लड़ने की प्रेरणा देगा.
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