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किसानों के लिए किया गया ऐसा इनोवेशन, समय से पहले होगी फसलों की पैदावार

परंपरागत विधि द्वारा की जा रही खेती के मुकाबले इस विधि में परंपरागत समय से 2 महीने पहले फसलें प्राप्त हो जाती हैं. जिसको समय से पहले बाजारों में बेचकर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

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किसानों के लिए किया गया ऐसा इनोवेशन, समय से पहले होगी फसलों की पैदावार
नए तकनीकी से की जा रही खेती

Low Tunnel Technology: झालावाड़ के उद्यानिकी और वानिकी महाविद्यालय का एक और नवाचार अब किसानों के लिए बेहद मददगार साबित होने वाला है. इस इनोवेशन (नवाचार) और तकनीक को अपनाकर किसान निश्चित तौर पर अपनी आय बढ़ा सकेंगे. इस तकनीक को अपनाकर समय से पहले फसल की पैदावार की जा सकेगी, जिससे समय से पहले फसल बाजार में आएगी तो अच्छे दाम भी मिलेंगे. उद्यानिकी और वाणी की महाविद्यालय द्वारा किए गए इस नवाचार को नाम दिया गया है लो टनल तकनीक का. इसको यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इस विधि से छोटी और कम ऊंचाई वाली टनल बनाकर उसके माध्यम से खेती की जाती है, जिसको बाद में खोल दिया जाता है.

क्या है लो टनल तकनीकी

लो टनल तकनीकी एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा कुछ फसलों की समय से पहले पैदावार की जा सकती है. फिलहाल इस विधि से यहां खरबूजे पैदा किया जा रहे हैं. जिनकी गुणवत्ता बेहद अच्छी है. उद्यानिकी और वानिकी महाविद्यालय के डीन डॉक्टर आईबी मौर्य बताते हैं कि इस विधि से खेती करने के लिए पहले मल्चिंग विधि जैसे बेड बनाए जाते हैं. जिन पर बीजारोपण किया जाता है. फिर मल्चिंग द्वारा बनाए गए बेड़ो पर लगभग 2 फुट ऊंचा सुरंग नुमा शेड बनाया जाता है जो पोली मटेरियल से बनता है. 

डीन ने बताया कि बीजारोपण करने के बाद जब शेड बना दिया जाता है. इसी के कारण शेड के अंदर तापमान बढ़ता है जो बीज के जर्मिनेशन या अंकुरण में सहायक होता है. उन्होंने बताया कि खरबूजे की बुवाई आमतौर पर फरवरी के महीने में की जाती है. क्योंकि फरवरी के बाद जब तापमान में वृद्धि होती है, तभी खरबूजे के बीजों का अंकुरण ठीक तरह से हो पता है. 

वहीं लो टनल तकनीक में दिसंबर या जनवरी के महीने में ही इसकी बुवाई कर दी जाती है. हालांकि वातावरण का तापमान उस समय कम होता है और अंकुरण के लिए सही नहीं होता. फिरभी टनल के भीतर का तापमान ज्यादा रहता है, जिसके चलते बीज को दिसंबर और जनवरी के महीने में भी फरवरी और मार्च जैसा तापमान मिल पाता है. जिसके कारण बीजों का अंकुरण ठीक तरीके से होता है. फरवरी का महीना आते-आते बीज अंकुरित होकर पौधों की शक्ल ले लेते हैं और इनमें फूल आने लगते हैं. 

2 महीने पहले मिल रही है पैदावार

इस विधि से खरबूजे की खेती करने वाले किसानों को खरबूजे की पैदावार उसके परंपरागत समय से लगभग दो महिने पहले ही मिलने लग जाती है. क्योंकि टनल में लगाए गए पौधे समय से पहले फल और फूल देने लगते हैं. फरवरी के अंत तक इन पौधों में फूल से फल बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. मार्च के पहले हफ्ते तक खरबूजे की फसल तैयार होने लगती है. 

इनपर हो चुके हैं सफल प्रयोग

यानी की परंपरागत विधि द्वारा की जा रही खेती के मुकाबले इस विधि द्वारा की जा रही खेती में लगभग परंपरागत समय से 2 महीने पहले खरबूजे की फसल प्राप्त हो जाती है. जिसको समय पहले बाजारों में बेचकर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. डीन ने बताया कि फिलहाल यह प्रयोग यहां खरबूजे की मुस्कान नमक किस्म पर सफलतापूर्वक किया गया है. जिसकी मिठास और क्वालिटी बहुत अच्छी होती है. उन्होंने कहा कि इस विधि द्वारा खरबूजे के अलावा भिंडी, बैंगन इत्यादि फसले भी समय से पूर्व ली जा सकती है, जिससे किसानों को अच्छी आई होती है.

झालावाड़ के खरबूजे ने बनाई अलग पहचान

डीन ने बताया कि झालावाड़ के कई किसान इस तकनीक को अपनाकर खरबूजे की पैदावार कर रहे हैं. जिसकी राजस्थान के बाहर भी अच्छी डिमांड है. अन्य राज्यों में यहां के खरबूजे को झालावाड़ के खरबूजे के नाम से जाना जाने लगा है. इस विधि से उगाए गए खरबूजे की मिठास और क्वालिटी गुणवत्तापूर्ण होने के चलते इसकी बाजार में काफी डिमांड है. उन्होंने बताया कि इस विधि को लेकर किसानों में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है. यह विधि किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित हो रही है.

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