Bundi News: राजस्थान की भजनलाल सरकार ने कृष्ण जन्माष्टमी के दिन बूंदी शहर के बीच स्थित चारभुजा नाथ मंदिर को तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किए जाने की घोषणा की. बूंदी के चारभुजा नाथ का मंदिर सहित 8 मंदिरों को श्री कृष्ण गमन पथ योजना में शामिल किया है. जहां विकास कार्य करवाए जाएंगे. मंदिर में विकास कार्य होने से श्रद्धालुओं का आना और भी आसान हो जाएगा. साथ में क्षेत्र के दुकानदारों और लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान होंगे.
शहर में बढ़ेगा रोजगार
एनडीटीवी राजस्थान की टीम ने सरकार की घोषणा करने के बाद मंदिर समिति से जुड़े श्रद्धालुओं से बातचीत की. बातचीत में लोगों ने भजनलाल सरकार का आभार जताया और कहा कि कॉरिडोर बनेगा तो निश्चित रूप से इस इलाके में रोजगार के अवसर प्रदान होंगे. देश के विभिन्न राज्यों में बूंदी के चारभुजा नाथ मंदिर की पहचान भी बढ़ेगी. मंदिर काफी पुराना है विकास होगा तो मंदिर को चार चांद लगेंगे.
श्री कृष्ण गमन पथ योजना में श्री गोकुल चन्द्रमा जी, श्री मदन मोहन जी, श्री बिहारी जी, श्री चारभुजा जी, श्री मथुराधीश जी, और श्री द्वारकाधीश जी, के मंदिर को शामिल किया गया है. सरकार जल्दी ही इन मंदिरों की डीपीआर तैयार करवाएगी और बजट जारी होते ही कार्य शुरू हो जाएगा.
सवाई माधोपुर से आए चारभुजा नाथ
एनडीटीवी से बातचीत करते हुए विकास समिति अध्यक्ष पुरुषोत्तम पारीक ने बताया कि मंदिर में श्री चारभुजा की प्रतिमा को बूंदी नरेश राव सुरजन सिंह ने सन 1569 में प्रतिष्ठित किया था. श्री चारभुजा नाथ सवाई माधोपुर से बूंदी पधारे थे, तब उनका रथ इस स्थान पर रुक गया था. काफी प्रयास करने के पश्चात भी रथ आगे नहीं बढ़ा.
नरेश राव सुरजन सिंह ने भूतेश्वर महादेव के मंदिर के निज गर्भ गृह में श्री चारभुजा की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया और श्री भूतेश्वर महादेव गर्भ ग्रह के बाहर विराजमान किए. बूंदी के लोगों की मंदिर के लिए बहुत आस्था है. मंदिर में काफी संख्या मैं श्रद्धालु प्रतिदिन दर्शन करने आते हैं.
पहले भूतेश्वर महादेव का था मंदिर
मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह मंदिर 1242 ईस्वी पूर्व बूंदी की स्थापना के समय बना था. यह मंदिर पहले भूतेश्वर शिव मंदिर के नाम से जाना जाता था. यहां लोग महादेव के दर्शन करने आते थे. राव राजा सुरजन सिंह ने सवाई माधोपुर के रणथंबोर दुर्ग से आई चारभुजा जी की मूर्ति यहां स्थापित किया. वहीं शिवलिंग को मंदिर के बाहर सभा मंडप में स्थापित किया. उसके बाद से ही यहां पर चारभुजा भगवान की पूजा होने लगी और मंदिर का नाम चारभुजा नाथ हो गया.