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In Depth: राजस्थान में पहली बार इंटर स्टेट टाइगर ट्रांसफर प्रोजेक्ट शुरू, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से लाए जाएंगे बाघ, जानिए पूरी डिटेल्स

Inter State Tiger Transfer Project: राजस्थान में पहली बार अंतरराज्यीय बाघ स्थानांतरण प्रोजेक्ट की शुरुआत होने जा रही है. NTCA की मंजूरी के बाद महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से बाघ-बाघिन को बूंदी और कोटा के टाइगर रिजर्व में शिफ्ट किया जाएगा. जानें पूरी डिटेल   

In Depth: राजस्थान में पहली बार इंटर स्टेट टाइगर ट्रांसफर प्रोजेक्ट शुरू, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से लाए जाएंगे बाघ, जानिए पूरी डिटेल्स
बाघ की तस्वीर

Rajasthan Inter State Tiger Transfer Project: राजस्थान के इतिहास में पहली बार इंटर स्टेट टाइगर ट्रांसफर प्रोजेक्ट की शुरुआत होने जा रही है. जो प्रदेश के लिए एक अच्छी खबर है. इस प्रोजेक्ट की लिए NTCA ने सैद्धांतिक मंजूरी भी दे दी है. मंजूरी मिलने के बाद वन-विभाग बाघ-बाघिन की शिफ्टिंग के लिए तैयारी में जुटा है. इससे पहले भारत का पहला अंतर राज्य बाघ स्थानांतरण प्रोजेक्ट असफल रहा था. मध्य प्रदेश से 2 टाइगर उड़ीसा भेजे गए थे, जहां पर एक बाघ की मौत हो गई थी, दूसरे की मौत की डर की वजह से वन विभाग ने वापस टाइगर को ट्रॅकुलाइज कर MP भेज दिया गया था.

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राजस्थान में अभी तक राज्य के ही टाइगर रिजर्व से  टाइगर एक दूसरे में शिफ्ट किए जाते रहे हैं. लेकिन बूंदी का रामगढ़ और कोटा का मुकुंदरा टाइगर रिजर्व पहला रिजर्व होगा, जहां पर अंतर राज्य बाग स्थानांतरण नीति को अपनाया जाएगा. सैद्धांतिक मजदूरी मिलने के बाद अब कभी भी महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से टाइगर्स को बूंदी और रामगढ़ में शिफ्ट किया जा सकता है. 

2008 में हुआ राज्य का पहला स्थानांतरण  

बूंदी रामगढ़ अभयारण्य के DCF अरविंद कुमार ने बताया कि बड़ी खुशी की बात है कि अंतर राज्य बाघ स्थानांतरण का चयन बूंदी के रामगढ़ के लिए किया गया है. राज्य में पहला टाइगर स्थानांतरण वर्ष 2008 में हुआ था, यहां रणथंभौर से सरिस्का टाइगर रिजर्व में टाइगर्स को शिफ्ट किया गया था. 2004–2005 के बीच सरिस्का टाइगर रिजर्व में बागों की संख्या लगातार घटती जा रही थी जिसको देखते हुए 2008 में टाइगर शिफ्टिंग की शुरुआत हुई.

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पहला टाइगर रणथंभौर से सरिस्का में 28 जून 2008 को शिफ्ट हुआ था. वहीं वर्ष 2012 तक उसके शावक नहीं हुए तो वन विभाग की लगातार चिंता बढ़ गई. वन विभाग के विशेषज्ञ को बुलाया गया, जहां पर रेडियो कॉलर की रेडिएशन की वजह से परेशानी की जानकारी सामने आई. इसके बाद बाघिन का रेडियो कलर चेंज किया गया. उसके सालभर बाद 2012 में ST 2 ने 2 शावकों को जन्म दिया. 

उड़ीसा से भेजे गए बाघ की हो गई थी मौत

जानकारी के अनुसार भारत में पहली बार अंतर राज्य बाघ स्थानांतरण परियोजना की शुरुआत 2018 में की गई थी. योजना के लिए बाघ-बाघिन की एक जोड़ी मध्य प्रदेश से उड़ीसा के एक टाइगर रिजर्व में भेजी गई थी. बाघ महावीर और बाघिन सुंदरी को मध्य प्रदेश से ओडिशा में स्थानांतरित किया. जून 2018 में महावीर को कान्हा टाइगर रिजर्व और सुंदरी को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से सतकोसिया टाइगर रिजर्व में लाए. लेकिन नए वातावरण मिलने के चलते उड़ीसा के सातकोशिया टाइगर रिजर्व में बाघ महावीर की मौत हो गई.

