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Rajasthan Paper Leak: पकड़ना मगरमच्छों को था, मछलियां तक छूट रही! SI पेपर लीक के आरोपियों को जमानत मिलने से SOG पर सवाल

SI Paper Leak Case: राजस्थान में SI भर्ती परीक्षा के 26 आरोपियों को हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद SOG की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं.

Rajasthan Paper Leak: पकड़ना मगरमच्छों को था, मछलियां तक छूट रही! SI पेपर लीक के आरोपियों को जमानत मिलने से SOG पर सवाल
SI Paper Leak Case में SOG की कार्यशैली पर अब सवाल उठने लगे हैं.

SI Paper Leak Case: राजस्थान में भजनलाल शर्मा (Bhajanlal Sharma) सरकार के गठन के बाद पेपर लीक पर ताबड़तोड़ एक्शन शुरू हुए. राजस्थान पुलिस की एक विशेष टीम SOG को पेपर लीक के मामलों की जांच की जिम्मेदारी दी गई. SOG ने अलग-अलग भर्ती परीक्षाओं में हुई धांधली में तेजी से जांच करते हुए 100 के करीब आरोपियों को गिरफ्तार किया. लेकिन अब SOG की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं. दरअसल SI भर्ती परीक्षा के 26 आरोपियों को राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) से जमानत मिलने के बाद SOG पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं.

SI पेपर लीक मामले में गुरुवार को 16 आरोपियों को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई. इससे पहले भी कोर्ट ने 10 आरोपियों को जमानत दी थी. कोर्ट ने माना है कि SOG ने जो सबूत पेश किए, वे संदेहास्पद हैं. 

25 ट्रेनी SI को जमानत मिलना SOG के लिए झटका

कोर्ट ने यह भी कहा था कि बेल देना नियम है और जेल अपवाद. इसी आधार पर अब तक 26 आरोपियों को जमानत मिली है. इनमें 25 ट्रेनी SI हैं. इन पर पेपर पढ़कर परीक्षा देने का आरोप है. इसे SOG के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, साथ ही जांच पर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. सबसे पहले समझिए कि SOG ने आरोपियों के खिलाफ किस तरह के सबूत पेश किए थे. 

SOG ने अपनी चार्जशीट में बताया था कि इन आरोपियों से कुछ दस्तावेज बरामद हुए थे. इन दस्तावेजों में रुपयों के लेनदेन की जानकारी लिख रखी थी. 

SI Paper Leak Case की चार्जशीट जिसमें लेनदेन का जिक्र है.

SI Paper Leak Case की चार्जशीट जिसमें लेनदेन का जिक्र है.

सवाल याद करने वाला इंसान डायरी पर लेनदेन क्यों लिखेगा?

कोर्ट में इन सबूतों पर खूब बहस हुई. आरोपियों के वकील ने कहा कि अगर कोई आरोपी परीक्षा से डेढ़ घंटे पहले 100 सवाल याद कर सकता है तो वह लेनदेन की जानकारी 3 साल तक किसी डायरी में या एडमिट कार्ड पर लिखकर क्यों रखेगा. हालांकि तब कोर्ट ने यह कहा था कि इन आरोपियों को यह नहीं पता था कि जांच इतनी दूर तक चली जाएगी. इस पर कोर्ट में खूब बहस हुई.

टेक्निकल एविडेंस कलेक्ट कर पाने में फेल रही SOG

अंततः हाईकोर्ट ने पहले 10 आरोपियों को और फिर बाद में 16 आरोपियों को जमानत दे दी. कानून के जानकर मानते हैं कि SOG टेक्निकल एविडेंस कलेक्ट कर पाने में सक्षम नहीं हुई, पुराने ढर्रे से सबूत इकट्ठा किए जो जांच में नहीं टिक पाए. साथ ही वे जांच प्रक्रिया पर भी सवाल उठा रहे हैं. 

वरिष्ठ अधिवक्ता एके जैन ने बताया- कहां हुई चूक

मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता एके जैन ने कहा, "ऐसे मामले में निश्चित रूप से साक्ष्य मिटा दिए जाते हैं या हल्के कर दिए जाते हैं. और ऐसी स्थिति में सबसे अच्छी होती है वह वैज्ञानिक साक्ष्य होती है. इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस होती है, इलेक्ट्रॉनिक फुटप्रिंट होते हैं. और इसके लिए पर्याप्त साधन नहीं थे. और वह राज्य सरकार ने SOG की मांग के बाद भी उपलब्ध नहीं कराए.

चार्जशीट का दूसरा हिस्सा, इसमें भी लेनदेन का जिक्र है.

चार्जशीट का दूसरा हिस्सा, इसमें भी लेनदेन का जिक्र है.

कमजोर एविडेंस के आधार पर पेश हुई चार्जशीट

वकील एके जैन ने आगे बताया कि इसी का कारण है कि कमजोर एविडेंस के आधार पर चार्जशीट पेश हो रही है. प्रारंभ में सूत्रधार, मुख्य आरोपियों को पकड़ने की बजाय ज्यादा जोर, नाम लेने के लिए या नंबर बढ़ाने के लिए उन आरोपियों को पकड़ा गया जिन्होंने पैसे देकर पेपर्स खरीदे थे. और उन्हें लोगों को निरंतर उच्च न्यायालय जमानत दे रहा है. डमी कैंडिडेट को जमानत नहीं मिल रही. सिर्फ कहीं कुछ डायरी में एंट्री कुछ कुछ है, जो एनरोलमेंट पेपर या जो आपके एडमिट कार्ड है, उन पर एंट्रीज ऐसी एविडेंस नहीं है या जो मॉक टेस्ट कराए गए, वह कोई वैल्यू नहीं रखता."

