Rajasthan News: विश्व भर में सिख समाज की ओर से 'वर्ल्ड टर्बन डे' को सेलिब्रेट किया गया. राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी जोधपुर में भी सिख समाज ने वर्ल्ड टर्बन ड़े को धूमधाम से मनाया जोधपुर का संपूर्ण सिख समाज गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा की अगवाई में समस्त गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों के द्वारा अशोक उद्यान पर वर्ल्ड टर्बन डे मनाया. जहां करीब 500 से अधिक लोगों को रंग बिरंगी पगड़ी बांधने के साथ ही टर्बन का महत्व भी समझाया. अंतर्राष्ट्रीय पगड़ी दिवस अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है. अप्रैल माह सिख विरासत और मूल्यों के सम्मान के लिए समर्पित है. यह दिवस सिख संस्कृति में पगड़ी के महत्व को स्वीकार करता है और धार्मिक सद्भाव और अंतर सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देता है.
ग्लोबल सिख चैरिटेबल सोसायटी के पदाधिकारी सरदार बलकित सिंह ने बताया कि हमारी सोसाइटी मुख्य रुप से विश्व भर में निशुल्क सेवा से जुड़े कार्य को करती है. आज बैसाखी के उपलक्ष पर पगड़ी दिवस को सेलिब्रेट कर रहे हैं. जिसमे समूह साथ संगत हमारे साथ है और आज सर्वधर्म के लोगों को आमंत्रित करके उन्हें स्वयं इच्छा पगड़ी के महत्व की जानकारी देने के साथ ही उन्हें पगड़ी भी बांध रहे ह. ताकि पगड़ी का क्या महत्व है और किस प्रकार से सिख वैशाखी मानते है और हमारे जीवन में इसका क्या महत्व है इसके बारे में भी जानकारी दी गई.
क्यों अप्रैल माह में ही मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय पगड़ी दिवस!
सिख के प्रमुख त्योहार में बैसाखी एंव सबसे प्रमुख त्योहार है जो खालसा पंथ के स्थापना पर मनाया जाता है. इस दिन 13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की. जिससे यह दुनिया भर के सिखों के लिए एक प्रमुख तारीख बन गई. और इसी के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष अप्रैल माह में अंतर्राष्ट्रीय पगड़ी दिवस मनाया जाता है.
यह है सिखों में पगड़ी का ऐतिहासिक संदर्भ
सिख संस्कृति में अपने धर्म के अनिवार्य भाग के रूप में पगड़ी पहनने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 2004 से 13 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय पगड़ी दिवस मना रहे है. 2024 पगड़ी दिवस, गुरु नानक देव की 555वीं जयंती और बैसाखी के त्योहार का प्रतीक है. पगड़ी जिसे दस्तर या पगड़ी या पग के रूप में भी जाना जाता है. इसे गुरु गोबिंद सिंह का एक उपहार माना जाता है.1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने सम्मान और प्रतिष्ठा की प्रतीक पगड़ी को सिखों की पारंपरिक पोशाक के रूप में प्रस्तुत किया. उस समय पगड़ी आमतौर पर मुगल सरदारों या हिंदू राजपूतों द्वारा विशिष्टता के प्रतीक के रूप में पहनी जाती थी.
गुरु गोबिंद सिंह के सभी सिखों को पगड़ी पहनने, तलवार चलाने और सिंह और कौर नाम अपनाने की अनुमति दिए थे. इस निर्णय से सिख समुदाय में समानता को बढ़ावा मिला.दस्तार बंदी सिख संस्कृति में महत्वपूर्ण समारोह होता है.यह सिख लड़के के पगड़ी पहनने की शुरूआत का प्रतीक है. यह समारोह आमतौर पर गुरुद्वारे में तब आयोजित किया जाता है जब लड़के की उम्र 11 से 16 साल के बीच होती है. यह एक युवा सिख के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना है, जो उसकी आस्था और पहचान के प्रतीक के रूप में पगड़ी अपनाने की उसकी तत्परता को दर्शाती है.
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