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वातावरण सही नहीं मिलने से बाग का पूरा मोमेंट बदल गया था और वह चिड़चिड़ा होने की वजह से उसने वहां पर आमजन पर हमला करने की भी कोशिश की थी. फिर एक दिन बाग महावीर किसान के बाड़े में अचेत हालत में मिला, जांच करने पर उसकी मौत हो चुकी थी.  इसके बाद दूसरे बाघ को मूल स्थान मध्य प्रदेश भेजा गया. इससे बाघों का अब तक का पहला अंतरराज्यीय स्थानांतरण विफल हुआ.

बाघों की पहली पसंद रामगढ़

वन्यजीव प्रेमी बिट्टल कुमार सनाढ्य ने बताया की बूंदी का रामगढ़ अभयारण्य सदियों से बाघों के लिए मैटरनिटी होम के रूप में प्रसिद्ध रहा है. रामगढ़ का उत्तम प्राकृतिक वातावरण और इसके बीच में बहने वाली मेज नदी की खूबसूरत वादियों में बाघों की दहाड़ ने ही इसे भारत का एक प्रमुख अभयारण्य होने का गौरव बनाया.

रणथंभौर से T 62 और T 91 बाघों के यहां आने के बाद अभयारण्य का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है. T 91 को मुकंदरा शिफ्ट किया गया था और T 62 वापस लौट गया था. फिलहाल रणथंभौर से निकला T-115 यहां सेंचुरी में घूम रहा है, जिसे आए हुए 3 साल हो चुके हैं.

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प्रस्तावित टाइगर रिजर्व में इंद्रगढ़ से जैतपुर तक का रणथंभौर टाइगर बफर जोन, रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य, देवझर से भीमलत महादेव तक का कालदां का सघन वन क्षेत्र, गरड़दा और भीलवाड़ा जिले में बांका-भोपतपुरा के जंगल शामिल किए गए हैं. बूंदी टाइगर रिजर्व क्षेत्रफल की दृष्टि से मुकुंदरा नेशनल पार्क से बड़ा है. 

1982 में रामगढ़ अभ्यारण के नाम से जाने जाने लगा

बूंदी इंटेक के सचिव राजकुमार दाधीच ने बताया कि सन 1982 में बूंदी का रामगढ़ अभ्यारण के नाम से जाने जाने लगा. कुल अभयारण्य 800 वर्ग किमी में फैला हुआ है. एक तरफ रणथंभोर है तो दूसरी तरफ मुकुंदरा टाइगर रिजर्व है. बूंदी रामगढ़ अभ्यारण में नीलगाय, सियार, हिरण, भालू, हाईना, जंगली कुत्ते, चीतल, सांभर, जंगली बिल्लियां, तेंदुए, लंगूर, सांप, मगरमच्छ सहित 500 प्रकार के वन्य जीव मौजूद हैं. रणथंभौर से ज्यादा खूबसूरत बाघों के प्रजनन के लिए ग्रास लैंड है.

रामगढ़ का उत्तम प्राकृतिक वातावरण और इसके बीच में बहने वाली मेज नदी है. राजस्थान के किसी भी टाइगर रिजर्व में ऐसी नदी नहीं है, जो एक किनारे से दूसरे किनारे तक बहती है. इसमें 150 गुफाएं भी हैं.

7 है बाघों कुनबा, जल्द होगी बाघिन शिफ्ट

जानकारी के अनुसार रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में वर्तमान में 7 बाघों की मौजूदगी है, जिसमें एक बाघिन है. वहीं 2 नर और 1 बाघिन है जो स्वतंत्र रूप से जंगल में विचरण कर रहे है. पिछले दिनों भैरूपुरा गांव के पास बजीं अपने एक शावक के साथ कमरे में ट्रैप हुई थी. DFO अरविंद झा ने बताया कि जल्द ही महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से बाघिन को यहां पर शिफ्ट किया जाएगा. अभयारण्य में प्रवेश बनाने के लिए 500 चीतलों को छोड़ने की भी मंजूरी मिल गई है.

हेलीकॉप्टर से लाए जा सकते है बाघ-बाघिन

डीसीएफ अरविंद कुमार झा ने बताया कि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की दूरी बूंदी के टाइगर रिजर्व से काफी दूर है. ऐसे में हेलीकॉप्टर से भी बाग-बाघिन को यहां पर सीधा शिफ्ट किया जा सकता है. ऐसे में हमारी प्लानिंग है कि हम टाइगर रिजर्व में हेलीकॉप्टर से लाने की मंजूरी बनती है तो यहां पर हेलीपैड का निर्माण भी करेंगे. हेलीकॉप्टर से आसानी से टाइगर को यहां पर शिफ्ट किया जा सकेगा. डीसीएफ अरविंद कुमार झा बताया कि एक ही राज्य के टाइगर में नस्ल को लेकर कमजोरी नजर आती है. दूसरे राज्यों के बाघ यहां का आकार नस्लों को मजबूत करने का काम करेगा.

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