वरिष्ठ अधिवक्ता एके जैन.

वरिष्ठ अधिवक्ता एके जैन.

मार्च से शुरू हुई गिरफ्तारी, युवाओं में जगी न्याय की उम्मीद

इस मामले में मार्च के महीने से गिरफ्तारियां शुरू हुई. SOG ने आरोपियों की धड़पकड़ शुरू की. खूब तारीफें मिली. युवाओं में इस बात का भरोसा जगा कि पेपर लीक माफियाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी. आरोपियों को सजा मिलेगी लेकिन आरोपियों को जमानत मिलने से उनकी उम्मीदें खत्म हो रही हैं. वे चाहते हैं कि भर्ती रद्द हो. 

एसओजी की कार्रवाई के बाद सरकार से जुड़े कई लोग सार्वजनिक मंच पर यह कहते सुनाई दिए कि अब पेपर लीक के मगरमच्छों को पकड़ा जाएगा. लेकिन अब मगरमच्छों को पकड़ना तो दूर पकड़ी गई मछलियां भी जेल से छूट रही हैं. 

कुछ आरोपियों को अप्रूवर बनाना चाहिए था

वरिष्ठ अधिवक्ता एके जैन ने कहा, "जब आप एविडेंस की डायरेक्टली नहीं ले पाए तो इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी का प्रयास यह रहता है कि अभियुक्त गण में से ही कुछ अभियुक्त गण को अप्रूवर बनाएं, कोर्ट से उसकी अनुमति प्राप्त करें. और वह सारे के सारे षडयंत्र का खुलासा कर सकते हैं और उनकी एविडेंस बड़ी विश्वसनीय एविडेंस मानी जाती है. 

पेपर लीक की सबसे बड़ी गैंग तो RPSC खुद हीः जैन

वकील ने आगे बताया कि लेकिन इतने बड़े प्रकरण में जहां एक के बाद एक कई गैंग्स इन्वेस्टिगेशन में आ रही है. सबसे बड़ी गैंग तो आरपीएससी खुद ही है. आरपीएससी के सदस्य हैं पर किसी को भी अप्रूवर नहीं बनाया गया है यह अनुसंधान की विफलता है. जो राजस्थान का सबसे बड़ा घोटाला इसका सबसे अधिक है धीरे-धीरे एक अपनी मौत मरता जा रहा है, और हमारे युवा ठगे से महसूस कर रहे है."

मामले में SOG प्रमुख वीके सिंह ने SOG के लिए कई संसाधनों की मांग की थी. कानून के जानकर मानते हैं कि टेक्निकल एविडेंस न जुटा पाने की वजह संसाधनों की कमी भी है. हालांकि किसी आरोपी को अप्रूवर न बना पाना जांच एजेंसी की कमी मानी जा रही है.

कोर्ट ने भी RPSC की भूमिका पर उठाए थे सवाल

इस मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राजस्थान लोक सेवा आयोग पर भी गंभीर टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में RPSC के सदस्यों की भूमिका जिस तरह से सामने आई है, वह पूरे समाज पर प्रभाव डालती है. SOG की चार्जशीट से RPSC के चेयरमैन एवं सदस्यों की भूमिका पर सवाल उठे थे. दो सदस्यों की गिरफ्तारी भी हुई. इसलिए कानून के जानकर यह मान रहे हैं कि अगर SOG ने RPSC के सदस्यों से शुरू में पूछताछ की होती तो हालात अलग होते.

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वकील बोले- गंगा की सफाई करनी है तो शुरुआत गंगोत्री से होनी चाहिए

एके जैन ने आगे बताया कि "SOG को सबसे पहले बड़ी मछलियों पर हाथ डालना चाहिए था. अगर गंगा साफ करनी है तो गंगोत्री से शुरुआत करनी चाहिए थी. RPSC के सदस्यों से पूछताछ करनी चाहिए थी. गैंग ने खुद तो पेपर बनाए नहीं थे. उन्होंने RPSC के सदस्यों से ही लिए थे. RPSC के चेयरमैन और सदस्यों के अलावा उन लोगों को पकड़ना जिन्होंने पैसे देकर पेपर खरीदा, जो भ्रष्टाचार के शिकार हुए हैं, इस बीच में मुख्य मुजरिम को मौका मिला कि वे साक्ष्य मिटा सकें या अपनी सफाई कर सके."

कोर्ट की बहस में पिछड़ती नजर आ रही SOG

SOG की शुरुआती कार्रवाई से युवाओं में काफी भरोसा जगा था. लेकिन कोर्ट की बहस में जिस तरह SOG पिछड़ती नजर आ रही है, इससे कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. सवाल यह उठ रहे हैं क्या SOG के तेज तर्रार अधिकारी यह नहीं जानते थे कि यह सबूत कोर्ट में नहीं टिक पाएंगे. सवाल यह भी उठ रहे कि तेज चल रही कार्रवाई अचानक ठप कैसे हो गई. सवाल कई हैं लेकिन जवाब कुछ नहीं...

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